लगाइये साम, दाम, दण्ड, भेद और जकड़ लीजिये शतरंज के राजा की तरह… बस एक शह और मात

आधुनिक पढ़े लिखे युवा और प्रगतिशील हिन्दुओं में सेक्यूलर बनने की गज़ब सी चाहत है पर देश हित में ये एक भी कदम उठाना अपना दायित्व नहीं मानते। आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता ये विचार उनके तब और अधिक उभर कर आते हैं जब कश्मीर या भारत के अन्य हिस्सों में मुस्लिम अतिवादी या आतंकवादी समूह बम धमाकों से मुख्यतया बहुसंख्यकों, आर्मी, आन्तरिक सुरक्षा बलों और सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाते हैं ( कभी कभी अल्पसंख्यक तबका भी गलती से इसके चपेट में आ जाता है ).

पर यदि कोई सिख, हिन्दू नाम इसमें थोड़ा भी जुड़ा मिल जाये सिख आतंकवाद या भगवा आतंकवाद तुरंत पैदा हो जाता है। इस्लाम से आतंक का जुड़ाव आज कल किसी सबूत का मोहताज़ नहीं है सिवाय भारतीय राजनेताओं सरकार के नपुंसक चरित्र को छोड़ कर जो पाकिस्तान की सरकार को 26-1 का डोजियर कई बार सौंपने का अमानवीय गुनाह कर चुके हैं कि इन फ़ाइलों को देख कर पाकिस्तान इन आतंकियों पर कानूनी कार्रवाई करेगा।

पर एक दो दिन की सांकेतिक कार्रवाई के बाद वह सरगना अपने समूह के नाम की वर्तनी सुधार कर और पाकिस्तान का नया एनजीओ बनकर फिर से भारत में आतंक का धंधा शुरू कर देता है और पाकिस्तानी कोर्ट अपर्याप्त सबूतों का रोना रोते हुए उस मज़हबी दामाद की खातिरदारी में कोई कसर न छोड़ते हुए उसे बाइज़्ज़त बरी कर देता है।

नवाज की अम्मा को मोदी की शाल या अटल की बस यात्रा भारतीय खून के प्यासे भेड़िये को आलू पराठा पेश करने की कवायद से ज़्यादा कुछ नहीं थी। कर्मकाण्ड कहता है कि “देवो भूत्वा देवम् यजेत्” अर्थात् स्वयम् को देव तुल्य बनाकर ही देवताओं की पूजा करने की बात सोचनी चाहिये उसी तर्ज़ पर मेरा मत है कि कमीनों से कमीना बनकर ही निबटा जाये।

हमने पाकिस्तान से पाकिस्तान के तर्ज़ में ही बात करनी होगी। दरिंदगी से भरपूर मुहम्मद गोरी से अगर निबटना है आर्य सभ्यता के चौहान बन के नहीं बल्कि मुहम्मद गोरी के अंदाज़ में ही निबटना होगा।

भर्तृहरि ने भी कहा है “शाठ्यम् सदा दुर्जने “। भारत को आतंकवाद से इस आरपार के युद्ध में मात्र इज़रायल पर भरोसा करना चहिये न कि अमरीका या रूस पर। इज़रायल यहूदी हित के मामलों में अमेरिका की भी नहीं सुनता और अमरीका में यहूदी के 3% से कुछ ज्यादा वोट के दम पर अमरीकी राष्ट्रपति की नाक में दम किये रहता है। और हम तो जीत कर भी ताशकंद में रशिया के गेस्ट हाउस में सो जाते हैं और शिमला समझौते में पाकिस्तान की हड़पी ज़मीन और अपने कैदी भारतीय सैनिकों को छुड़बाने की एक नाकाम कोशिश भी नहीं कर पाते, बस गुस्सा गान्धी पर है कि भगत सिंह को क्यों नहीं छुड़ाया।

इज़रायल का यही रवैया हमें भी अपनाना पड़ेगा क्योंकि अमेरिका पाकिस्तान प्रेम के मार्शल ला और भारत समर्थन वाले प्रजातान्त्रिक मूल्यों के बीच झूल रहा है और रशिया निलम्बित शीत युद्ध की शीत निद्रा से निबट हीं नहीं पा रहा है।

एक और खास बात यह कि सब फ़ेसबुकिये देश भक्त मोदी जी को एक और सर्जिकल स्ट्राइक करने की सलाह और पाकिस्तान से दो दो हाथ करने की सलाह दे रहे हैं बगैर ये जाने कि ये कैरम बोर्ड के स्ट्राइकर से स्ट्राइक करने जितना आसान नहीं है और आज कोई भी देश किसी को दो दो हाथ नहीं दिखा सकता क्यों कि अगर दिखाना होता तो लादेन मिलने के बाद अमरीका पाकिस्तान को 3 तलाक दे चुका होता वो भी बिना हलाला के। आज का विश्व पूँजीपतियों की उंगली पर नाच रहा है। उसी का पैसा पाकिस्तान में निवेशित है और भारत में भी।

सबूत मत माँगिये पर चाहे देख लीजिये…. औद्योगिक घरानों से राहत और दया की खेपें तो आ रही हैं पर आँसू और गुस्सा गायब है। अजी जनाब निवेश ने तो तिब्बत को भी भारत की नज़रों में बफर स्टेट के बदले चीन का उपनिवेश बना दिया है।

और क्या कहें एक अकाउण्ट नम्बर भी ह्वाटस एप कुलाँचे भर रहा है जिसमें शहीद सैनिक परिवारों के लिये स्वेच्छा से दान दिया जा सकता है । ये बात सच हो सकती है पर ये निर्देश पीएमओ से जारी नहीं हो रहे हैं फिर शक की गुंजाईश तो रहेगी।

एक महान योद्धा प्रधान मन्त्री विन्सटन चर्चिल ने कहा है कि युद्ध तर्क और विवेकशीलता के नाश के बाद उपजता है। चाणक्य ने मौर्य वंश की स्थापना और नन्द वंश के विनाश की पूरी पट कथा बगैर किसी प्रत्यक्ष युद्ध के रच दी और सफलता भी पाई। हमारे ग्रन्थ शत्रु विजय हेतु चार युक्तियों की बात करते हैं — साम, दाम, दण्ड और भेद । जरा गौर फरमायें युद्ध कहीं चर्चा में है क्या?

कहा भी गया है कि साहसी युद्ध जीतते हैं और विवेकी नेतृत्व युद्ध की संभावना ही उत्पन्न नहीं होने देता। राम से पहले अयोध्या के किसी शासक ने किसी शत्रु से प्रत्यक्ष युद्ध नहीं लड़ा। दशरथ एक बार देवासुर संग्राम में लड़े थे और कैकेयी को उसी दौरान दो वर दिये थे। रघु, अज या रैक्व के शौर्य के किस्से ही उन्हें अजातशत्रु बनाते रहे। कृष्ण ने भी युद्ध टालने के लिये पूरे प्रयास किये कर्ण और दुर्योधन में भेद उत्पन्न करने की कोशिश से लेकर पापियों को विराट रूप तक दिखा दिया।

युद्ध से भागना नहीं चाहिये पर उसे लड़कर जीतने से पहले निपटाने का प्रयास ज़रूर होना चाहिये।

कुछ कोशिशें तो शायद दिख भी रही हैं जैसे एम एफ़ एन का दर्ज़ा या संसद का आपात्कालीन सत्र बुला कर पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करना। विश्व पटल पर पाकिस्तान को अलग थलग करना ही इसका एक मात्र उपाय है पर चीन से अगर मोदी साहब को कोई उम्मीद है तो यह बेकार की सोच के अलावा कुछ भी नहीं।

चीन को पता है कि जैसे ही कश्मीर से आतंकवाद का सफ़ाया हुआ चीन के मुसलमानों के लिये जैश ए मुहम्मद के बदले कोई तैश ए मुहम्मद संगठन खड़ा हो जायेगा और यही हाल रशिया का भी हो सकता है चेचन्या में। फ़्रांस, जर्मनी या जापान भी इस लपेटे में आ सकते हैं इसलिये भारत को इस युद्ध में खुद ही सारा आयोजन करना होगा पर युद्ध को हर हाल में टालना ही श्रेयस्कर होगा। कुछ कदम जो अपेक्षित हैं मेरे विचार से उसे मैं उद्धृत कर रहा हूँ —

०. युद्ध की खबरें मात्र दूरदर्शन पर प्रसारित हो और वह भी सेना के प्रवक्ता के द्वारा। इसका उल्लंघन करने वाले चैनलों पर राष्ट्र द्रोह के अन्तर्गत नान-बेलेबल आरोप स्थापित किये जायें । कश्मीर को संघ शासित राज्य बनाकर शेष भारत के बाशिन्दों को कश्मीरी पण्डितों के साथ बसाया जाये। नव पूजा स्थल निर्माण और धर्म परिवर्तन के लिये जिला अधिकारियों का हस्ताक्षर और सहमति अनिवार्य बनाया जाये और अल्प संख्यक संस्थानों को समान रूप से अन्य संगथनों की तरह हीं ट्रीट किया जाये।

१. पाकिस्तान से अपने हाइ कमिश्नर को बुला लिया जाये और पाकिस्तानी उच्चायोग को बन्द कर दिया जाये।
२. प्रच्छन्न या प्रत्यक्ष पाकिस्तानी निवेशकों के निवेश को तत्काल प्रभाव से स्थिति सामान्य होने तक फ़्रीज़ कर दिया जाये।
३. पाकिस्तान के साथ अपना आयात निर्यात का संबन्ध और हर प्रकार का रिश्ता तत्काल स्थगित किया जाये।
४. पाकिस्तान में भारत और भारतीयों के द्वारा मानवीय सहायता को प्रायः समाप्त या कम किया जाये और पाकिस्तान के कहर के साये में जी रहे बलूचों , पखतूनों, मोहाज़िरों और बिहारी मुसलमानों के संघर्ष को अधिक से अधिक वैश्विक पटल पर समर्थन दें और दिलवायें।
५. इस्लाम के सारे उलेमाओं को सादर आदेश दिया जाये कि दहशतगर्दों को तत्काल काफ़िर घोषित कर उनकी लाशों को नज़र ए आतिश करने का मज़हबी ऐलान करें क्योंकि हमारे सारे सेक्युलर हिन्दू, अल्पसंख्यकों और वामपन्थियों के संग इस बात पर एक मत हैं कि आतंक का कोई मज़हब या रंग नहीं होता। इसलिये सारे आतंकी मुसलमान नहीं काफ़िर हैं और उनकी लाशों के साथ हिन्दुस्तानी हुकूमत अपने हिसाब से श्राद्ध करे या फ़ातिहा पढ़े ये हमारे उलेमा डोभाल साहेब या जनाब मोदी तय करें। ऐसा न करने पर उन्हें शरीअत के आधार पर मादरे वतन के साथ गद्दारी करने वाले शख्श के साथ किये जाने वाले सलूक से वाबस्ता करवाया जाये।
६. पाकिस्तान की सरकार को नेस्तनाबूद करने की कोई भी कोशिश मानवता के लिये खतरा होगी कारण उस स्थिति में पाकिस्तानी एटम बमों पर आतंकवादियों का कब्ज़ा होने की पूरी संभावना है जो किसी भी सूरत में नाकाबिल ए बर्दाश्त होगा।
७. अपनी सीमा को कम से कम ३ किलोमीटर तक की सैन्य पट्टी बनाकर एक अभेद्य दीवार बना दिया जाये जिसे किसी भी धमकी या प्रलोभन देकर पड़ोसी पने हित में ना तोड़ पाये।
८. युद्ध जैसी स्थिति होने पर या कहीं आपात्काल लगे होने पर सोशल मीडिया पर भारत विरोधी प्रचार करने वालों के खिलाफ़ उस प्लेटफ़ार्म से जानकारी लेकर उस व्यक्ति या समूह को तत्काल प्रभाव से दंडित किया जाये।
९. विपक्ष की धर्मनिरपेक्षी प्रवृत्ति यदि देश की एकता या अखंडता के लिये बाधक लगे तो उन पार्टियों की वैधता चुनाव आयोग रद्द करे।
१०. रा और मिलिटरी इंटेलिजेन्स को और स्वायत्तता प्रदान कर विदेशों में अपने डीप एसेट को और ताकतवर बनाया जाये।
११. आतंक से लड़ने के लिये मात्र इज़रायल को मित्र बनाया जाये अमेरिका या रूस को नहीं।

पाकिस्तान हमारा बन्धु है और दिनकर ने लिखा है कि –
अन्याय सहकर बैठ रहना यह बड़ा दुष्कर्म है।
न्यायार्थ अपने बन्धुओं को दण्ड देना धर्म है॥

ध्यान दीजिये दण्ड कहा है युद्ध में मारने की बात नहीं की है। युद्ध तो क्रोध में आकर हाथ में जलता हुआ अंगार हाथ में लेकर शत्रु पर फेंक कर उसको जलाने की कोशिश है पर ये भी ध्यान रकना है कि जबतक वह अंगार फेंका नहीं जाता आपके हाथों को ही जलाता रहेगा। यह भी याद रखिये कि चीन और ताइवान शत्रु हैं पर युद्ध नहीं करते, आखिर क्यों । शायद आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि भारत के अरुणाचल प्रदेश पर चीन के हक को वह ज़ायज़ मानता है। लाहौर बस यात्रा के शुरुआत में प्यारे अटल जी ने कहा था कि हम इतिहास बदल सकते हैं पर भूगोल नहीं। और भूगोल यह है कि पाकिस्तान हमारा है और हमारा पड़ोसी भी।

और हमारी तो नीति है कि आदमखोर जानवरों को भी हम ज़िन्दा पकड़ने की कोशिश हीं करते हैं उसे मज़बूर करके हर तरफ़ से उस पर लगाइये साम दाम दण्ड और भेद और जकड़ लीजिये शतरंज के राजा की तरह … बस एक शह और मात।
सुशान्तिर्भवतु ॥

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