कश्मीर का इलाज क्या है – 2

मेरे जो मित्र बात-बात पर युद्ध-युद्ध का उद्घोष करने लगते हैं, मुझे उन पर हंसी आती है। इसलिए नहीं कि यह कोई अनुचित हरकत है। निश्चय ही उरी और पुलवामा जैसे जघन्य अपराधों के समय खून खौलना चाहिए। जिसका खून नहीं खौलता, वह निश्चय ही या तो देशद्रोही है या विक्षिप्त है। किंतु सीधे एक मांग – युद्ध – कतई उचित नहीं है। इसके कई आस्पेक्ट हैं, कई परिप्रेक्ष्य हैं। वह सब हमें ध्यान रखना ही चाहिए।

युद्ध किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को कम अज़ कम एक दशक पीछे धकेल देता है। नई पीढ़ी का पता नहीं, लेकिन मुझे बहुत छोटा होने के बावजूद बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद के भारत की स्थितियां आज तक याद हैं।

मैं 1962 में जन्मा यानी 1971 में मैं सिर्फ नौ साल का था, लेकिन मुझे याद है कि उसके बाद बरसों तक जब भी हम कोई सामान खरीदने जाते थे, तब खुले पैसों के एवज़ में बांग्लादेश की सहायतार्थ कुछ रसीदी टिकट जैसे पर्चे थमा दिए जाते थे।

मुझे नहीं पता कि ऐसा कोई सरकारी आदेश था या नहीं, लेकिन दुकानदार अधिक से अधिक उगाही के लिए विवश था। खुले पैसे वह कतई नहीं लौटाता था। मान लीजिए, आपने दो रुपए चालीस पैसे का सामान खरीदा और तीन रुपए दिए, तो साठ पैसे के टिकट आपके हाथों में होते थे और ढाई रुपया देने की स्थिति में दस पैसे के। यह स्थिति भारतीय उपभोक्ता ने लगभग दो-ढाई दशक तक भुगती थी।

[कश्मीर का इलाज क्या है -1]

दो-तीन मुद्दे हमेशा याद रखें – भारत ने अपने सम्पूर्ण इतिहास में कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। सदा आक्रमणकारियों को उचित उत्तर दिया है। हमारा ध्येय और परम लक्ष्य शान्ति है, लेकिन हमने हमेशा सिद्ध किया है कि यह हमारी शर्तों पर होनी चाहिए। आप आक्रमण करेंगे, तो उसे भी सहन कर लेना ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दायरे में नहीं आता। और यही सबसे बड़ा कारण है कि आज भारत को वैश्विक पटल पर एक विशिष्ट आदर दिया जाता है।

यह भी याद रखें कि पाकिस्तान कश्मीर समस्या में सिर्फ एक अंग है। इस समस्या की शुरुआत उसने अवश्य की, लेकिन अब इसके कई छुपे हुए पक्ष हैं। कई स्टेकहोल्डर हैं। बलोचिस्तान में चीन के अनेक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। वहां वह भीषण स्थानीय विरोध के बावजूद अपने नागरिकों की कॉलोनी बसाने को कटिबद्ध है। खून की अनेकानेक होली वहां खेली गई हैं। हज़ारों बलोच युवक-युवतियां गायब कर दिए गए हैं। पाकिस्तानी आर्मी जब जिसे चाहे, उठा कर ले जाती है और फिर उसका कोई पता नहीं लगता।

ठीक यही हालात उस ग़ुलाम कश्मीर के हैं, जिसे पाकिस्तान ‘आज़ाद कश्मीर’ कहता है। पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में भी चीन की कई परियोजनाएं लंबित हैं। सिंधु नदी पर एक बांध बनाने की परियोजना 14 अरब डालर की है। यह भारत की वर्तमान सरकार का प्रबल विरोध ही है कि पाकिस्तान को इस परियोजना के लिए विश्व बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों से धन जुटाने में दिक्कत आ रही है। यह लंबित है, लेकिन रद्द नहीं। स्थितियां अनुकूल होते ही पाक कभी भी इसे चीन को स्थानांतरित कर सकता है।

भारत ने पीओके से गुजरने वाली सीपीईसी परियोजना पर भी गहरी आपत्ति दर्ज़ कराई है, लेकिन चीन उसे पूरा करने को उद्धत है। यह सब साफ़ करता है कि ग़ुलाम कश्मीर में चीन के गहरे स्वार्थ मौजूद हैं। ऎसी स्थिति में उससे मसूद अज़हर के खिलाफ कोई एक्शन लेने की उम्मीद ही व्यर्थ है।

यहां यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि चीन को भली-भांति पता है कि आतंकवादियों के मुंह खून लगा हुआ है। जब तक वे भारत में गज़वा-ए-हिन्द में व्यस्त हैं, उसके मज़े हैं; जैसे ही यह ध्येय आतंकियों के सामने से हटता है, इन्हीं आतंकियों को याद आ जाएगा कि चीन में लगातार दमित-उत्पीड़ित किए जा रहे उइगुर भी उनकी उम्मा का ही हिस्सा हैं और उनका रुख उस तरफ भी हो सकता है।

यह भी याद रखें कि निहित स्वार्थ सिर्फ चीन के ही नहीं हैं। मध्यस्थ बन कर रोटी का फैसला करने को ऎसी अनेक लोमड़ियां तैयार बैठी हैं, जिन्हें पूरी रोटी अपनी नज़र आती है। तिब्बत को याद करें। चीन ने उसे बड़ी आसानी से हड़प लिया और कोई वैश्विक शक्ति वहां नहीं आई। इसलिए कि वहां उस वक्त उनके कोई हित नहीं सधते थे। अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया आदि में बात-बात पर अपनी सेना तैनात कर देने वाली महाशक्तियों ने तिब्बत की ओर रुख क्यों नहीं किया?

साफ़ है कि वहां से उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं था। इसके उलट कश्मीर की स्थिति कई उन देशों के लिए फायदेमंद है, जो भारत को मज़बूत राष्ट्र के रूप में खड़ा होता देखना नहीं चाहते। उनके षड्यंत्र यहां दबे-छुपे चलते रहते हैं। इनमें कई खाड़ी देश प्रमुख हैं। वे भारत के इस्लामीकरण के लिए अनेक माध्यमों से बड़ी मात्रा में धन भेजते हैं, जो लगातार विभिन्न प्रकार के जिहादी कामों और धर्मांतरण में खर्च किया जाता है। बीच-बीच में धनागम के ऐसे माध्यम कई बार पकड़े गए हैं।

लेकिन इन सबसे परे है हमारी अंदरूनी यानी घर की समस्या। कश्मीर पर विचार करते समय यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों को सुनियोजित तरीके से वहां से बेदखल करना कोई सामान्य घटना नहीं थी। यह इस्लामी उम्मा का जिहाद है। वह ग़ज़वा-ए-हिन्द के लिए उस पर आमादा है और उस पर लगातार काम कर रही है। जो भी इस हक़ीक़त को नकारता है, वह या तो निहायत मूर्ख है या इन ताक़तों का शातिर दलाल है, जो स्वयं इस खेल में शामिल है। ऐसा क्यों है, इस पर कल विचार करेंगे।

क्रमश:…

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