भारतवर्ष सदाचरण के योद्धाओं की भूमि रही है, सदाचरण के शीर्ष पर जो पहुँचा उसे हमने साक्षात ईश्वर का अवतार मानकर पूजा है।
मनुष्य के रूप में सामाजिक मानकों पर जिस नर ने सदाचरण की मिसालें कायम की उसे हमने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम मान लिया।
प्रभु श्रीराम के अवतरण से आज तक ‘रामराज्य’ की संकल्पना का कोई विकल्प नहीं हो सका क्योंकि रामराज्य का मूल कोई वेद, पुराण, उपनिषद, स्मृति न होकर सदाचरण का दर्शन रहा है।
श्रीराम के बाद इस धरा ने बहुत पाप-पुण्यों को देखा और भोगा, महाभारत काल के पतन से लेकर वर्तमान युग में बारह सौ वर्षों की गुलामी भी देखी। साथ ही बर्बर विदेशी सभ्यताओं के अत्याचारों को भी देखा जहाँ किसी क़िताब को अंतिम मान्यता बताकर हर सम्भव दुराचरण को ‘ईमान’ का हिस्सा बता दिया जाता है।
धरती सिसकती रही पर ‘ईमान’ रूपी दुराचरण को आसमानी ब्रह्मवाक्य बताकर जन्नत के ख़्वाब बाँटे जाते रहे। अपराध तो अपनी धरती के मनुष्यों से भी हुआ क्योंकि उन्होंने सदाचरण रूपी उस पूँजी को लुटा दिया जो प्रभु श्रीराम ने हमें सौंपी थी।
रामराज्य कोई मज़हबी आदेश नहीं है जिसे मनुष्यों पर आसमानी किताबों और उनके ख़ुदाई पैगम्बरों के मुंह से निकली बातों पर अमल में लाया जा सकता है, यह सिर्फ़ और सिर्फ़, राज्य के मनुष्यों के सदाचरण का एकीकृत परिणाम भर है।
श्रीराम ने कभी नहीं कहा कि फलानी क़िताब हमें सत्यनिष्ठ बने रहने के लिये कहती है इसलिए सत्य के प्रति समर्पित रहो, उन्होंने सिर्फ़ खुद के आचरण से इसे सिद्ध किया।
श्रीराम का पूरा जीवन सिर्फ़ उनके सदाचरण के इर्द गिर्द है इसीलिए रामायण हमारे लिए पूज्य है, प्रभु श्रीराम का जीवन सदाचरण का आग्रह भर है इसलिए श्रीराम को मानने वाले खुद के पेट पर बम बाँधकर दुनिया में कहीं नहीं फूटते, जहाँ भी जाते हैं सम्मान ही पाते हैं।
ग़ुलामी के बारह सौ वर्षों में हमारे नायकों ने सदाचरण की सीखें भुला दी थीं, राजा का आचरण ही प्रजा के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा होता है। राजा विचलित हुए इसलिए गुलामी आई, प्रजा में भेद और उत्पीड़न का जन्म हुआ।
ऐसे में बहुत समय के विचलन के बाद वर्तमान में एक नायक नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने वर्तमान में अपने कृत्यों से सदाचरण के हिमालय को छुआ है।
संगम तट पर सफ़ाई कर्मचारियों के चरण धोकर कर्म की समानता का अद्भुत संदेश दिया है जिससे रामराज्य के आगमन की गूँज अब चारों दिशाओं में सुनाई देने लगी है।
प्रधानसेवक मोदी ने अपने सदाचरण से जो लकीर खींची है वह पूरे भारतवर्ष के सभी नायकों के लिए एक बेंचमार्क सिद्ध होने जा रही है। जो लोग खुद को, प्रजा को दिनरात बाँटने का नैरेटिव गढ़ते थे अब उनके सामने सदाचरण की चुनौती है।
कोई भी संविधान, कोई भी कानून सदाचरण से जन्मी इस सद्भावना के बराबर की समानता करने लायक स्थिति नहीं ला सकता। नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने इसके साथ ही भारतवर्ष के पिछले बारह सौ वर्षों के नायकों के हिस्से का प्रायश्चित कर लिया है, ठीक वैसे ही जैसे महाराज भगीरथ ने अपने पुरखों के हिस्से का प्रायश्चित माँ गँगा को धरती पर लाकर किया था।
प्रभु श्रीराम के द्वारा खींची गई सदाचरण की लकीर को आज मोदी ने साक्षात स्पर्श कर लिया है और महाराज हर्षवर्धन की राह पर चलते हुए प्रयागराज के कुंभ में ही इन्होंने अपना सर्वस्व दान कर दिया…
रामराज्य फिर से हमारे द्वार पर दस्तक दे रहा है, राजा ने स्वयं प्रभु श्रीराम का आचरण अपने जीवन में उतारकर यह राह दिखाई है। अब प्रजा की बारी है।
सत्यनिष्ठ बनें, अपने आसपास के मनुष्यों को मनुष्य समझें, उन्हें बराबरी का सम्मान दें चाहे वह जिस भी पेशे में हों, तभी रामराज्य आ सकेगा।
नरेंद्र दामोदरदास मोदी वर्तमान में सदाचरण के अजेय योद्धा हैं। उनका साथ अवश्य दें।
जय श्रीराम।