आदर देंगे तभी तो मुस्लिम वोट मिलेगा!

अब तो लखनऊ का ‘स्वतंत्र भारत’ एक बरबाद और मृतप्राय अख़बार है। लेकिन आज़ादी के दिन 15 अगस्त, 1947 से छपने वाला यह स्वतंत्र भारत अख़बार कभी लखनऊ का प्रतिष्ठित और सर्वाधिक प्रसार संख्या वाला अख़बार था। हम जब थे इस अख़बार में तब यह सवा लाख रोज छपता था।

स्वतंत्र भारत के कई सारे अच्छे, बुरे, विद्वान, अनपढ़ और दलाल संपादक हुए। इन्हीं में से एक संपादक हुए थे अशोक जी। मैं ने उन के साथ कभी काम नहीं किया न उन्हें देखा कभी। लेकिन जनसत्ता, दिल्ली से होते हुए फ़रवरी, 1985 में जब इस अख़बार में आया था तब ईमानदार, कड़ियल और कलम के धनी वीरेंद्र सिंह संपादक थे। पूर्व संपादक अशोक जी के कुछ क़िस्से भी तभी सुने। उन में से एक आज एक छोटा सा वाकया आप भी सुनिए।

एक बार अशोक जी को लगा कि चाहे कोई भी हो सभी का नाम सम्मान सहित लिखा जाना चाहिए। उन्हों ने एक लिखित आदेश जारी किया कि सभी के नाम के आगे आदर सूचक श्री लिखा जाए। अब संपादक का लिखित आदेश था सो फ़ौरन इस का अनुपालन भी सुनिश्चित हो गया।

अब स्वतंत्र भारत अख़बार में छपने लगा कि श्री कल्लू राम पाकेटमारी में पकड़े गए। श्री बनवारी लाल जेल गए। श्री आज़म खान हत्या में गिरफ्तार हुए। आदि-इत्यादि।

हफ़्ते-दस दिन यह क्रम चला ही कि अशोक जी भड़क गए सहयोगियों पर कि यह क्या है। अपराधियों को इतना सम्मान अख़बार में क्यों दिया जा रहा है।

सहयोगियों ने बताया कि यह सब तो आप के आदेश के मुताबिक़ ही हो रहा है।

वह फिर भड़के कि ऐसा आदेश कब दिया मैं ने?

सहयोगियों ने उन का वह आदेश दिखाया जिस में उन्हों ने सब के नाम के आगे श्री लिखने का फ़रमान सुनाया था। सहयोगियों ने बताया कि अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि नाम के आगे श्री लिख कर श्री कल्लू राम पाकेटमारी में ‘पकड़ा गया’ लिखा जाए, श्री कल्लू राम पाकेटमारी में ‘पकड़े गए’ ही लिखा जाएगा।

अशोक जी समझ गए। अपने उस आदेश को फौरन रद्द कर दिया। वह संपादक थे। राजनीतिज्ञ नहीं।

राहुल गांधी राजनीतिज्ञ हैं, संपादक नहीं। तो कांग्रेस या कोई भी सेक्यूलर होने का ढोंग करने वाली, मुस्लिम वोट की तलबगार पार्टी अगर ओसामा जी, मसूद अज़हर जी कहती है तो जस्ट चिल। आदर देंगे तभी तो मुस्लिम वोट मिलेगा।

आप मानिए उन्हें आतंकवादी, दीजिए उन्हें गाली, कीजिए उन्हें कंडम। लेकिन जो उन्हें आदर देना चाहते हैं, सम्मान से जी कहना चाहते हैं, उन्हें आप संविधान की किस अनुच्छेद, किस धारा के तहत रोक सकते हैं भला।

आप भूल रहे हैं कि उन्हें संविधान भी बचाना है। अभिव्यक्ति की आज़ादी भी बचा कर रखनी है। सहिष्णुता की रक्षा भी करनी है। सेक्यूलर ढांचा भी बचाना है। इमरान खान को शांति दूत का नैरेटिव भी बनाए रखना है। मुस्लिम तुष्टिकरण, मुस्लिम वोट की खेती ही उन का जीवन है। कुछ लोग बेवजह इस मामले को तूल दे रहे हैं।

आखिर आज चुनाव आयोग को भी इन के डर से सफाई देनी पड़ी है न, कि किसी जुमे, किसी त्यौहार के दिन चुनाव नहीं है। मैं पूछता हूं चुनाव आयोग से कि रमजान के समय चुनाव करवा कर सेक्यूलर ढांचा तोड़ने का अधिकार किस संविधान ने दिया है। चुनाव रमजान के पहले या बाद में नहीं करवाए जा सकते थे।

पूछना तो जैश ए मोहम्मद से भी बनता है कि यह पुलवामा चुनाव बाद नहीं करवाया जा सकता था। पूछना एयर फ़ोर्स से भी बनता है कि यह एयर स्ट्राइक क्या चुनाव बाद नहीं हो सकती थी।

पूछना तो इमरान खान और पाकिस्तान से भी बनता है कि अगर अभिनंदन को वापस करना ही था तो अगर चुनाव बाद वापस करते तो क्या तुम्हें लोग शांति दूत कहने से गुरेज करते, नहीं ही करते न। बल्कि मुमकिन था कि दिल्ली बुला कर भारत रत्न भी दे देते।

सवाल बहुत से हैं। लेकिन अगर कोई ओसामा जी या मसूद अज़हर जी कहता है तो कृपया आप उस पर सवाल हरगिज नहीं उठाएं। आदर देने की भारतीय परंपरा है। पुरानी परंपरा है। इसे कायम रहने दीजिए। भारतीय संविधान को बचाए रखिए। इस के सेक्यूलर ढांचे को तितर-बितर मत कीजिए।

अगर किसी के ओसामा जी, अज़हर मसूद जी कहने से आप के पेट में दर्द होता है तो किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श लें। संविधान बचाने वालों से कृपया पंगा नहीं लें। नहीं तो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला, इंशा अल्ला’ भी अगर यह खुदा न खास्ता बोल देंगे तो आप क्या कर लेंगे भला। अब तक तो इन का कुछ कर नहीं पाए। सो इस मुद्दे पर नो सवाल। जस्ट चिल।

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