बेटे इमरान,
अल्लाहताला आपको लम्बी उम्र और अच्छी सेहतमन्द ज़िन्दगी अता फ़रमाये।
आपकी वतनपरस्ती और दीनी तालीम दोनों काबिल ए तारीफ़ है और लड़ने का ज़ज़्बा जो आपको क्रिकेट से विरासत में मिला है, इस पाकिस्तानी सियासत में आकर और निखर गया है ये मेरा मानना है।
पर हमेशा याद रखिये कि जो इन्सान अपने और अपने मुल्क़ के माज़ी से इल्म हासिल नहीं करता अपने मुल्क़ के मुस्तकबिल को नहीं सँवार सकता है और न ही अपने मुल्क़ की हालिया सूरत में कोई काबिल ए तारीफ़ तब्दीली ला सकता है।
हमारे यहाँ आप जम्हूरियत के रास्ते वज़ीर ए आज़म की कुर्सी तक पहुँचे हैं और लगभग पाकिस्तान के अकेले सियासतदाँ हैं जो फ़ौज़ के आला अफ़सर या किसी सियासी खानदान के चश्मोचिराग़ नहीं हैं। खेल ने आपको इस मुकाम तक पहुँचाया और अवाम ने अपने सिर आँखों पर आपको जगह दी है।
बेटे, पाकिस्तानी माहौल किसी सिविलियन क्या किसी फ़ौज़ी तक को इस मुल्क का रहनुमा के तौर पर ज़्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं करता है। ज़म्हूरियत के रास्ते से चुने गये सियासी नुमाइन्दों की मामूली चूक पर उन्हें फ़ाँसी का तख्ता नसीब हो जाता है या किसी फ़ौज़ी के यूनीफ़ार्म छोड़ कर शेरवानी पहनना भी इस मुल्क के मिजाज को नहीं भाता।
आप चाहें तो मेरे, मेरी लख्ते जिगर बेनज़ीर, मरहूम ज़िया उल हक़ साहेब ( खुदा उन्हें जन्नत अता फ़रमाये) , जनाब मुशर्रफ़ साहेब या नवाज़ शरीफ़ साहेब की शराफ़त को पाकिस्तानी माहौल ने क्या तोहफ़ा दिया है खुद महसूस कर के देखें। पाकिस्तान को पहली बार एटमी हथियार हासिल करने वाले मुल्कों में शुमार करवाने वाले साइन्टिस्ट कादिर साहब का हश्र भी आपको याद होगा।
दरअसल हमारा पाकिस्तान एक मज़हबी फ़ितूर की पैदाइश हैं जो हिन्दुस्तान के ज़िस्म से जर्राही के बजाय मजहबी चाकू से काटा गया एक हिस्सा है। अगर हिन्दुस्तान एक पूरा जिस्म है तो पाकिस्तान एक बाज़ू वह भी कटा हुआ। उस जर्राही का नतीज़ा ये है कि हिन्दुस्तान के उस हिस्से से जहाँ से पाकिस्तान कटा है , पीब, मवाद तो रिस रहा है पर जिस्म ज़िन्दा है पर हम कटे हुए हाथ तो जिन्दा हीं नहीं हैं। घावों से भरा एक जिस्म अपने जिन्दा होने की मुनादी कर सकता है पर एक कटा हाथ क्या अपने जिन्दा वज़ूद का ऐलान कर पाया है? जिस हिस्से में दिमाग़ और दिल होता है वही ज़िन्दा कहलाने का हक़ रखता है पर कटे हुए हाथ तो बस एक रोबोटिक हैण्ड बनकर अपना वज़ूद कायम रख सकते हैं और यही हुआ है ।
और यही हुआ भी है। हम कभी अमेरिकी हाथों के खिलौने हैं तो कभी अरब मुल्कों के तानाशाहों के। शायद हम अकेले इस्लामी मुल्क हैं जो जिनके गोली बारूद हिन्दुओं को निशाना बनाने के लिये हैं वरना बाकी सारे इस्लामी मुल्क तो एक दूसरे को निगलने की फ़िराक में ही तेल के कुँओं के ऊपर बारूद का पहाड़ बनाये बैठे हैं।
किसी शायर ने एक शेर में जिक्र किया है कि मुसलमानों मे अबतक जितने मुसलमान मारे हैं उतना तो सारे गैर-इस्लामी देशों ने मिल कर भी नहीं मारे होंगे। फिर ज़रा सोच कर देखिये कि क्या अब भी इस्लाम अब भी वही है जो हमारे पैगम्बर ने सोचा होगा उस आसमानी किताब को खुदा से हासिल करते वक्त?
हमारा पाकिस्तान कभी गद्दाफ़ी का ऐशगाह बन जाता है तो कभी लादेन का ठिकाना। हम गुण्डों के लिये बंकर बन कर रह गये हैं। कभी आइसिस तो कभी तालिबान हमें मोहरा बना देता है। हिन्दोस्तानी सरज़मीन के गुनहगार हमारे यहाँ तफ़रीह कर रहे हैं और बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना के तर्ज़ पर हम बेवज़ह ही अपनी तरक्की की सड़क पर गढ्ढा खोद रहे हैं।
कश्मीर जन्नत है पर इसे पाने की कोशिश में अपने पाकिस्तान को दोज़ख बना देना कौन सी अक्लमन्दी है? हमने अपनी हुकूमत के दौरान इसे पाने की नाकामयाब कोशिश की और पाकिस्तान का मशरीकी हिस्सा बाँग्ला देश बन कर अलग हुआ। फिर अगले कुछ अरसे बाद मुझे भी फ़ाँसी ही मिली । मेरा पूरा कुनबा बिखर गया । बेनज़ीर की बेनज़िर कोशिश ज़ाया हुई और आखिरकार उसे भी पाकिस्तान के एक धमाके ने लील लिया।
बरखुरदार, पाकिस्तानी सदारत की कुर्सी पर बैठना शेर की सवारी है जब तक आप उस पर बैठे हैं आप महफ़ूज़ है पर जैसे ही आप उतरे या आपको उतारा गया आपका आगे का किस्सा अब शेर के रहमोकरम पर। ज्यादातर मौकों पर ज़िन्दगी का खात्मा ही इसके नताइज़ हैं।
मुझे हिन्दोस्तानी सनीमा अजीत का एक डायलॉग याद आता है कि “इसे लिक्विड ऑक्सीजन टैंक में डाल दो, लिक्विड इसे जीने नहीं देगा और ऑक्सीजन इसे मरने नहीं देगा ” बस यही हाल है अपने पाकिस्तान की सियासत का। जम्हूरियत की हिमायत करने वालों को अवाम मरने नहीं देगी और बढ़ता कद देखकर आर्मी जीने नहीं देगी।
बस एक रास्ता है जनाब इमरान साहेब, अमेरिकी डालरों पर निज़ाम ए मुस्तफ़ा कायम करने के मिशन का हिस्सा न बनकर अवाम की तरक्की में उसे लगायें। हम तरक्की पसन्द मुल्कों के लिये अवाम की सेहत और उसकी तालीम सबसे बड़ा मुद्दा है।
फ़ौज़ी साज़ो सामान पर बरबाद रकम को अगर हम अपने अवाम के मुस्तकबिल को सँवारने में लगा दें तो हम एक बहादुर मुल्क के बदले मज़बूत मुल्क तो बन ही जायेंगे। मुझे न जाने क्यों ये लगता है कि हिन्दोस्तान की ओर से पहला हमला नहीं होगा अगर हम दहशतगर्दों को पालकर कश्मीर में तीसरी आलमी जंग की कोशिश को हवा न दें। इस्लाम का अहम हिस्सा नमाज़ है ज़िहाद नहीं। हिन्दोस्तान के हिन्दू तो मुसलमानों को हिन्दुओं में तब्दील करने से रहे। वज़ह आपको मालूम है। हिन्दू होना एक वन वे ट्रैफ़िक है, ये होते हैं बनाये नहीं जाते।
बाकी आप खुद समझदार हैं और ये पता हीं होगा कि हर जंग पाकिस्तान के एक टॉप लीडर की कुर्बानी माँगती है भले ही जंग का नतीजा हमारे हक में हो या हमारे खिलाफ़।
अल्लाह खैर करे। आमीन।
आपका ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो।
नोट : यह एक काल्पनिक खत है