आप परिस्थितियों से तटस्थ शायद रह सकें निरपेक्ष नहीं रह सकते।
जी, यह बात आगामी चुनाव के संदर्भ में कह रहा हूँ।
हम में से कई बंधुओं ने जो निस्संदेह प्रखर राष्ट्रवादी हैं, बढ़िया चिंतक हैं, सामयिक विषयों पर मुखर होते हैं, ने राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि के चुनाव के समय तटस्थता बरती बल्कि कई बार मतदाताओं को नोटा का विकल्प सुझाया।
वे लोग अचानक ऐसा नहीं कर रहे थे बल्कि लम्बे समय से अपने मित्रों, पढ़ने वालों से यह बात कह रहे थे। आवश्यक ही नहीं अनिवार्य था कि संगठन अथवा उन लोगों को जिनके राज्य-संचालन की क्षमता प्रभावित होने की संभावना थी, उनसे मिल कर बात करनी चाहिए थी। उनकी खिन्नता, अन्यमन्स्कता का समाधान करना था।
ये लोग बाहरी नहीं थे, घर के ही थे मगर उनके प्रति अवहेलना का इस तरह व्यवहार किया गया जैसे वह शत्रु हों। परिणाम सामने है।
नोटा कभी भी विपक्ष के विरोध में नहीं होता यह सदैव सत्ता पक्ष के विरोध में और विपक्ष को अनुपयुक्त पा कर प्रयोग होने वाला शस्त्र है। मध्य प्रदेश में नोटा के कारण 13 सीटें हारी गयीं।
वोटों की गणना होने के समय आपको ध्यान होगा कि भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह गणना के अंतिम चक्र तक कह रहे थे कि हम जीतेंगे। उसका कारण यही था कि अपनी सहज उपलब्धता, किये गए कार्यों पर विश्वास था मगर नोटा की मारकता का ध्यान नहीं था।
नोटा के पक्ष में यह बदलाव केवल सोशल मीडिया के कारण आया है। मध्य प्रदेश में नोटा के पक्ष में दो से तीन हज़ार वोट गए और भाजपा दो सौ, तीन सौ, आठ सौ वोटों के मार्जिन से इन सीटों को गँवा बैठी।
भाजपा के 13 सीटें हारने के बावजूद केवल दो सीटों के अंतर से शिवराज सिंह की जगह कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गये। जिन बंधुओं ने भाजपा का विरोध किया और नोटा को प्राथमिकता दी अब उनके सामने ही नहीं अपितु प्रत्येक राष्ट्रवादी के सामने मार्ग स्पष्ट है।
अब लोकसभा का चुनाव सन्निकट है। इस चुनाव में सीमित प्रभाव के प्रादेशिक विषय नहीं होंगे। इस चुनाव में वह लोग चुने जाने हैं जो भारत का अगले पाँच वर्ष का तात्कालिक और विस्तृत देखें तो दूरगामी भविष्य तय करेंगे।
देश की शांति व्यवस्था, रेवेन्यू संकलन, विदेश नीति, वैज्ञानिक अनुसंधान, परमाणु शस्त्र, आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था, आवश्यक होने पर बाह्य सर्जिकल स्ट्राइक तथा पूर्ण युद्ध, छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश-आन्ध्रप्रदेश में फैलता नक्सलवादी आतंकवाद आदि राष्ट्र के जीवन-मरण जितने आवश्यक विषयों पर नीति बनाने, बजट पारित करने, उसकी निगरानी का सबल तंत्र बनाने, चलाने वाली आँखों को चुनने का अवसर आ खड़ा हुआ है।
आपको ध्यान होना ही चाहिये कि पिछले पाँच वर्षों में बाज़ारों, मॉलों में होने वाले बम विस्फोट देश के फलक से नदारद हैं। ऐसा नहीं है कि वैश्विक आतंकवाद ख़त्म हो गया हो मगर सोनिया गाँधी के आदेश पर चलने वाली मनमोहन सिंह की सरकार की तुलना में भारत बहुत सुरक्षित, व्यवस्थित, आश्वस्त और सबल हुआ है।
अब स्थिति ऐसी नहीं है कि आप अन्यमनस्क या खिन्न रह सकें। अब स्पष्ट है कि आपको तय करना है कि आप किधर जायेंगे। पाले खिंच चुके हैं। रणभेरी बजने ही वाली है। चतुर्दिक संग्राम चलेगा।
आपको तय करना है कि देश की बागडोर इतालवी महिला और उसके ऐसे पुत्र जिसे भारतीयता की सामान्य समझ भी नहीं है, के हाथों में सौंपनी है या ऐसे समूह को देनी है जिसमें निश्चित रूप से इनकी तुलना में प्रखर भारतीयता है। संभव है हम लोगों की आशाओं पर यह उतने खरे नहीं उतरे होंगे मगर इनसे उम्मीद तो है। यह लोग साम्प्रदायिक एवं लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम 2011 बिल ला कर मूल राष्ट्र की ही साँसें घोटने का प्रयास तो नहीं करने वाले।
निश्चित रूप से गौतस्करों की मुठभेड़ों में यशस्वी हुए गौभक्तों को इनका पिछले पाँच वर्षों में संरक्षण नहीं मिला मगर यह काँग्रेसियों की तरह सार्वजनिक रूप से केरल में बछड़े की हत्या कर उत्सव तो नहीं मनाने वाले।
इन्हीं के राज्य में संभव हुआ कि हम सब अपनी बात निर्भय हो कर कह पा रहे हैं। कल्पना कीजिये कि मध्य प्रदेश, राजस्थान में इस चुनाव से पहले कांग्रेस की सरकार होती और किसी ने नोटा-नोटा की डफली बजाई होती और फिर से कांग्रेस की सरकार बनी होती तो क्या होता?
निश्चित था कि तब उन पर रासुका लग गयी होती। खाट खड़ी हो चुकी होती, बिस्तर गोल हो गया होता। विश्वास न हो तो मध्य प्रदेश, राजस्थान के सोशल मीडिया के मित्रों से जानकारी कीजिये। प्रदेश की सत्ता बदलते ही मध्य प्रदेश, राजस्थान में पुलिसिया कार्यवाही होनी शुरू हो चुकी है और सोशल मीडिया के लोगों पर दबाव बनना शुरू हो चुका है।
अब स्थिति यह है कि किसी का भी तटस्थ रहना अपराध होगा। अपनी खिन्नता, अन्यमनस्कता को क़ालीन के नीचे दबा दीजिये और अगले चुनाव के लिये उसी तरह कमर कस लीजिये जैसे पिछले चुनाव में मोदी सरकार को लाने के लिये कसी थी। ध्यान रखियेगा कि इस बार लक्ष्य बड़ा और स्पष्ट है।
अबकी बार चार सौ पार…