दो-तीन घटनाएं हैं, अव्यवस्थित, विश्रृंखल। उनको ही जोड़ने की कोशिश करता हूं।
अभी कुछ मिलेनियल-किड्स से बात हो रही थी। अचानक, आदत से मजबूर मैंने पूछ दिया कि ‘श्रीमद्भगवगीता’ किसने पढ़ी है? कौन जानता है, उसके बारे में?
उसके बाद सन्नाटा। फिर, एक ने कहा – या या सर, दिस इज़ अ ग्रेट नॉवेल। दूसरे ने अपनी ‘फ्रेंड’ को डांटते हुए कहा- हट, ये तो कविताओं का संकलन है।
आखिरकार, एक ने कहा कि ‘या, आइ रिमेंबर… इट वॉज़ द स्टोरी ह्वेयर कृष्णा टोल्ड समथिंग टू अर्जुना…..’।
अभी कल अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘बदला’ देखी। उसमें वे जब महाभारत का उदाहरण देते हैं और फिल्म की नायिका (वह भी यंग है, काफी सक्सेसफुल है, एनर्जेटिक है… ब्ला… ब्ला) से पूछते हैं कि महाभारत के बारे में पता तो है न, तो उसका जवाब होता है – ‘हां, बेसिक स्टोरीलाइन पता है’। बेसिक स्टोरी लाइन?
दुर्घटनावश ‘हिंदू’ जवाहरलाल नेहरू को जितनी गालियां पड़ें, उतनी कम है। उस आदमी ने इस देश की आत्मा का बलात्कार किया, जो अंग्रेज़ भी नहीं कर सके।
आज मिलेनियल किड्स की जो हालत है, उसमें उनका क्या दोष? दोषी हम सब हैं, सबको कॉनवेंट में ही पढ़ाना है, एक चूहा दौड़ है, जिसमें सब लोग भागे जा रहे हैं।
मां-बाप को कभी तिलक लगाते नहीं देखता बच्चा तो वह भला कैसे लगाएगा, अभिभावकों को गीता पढ़ते नहीं देखता, घर में भजन की आवाज़ नहीं गूंजती, लेकिन अजान तो उसको सुनाई पड़ता है, फैज़ कैप पहनने में किसी को शर्म नहीं आती, बल्कि वे तो अपने दो साल के बच्चे को पहना देते हैं औऱ आप सो क्यूट… सो क्यूट… कहते रह जाते हैं।
आपको तिलक धारण करने में शर्म आती है?
नेहरू और उनके पाले वामपंथियों का नैरेटिव सेटिंग कितना तगड़ा है, इसको सोच कर देखिएगा? उनको गीता एक नॉवेल पता है, लेकिन सबरीमला में महिलाओं की एंट्री होनी चाहिए, यह ज़रूर पता है, हाजी अली का पता हो या न हो।
क्यों? क्योंकि, नारीवाद की उनकी समझ इन्हीं कुकर्मी कांग्रेसियों और व्यभिचारी वामपंथियों ने सिखायी है, जिनके लिए क्रांति का मतलब सिगरेट फूंकना, शराब पीना, यत्र-तत्र्-सर्वत्र जहां-तहां, किसी के साथ सो जाना औऱ ब्रा जलाना है।
अभी यूनिलीवर के दो प्रचार आ रहे हैं। उसमें एक में कुंभ जाने का मतलब ये है कि वहां युवक अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़ने जाता है, तो होली का मतलब है कि मुसलमानों पर हिंदुओं का हमला होता है, जिससे एक सेकुलर उनको बचाता है। कौन हैं ये लोग?
खानदानी चोर का बयान तो याद ही होगा – लोग मंदिरों में लड़की छेड़ने जाते हैं? पूरा मीडिया, पूरी एडवर्टाइज़िंग इंडस्ट्री उन्हीं दोगलों से भरी है, जिनके लिए कुछ भी हिंदू घृणा का बायस है।
आंखें खोलिए, सोचिए…
एक मोदी क्या कर लेगा?