कश्मीर में दो-तीन हजार सशस्त्र आतंकी होंगे। उनके कुछ लाख आतंक समर्थक होंगे, जिनमें से शायद दस हज़ार ऐसे होंगे जो जान का खतरा उठा कर भी आतंक का समर्थन करते रहेंगे।
कश्मीर की समस्या का समाधान सरल है… उन दस-बारह हजार लोगों को गोली मार देना।
शायद दस हज़ार एक्स्ट्रा मारे जाएं जिनको मारने का आपका कोई इरादा नहीं था। देश में दस-बीस जगह कुछ शोर, कुछ हल्ला मचेगा, कुछ विरोध होगा, कुछ हिंसा होगी। उसे संभालने में शायद 10-20 हज़ार और मारे जाएं।
कश्मीर समस्या के समाधान की कीमत है कुल 50 हज़ार लाशें। यह होना चाहिए टारगेट।
इसमें दस हज़ार निर्दोष भी होंगे। उसकी और भी कुछ कीमत है… विश्व समुदाय से थोड़ी आलोचना, थोड़ा विरोध…
पर विश्व समुदाय को इस विषय पर जितना रोष होगा, उससे ज्यादा उनके भारत में निहित स्वार्थ हैं।
तो सचमुच का कुछ नहीं होगा। दो चार देश थोड़ा ज्यादा चिल्लायेंगे। पर अभी जब अमेरिका और रूस में हमारी फ़ेवरेबल सरकारें हैं, और इंग्लैंड में कंज़र्वेटिव हैं… यह सही मौका है। बल्कि उससे भी बड़ी बात यह है कि देश का मूड आपके साथ है।
देश की मिट्टी खून मांगती है। अभी तक हमने हज़ारों सैनिकों का खून बहा कर देख लिया… पर इस मिट्टी में विषबेलें ही पनप रही हैं। शत्रुओं का खून बहा कर देखिये। शायद फसल सुधर जाए।
क्या कहा? खून-खराबा बुरी चीज़ है?
खून देख कर चक्कर खाने वाले देश नहीं चलाया करते…
पुनश्च :
मैंने कहा, कश्मीर समस्या का समाधान 50 हज़ार लाशें हैं… और लोग बार्गेनिंग करने लगे… पाँच हज़ार से हो जाएगा, एक-दो हज़ार से हो जाएगा…
नहीं, पचास हज़ार माने पचास हज़ार। चालीस हो सकता है, पर एक-दो? रेट ठीक लगाओ यार। ऐसा भाव तो मत बोलो कि दुकानदार शटर बन्द करके दुकान बढ़ा दे…
क्यों?
खून देख कर चक्कर आता है?
हिन्दू कलेजा है, खून के नाम से काँप जाता ही है!
जब तक यह खून देखकर चक्कर आने की बीमारी दूर नहीं होगी, हमारा खून बहता रहेगा। जब दुश्मन जान जाएगा कि हमें खून देख कर जोश आता है, गश नहीं… तो समस्या का समाधान हो जाएगा।