कल 16वीं लोकसभा के अंतिम दिन, अपने अंतिम भाषण में मुलायम सिंह यादव द्वारा कहे गए एक एक शब्द ने भारत के विपक्ष की राजनीति में भूचाल ला दिया है।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और अब संरक्षक, मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुनः प्रधानमंत्री बनने की शुभकामना देना सिर्फ अप्रत्याशित ही नहीं था बल्कि अभूतपूर्व था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि विपक्ष से सत्ता पक्ष के प्रधानमंत्री को पुनः विजयी भवः की मंगल कामना की गई हो।
मुलायम सिंह यादव के इस कथन से जहां कांग्रेस को लकवा मार गया है वहीं राजनैतिक पटल पर, विपक्ष के महागठबंधन की रणनीति से बनी हवा इस कथन ने निकाल दी है।
लोक सभा में मुलायम सिंह के संबोधन का महत्व इस लिए भी बढ़ जाता है क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पूर्व मुलायम सिंह यादव ने अन्य विपक्षी दलों के साथ बन रहे महागठबंधन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और वहां विपक्ष के भीष्म पितामह की भूमिका को स्वीकार किया था।
वैसे तो मुलायम उवाच को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर उनके समर्थक और आलोचक तरह तरह की विवेचना कर रहे है लेकिन मेरे लिए एक बात स्पष्ट है कि मुलायम सिंह यादव का लोकसभा में दिया व्यक्तव्य, तत्क्षण न होकर, पूर्वनिर्धारित था। यह पहलवान मुलायम सिंह यादव का एक बार फिर लगाया गया चरखा दांव था, जिससे उन्होंने एक दांव से कइयों को साधा है।
यह तो सभी मानते है कि मुलायम सिंह ज़मीन के खांटी के नेता हैं। उनके राजनीतिक दांव पेंच भले ही अपरिष्कृत हों लेकिन अपने मित्रों के साथ संबंधों व अपने सम्मान और अपमान दोनों का हिसाब करने में बड़े परिष्कृत हैं।
कल मुलायम सिंह यादव जानते थे कि वे कहां बैठे हैं। सोनिया गांधी के बगल में बैठ कर वो चाहते थे कि उनके द्वारा बोला गया एक एक शब्द, न सिर्फ लोकसभा के अन्य सदस्य स्पष्ट रूप से सुनें, बल्कि उसकी स्पष्टता उनकी राजनैतिक कर्मभूमि में भी पहुंचे।
जिन मुलायम सिंह के मुंह से निकली बातों को समझना मुश्किल होता था, जो आधे आधे शब्द मुंह में ही खा जाते हैं, कल वे हर शब्द पर ज़ोर दे कर, साध कर बोल रहे थे। कल वर्षो बाद उनके एक एक शब्द भारत की जनता के कानों में पहुंचे है। जब वह बोल रहे थे तब उनके शरीर की भावभंगिमा इतनी कड़क थी कि बगल में बैठी सोनिया गांधी के कानों में उनके एक एक शब्द गर्म सीसे की तरह पड़ रहे थे।
राजनीतिक इतिहास में यह तीसरा मौका था जब मुलायम सिंह ने सोनिया गांधी को पटखनी दी है। जब मुलायम सिंह यादव, नरेंद्र मोदी को देख कर, महागठबंधन द्वारा बहुमत न मिलने को स्वीकार कर रहे थे, तब सोनिया गांधी को संदेश दे रहे थे कि कांग्रेस राजनीतिक क्षितिज में है ही नहीं। जब वे मोदी को पुनः प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दे रहे थे तब वो मोदी से कह रहे थे कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर आप स्वीकार्य हैं लेकिन राहुल गांधी स्वीकार्य नहीं है।
इसी के साथ उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश को भी यह संदेश भेजा है कि प्रधानमंत्री का स्वप्न देखने वाली मायावती उन्हें कत्तई बर्दाश्त नहीं है। मुलायम सिंह यादव का अपमान बुढौती में जो पुत्र अखिलेश यादव ने किया है, वे भूले नहीं हैं। लेकिन वे पिता हैं इसलिए वे अपने अपरिपक्व बेटे अखिलेश यादव को, राजनीतिक जीवन की दीर्घायु के लिए, मायावती की छाया से निकाल देना चाहते हैं।
इसके साथ उन्होंने यह सुनिश्चित कर लिया है कि यादवों का वोट एक मुश्त मायावती को नहीं जाएगा। जो समाजवादी पार्टी उन्होंने अपने खून पसीने से खड़ी की है उसका अपने कट्टर राजनैतिक शत्रु का सहायक बन जाना निश्चित रूप से मुलायम सिंह के लिए तकलीफ देने वाला है।
नरेंद्र मोदी को दी गई शुभकामनाएं मुलायम सिंह की विशुद्ध राजनीति व व्यक्तिगत(सैफई परिवार) अवशेष को बचाने का प्रयास है। मुलायम सिंह, जहां 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार की पुनर्वापसी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं वहीं इस बात को लेकर भी आश्वस्त हैं कि 2019 के बाद के मोदी बिल्कुल अलग रूप में सामने आएंगे और विपक्ष के सभी नेता जो भ्रष्टाचार के विभिन्न केसों में फंसे है, वे अपने अपने कर्मो के हिसाब से दंड विधान को प्राप्त होंगे।
मुलायम सिंह, मोदी प्रकोप से बचना चाहते हैं। वे अपने जीवन का अंतिम काल जेल में नहीं काटना चाहते हैं। वो जानते हैं कि उन्होंने बहुत पाप किये हैं, और इसलिए लोकसभा में नरेंद्र मोदी को दी गयी उनकी शुभकामनाएं, उस पाप का राजनैतिक प्रायश्चित करने का प्रयास है।