जब पुलवामा पर हमला हुआ, तो मोदी से सवाल पूछे गए कि सरकार क्या कर रही है, कहाँ सो रही है, और पाकिस्तान को कब सबक सिखाया जाएगा?
उम्मीद थी कि इससे भारत के लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने में सफलता मिलेगी और चुनाव में लाभ होगा।
लेकिन जब दिखा कि जनमत पूरी तरह से सरकार के साथ है, तो फिर दिखावे के लिए ट्वीट और बयान आए कि हम इस समय पूरी तरह सरकार के साथ खड़े हैं। सरकार अब पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई करे।
शायद उन्हें उम्मीद थी कि हर बार की तरह लोग 2-4 दिनों में ही इस घटना को भी भूल जाएंगे और फिर पाकिस्तान-प्रेमियों का एजेंडा चलता रहेगा।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और इसी कारण भारत-विरोधी भी ज़्यादा समय तक धैर्य नहीं रख पाए। दो-चार दिनों में ही उनके मुखौटे उतर गए और दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया कि पुलवामा में हमले के बावजूद भी प्रधानमंत्री फोटो शूट करवा रहे थे। बाद में यह खबर भी झूठी निकली।
इसके बावजूद भी जब देखा कि लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बना हुआ है और गुस्सा कम नहीं हो रहा है, तो भारत-विरोधियों की बेचैनी और बढ़ी। सरकार और सेना की आक्रामक भाषा सुनकर उन्हें यह चिंता भी हुई होगी कि आतंकवादियों पर फिर से कोई सर्जिकल स्ट्राइक न हो जाए। इसलिए फिर एक झूठ चलाया गया कि देश-भर में कश्मीरी छात्रों पर हिंसक हमले हो रहे हैं। यह भी झूठ निकला।
भारत में बैठे भारत-विरोधियों के मन में शायद यह घबराहट बढ़ती रही कि पाकिस्तान पर कोई बड़ा हमला न हो जाए।
जब वायुसेना के विमानों ने परसों पाकिस्तानी सीमा में घुसकर आतंकी अड्डों को तबाह किया, तो तुरन्त ही भारत-विरोधियों ने वायुसेना का अभिनंदन करने वाले ट्वीट और बयान दे दिए और अधिकतर मीडिया चैनलों ने भी जोर-शोर से चिल्लाकर यह माहौल बनाने की कोशिश की कि पुलवामा का बदला तेरहवीं के दिन ही पूरा हो गया है और 40 के बदले 400 मार दिए गए हैं।
दरअसल कोशिश यह थी कि लोग अब मान लें कि पाकिस्तान को सबक सिखा दिया गया है और अब कुछ और करने की ज़रूरत नहीं है।
लेकिन इसके बाद भी सेना रुकी नहीं। जब उधर से फिर हमला हुआ और इधर से भी जवाब दिया गया, तो पाकिस्तान सरकार ने घबराकर शांति की बातें शुरू कर दीं। तुरन्त ही इस तरफ वाले पाकिस्तान-परस्तों ने भी उसी भाषा में बोलना शुरू कर दिया और #SayNoToWar कहना शुरू कर दिया। जब हमारा एक पायलट पाकिस्तान ने पकड़ लिया, तो शान्ति का लेक्चर देने वालों को एक अच्छा मौका भी मिल गया।
अब सरकार और सेना के दबाव में पाकिस्तान ने कहा है कि भारतीय पायलट को कल लौटा देंगे। जो लोग सिर्फ कमियों के लिए सरकार को कोसते हैं और उपलब्धियों का श्रेय देते समय जिनके मुंह सिल जाते हैं, जो लोग आज तक सेना के खिलाफ बोलते रहे और आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बात करते रहे, जो लोग अब #SayNoToWar ट्रेंड कर रहे हैं, वे कल #ThankYouPakistan भी ट्रेंड कर सकते हैं और इमरान खान को शान्ति का मसीहा भी बता सकते हैं।
वैसे जिन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पर बड़ा भरोसा है और जो शान्ति की उनकी बातों पर भरोसा करना चाहते हैं, उनसे मैं जानना चाहता हूँ कि जब पुलवामा हमले के बाद पूरी दुनिया ने उस हमले की निंदा की थी और भारत से सहानुभूति जताई थी, तब पाकिस्तान के यही प्रधानमंत्री क्यों मौन बैठे हुए थे? आज शान्ति का लेक्चर देने वालों का मुंह तब क्यों बंद था? अगर वो हमारे दोस्त हैं, तो हम पर हमला करने वाले क्यों आज भी उनकी सीमा में सुरक्षित बैठे हैं? उन्होंने आज तक भारत की शिकायतों पर क्या ध्यान दिया और क्या कार्यवाही की?
भारत स्पष्ट रूप से कह चुका है कि ये लड़ाई पाकिस्तान के खिलाफ नहीं है, बल्कि आतंकवाद से है। भारतीय सेना ने जब पिछली बार सर्जिकल स्ट्राइक किया था और परसों भी जो एयर स्ट्राइक किया है, दोनों ही बार केवल आतंकवादियों के अड्डों पर ही हमले किए थे। न तो पाकिस्तानी सेना पर हमला किया और न वहाँ के नागरिकों पर।
लेकिन जवाब में पाकिस्तानी सेना भारत पर हमला करके खुद यह साबित कर रही है कि आतंकियों को बचाने के लिए वह हमेशा आगे रहेगी। इसलिए बेहतर है कि भारत को शान्ति का लेक्चर देने वाले कृपया पाकिस्तानी सेना और सरकार को समझाएं कि भारत पर हमले करने की बजाय आतंकियों को खत्म करें। जब तक आतंकवाद कायम है, तब तक शान्ति नहीं हो सकती। शान्ति के लिए ज़रूरी है कि आतंकवाद को पूरी तरह कुचला जाए। भारत की सेना और सरकार ठीक वही कर रही है।