आज सुबह कुछ निष्पक्ष टाइप और फेमिनिस्ट, लिबरल बट यू नो, आई लव माय कंट्री जैसे अल्फ़ाज़ों से अपनी आंग्ल भाषा को शुरू और खत्म करने वाली देवियां दुखी थीं।
अखबार भी किस स्तर पर उतर आए! ‘जो भ्रष्ट हैं उन्हें मोदी से कष्ट है’ के ऊपर लाल रंग में एक पंक्ति और लिखी है, ‘करुक्षेत्र में विपक्ष को घेरते हुए प्रधानमंत्री ने कहा’! परंतु इस पंक्ति को क्यों पढ़ना?
इस देश में एक तबका ऐसा है जो निरंतर नरेंद्र मोदी की भाषा पर सवाल उठाता है। लेकिन वह तबका मूर्ख भी है और बेईमान भी, और अनिवार्य रूप से कुपठित भी। क्योंकि वो बंगाल और दक्षिण के वामपंथी अखबारों की हेडलाइंस और रिपोर्ताज, संपादकीय से अनभिज्ञ हैं। टीवी चैनल की भाषा नहीं देखता। लखनऊ में प्रियंका की आंधी! यह तो बहुत छोटा सा उदाहरण है।
प्रधानमंत्री मोदी को सबसे खराब और अभद्र भाषा सुनने को मिली है। वामपंथी लिबरल और सेक्यूलर बौद्धिक आतंकवाद ने उन्हें अनगिनत बार मलिन करने का प्रयास किया है। यहां तक कि एनडीटीवी जैसे चैनल ने तो विदेशी मेहमानों से बात करते हुए भी बारंबार मोदी को दोषी, विवादित और विलेन साबित करने की कोशिश की।
पूरा का पूरा विपक्ष उन्हें राक्षस, रावण, मौत का सौदागर, शहीदों के खून की दलाली करने वाला, चोर, डरपोक, क़ातिल, नीच, चाय वाला फेंकू और इससे भी बहुत बदतर विशेषणों से विभूषित करता रहा है परंतु मोदी ने कभी प्रत्युत्तर में ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया।
मोदी शहज़ादे, नामदार कहते हैं। क्या यह अभद्रता है? मनमोहन सिंह के लिए उनका व्यंग्य अटल जी की चुटीली भाषा का पारंपरिक विस्तार था बल्कि वे अटल जी से भी अधिक तीक्ष्ण हुए। मैं, मनमोहन सिंह पर ‘रेनकोट पहनकर नहाने’ वाले उनके बयान को श्रीलाल शुक्ल और परसाई की विलक्षण पंक्तियों के समकक्ष रखता हूं। जिसे सुनकर कांग्रेसी तिलमिला उठे थे।
मेरी खुली चुनौती है। नरेंद्र मोदी के मुंह से निकली अभद्र भाषा का प्रमाण दो! वरना अपनी वॉल से नितांत ही अभद्र भाषा में मोदी को गाली देने वाले बेईमान, शांतिप्रिय समुदाय वालों और मूर्ख, पतित ब्राह्मणों को तड़ीपार करो! एक तरफ अभद्रता का विधवा विलाप, दूसरी ओर खुद को बड़ा लिबरल साबित करने के चक्कर में बहुत ही अभद्र और सरासर झूठी टिप्पणियों को लाइक करना। ये दोगलापन नहीं चलेगा!
मैं दु:खद आश्चर्य से भर उठा हूं कि निष्पक्ष बनने के चक्कर में लोगों की बुनियादी बुद्धि विवेक पर परदा पड़ा गया है। मोदी को सबसे घृणित गालियां दी गई हैं। हमेशा झूठ प्रचारित किया गया। उन्हें फंसाने के सारे कुचक्र बेकार साबित हुए। पिछले सोलह वर्षों से यही चल रहा है। इतना साफ़ षड़यंत्र दिखता नहीं?
भाषा और लोकतंत्र समझाने निकले हो! तो आंखें खोलकर देखो। एक एक शांतिप्रिय समुदाय वाला किस भाषा में मोदी के लिए बात करता है। पूरा विपक्ष, सेक्यूलर मीडिया कैसी अभद्रता करता है। गाली सहने और सुनने की एक सीमा होती है। और वह व्यक्ति गाली सुन रहा जिसने साढ़े चार वर्षों में देश को अभूतपूर्व ऊर्जा, चमक, विकास, विश्वास, शक्ति, बहुत हद तक भ्रष्टाचार से मुक्ति और स्वप्न दिया है।