जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद दिया है तभी से सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में (लाइलाज अपवादों को छोड़ कर) मौसम बदला बदला सा नज़र आ रहा है।
मैं यह इसलिये नहीं कह रहा हूँ क्योंकि नरेंद्र मोदी ने एक और बढ़िया आक्रामक भाषण दिया बल्कि इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मोदी के कल के भाषण के बाद से मैं उन लोगों को प्रसन्न होकर, आशावाद की वर्षा में भीगते, प्रशस्तिगान करते देख रहा हूँ जिन्होंने 2015, 16, 17 व 18 में विषादी, आक्रोशित व नकारात्मक आलोचना में डूब कर, निराशावाद के ज्वार में डुबकियां मार मार कर NOTA और स्वार्थ में डूबते हुए देखा है।
एक तरफ समर्थक आह्लादित हैं वही दूसरी ओर कांग्रेस सहित सम्पूर्ण विपक्ष में मूर्छा छाई हुई है। इन दोनों ही विलोमित प्रतिक्रिया का कारक मोदी का संबोधन है, जो था तो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब, लेकिन वास्तविकता में वो सांख्यकी व तथ्यों से समाहित एक ऐसा अस्त्र था, जिसमें इतने मारक शूल निहित थे जिसने विपक्ष को कवचहीन करके लहूलुहान कर दिया।
नरेंद्र मोदी के इस भाषण की विशेषता सिर्फ उनके भाषण के कौशल्य पर आधारित नहीं बल्कि उनकी भावभंगिमा में आक्रमकता के समावेश में निहित थी।
सदन को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी में जो आक्रमकता, निर्ममता और प्रचंडता दिख रही थी वह मुक्केबाज़ी या क्रिकेट के ट्वेंटी ट्वेंटी मैच खेल रहे खिलाड़ी में दिखती है और वही समर्थकों को पसंद आया है।
जिन समर्थकों को वर्षो बाद इस 2019 के संबोधन के बाद अपनी नसों में तनाव महसूस किया है, यह सभी समर्थको का सत्य नहीं है, यह उन अधीरों की सत्यता है जो अपने स्वप्न और प्राथमिकता के स्वार्थ पर जीते हैं।
जहां तक मेरा प्रश्न है मुझे इस सबसे फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि मैं खिलाड़ी का आंकलन अंतिम प्रहर पर नहीं करता हूँ। मेरे लिए तो वह श्रेष्ठ है जो आवश्यकतानुसार एक चतुर खिलाड़ी की तरह, सही समय पर अपनी आयुधशाला को प्रदर्शित करता है।
मेरे लिए मोदी के व्यक्तित्व व सम्बोधनों का विश्लेषण करना हो तो मैं उन्हें मुक्केबाजी में क्लैशियास क्ले उर्फ मोहम्मद अली और क्रिकेट में इयान चैपल, क्लाइव लॉयड, माइक ब्रेयरली जैसे उच्चस्तरीय टेस्ट क्रिकेट कप्तानों से करूँगा। जो नेपथ्य के सन्नाटे को समझते भी थे और उस सन्नाटे का अंत भी करते थे।
अंत में मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर जो सन्देह व संशयात्मकता की व्याधि फैली हुई थी उसका निदान लोगों को मिल गया है। वैसे मुझे ज्यादा प्रसन्नता इस बात की है कि 2013 से मोदी के नेतृत्व पर मैंने अटल विश्वास किया था, वह आज भी सार्थक है।
लोग बदले, लोग विचलित हुये, लोग बिके, लोगों ने अपनी बोली लगवाई, लेकिन मैं और मेरा विश्वास अटल रहा है। इसके शायद दो कारण है, जिनका मैं पूर्व में भी अपने लेखों के द्वारा उल्लेख कर चुका हूँ।
एक तो ज्योतिषाचार्य से हुई वार्ता का था और दूसरा स्वयं मेरा मोदी जी के जीवन यात्रा के मूल तत्व को समझने का है। पहले मैं ज्योतिष सबंधी संस्मरण का उल्लेख करता हूँ। (विस्तृत रूप यहां पढ़ें – मोदी निर्मोही हैं, कभी भूलते नहीं विश्वासघात और शत्रुता)
मेरी किसी से मुलाकात हुई, जिन्हे मैं जानता था। वो कोई पण्डित या पेशेवर ज्योतिषी नहीं हैं लेकिन ज्योतिष विद्या में अदभुत हैं और उनकी कीर्ति एक ख़ास तबके में दूर दूर तक फैली हुयी है।
मैंने उनसे वार्ता के क्रम में, एक जिज्ञासु और मोदी समर्थक होने के कारण उनसे पूछा, “क्या अपने मोदी की कुंडली का अध्ययन किया हैं? इतने लोग मोदी की कुंडली का फलादेश दे रहे हैं और पूजा पाठ भी करा रहे हैं, आप यह बताइये इसमें असली कौन सी है?”
वो कुछ मुस्कराते हुए चुप हो गये। मैंने फिर थोड़ी देर बाद उनसे पूछा, लेकिन वो मुझे टालते रहे।
जब काफी देर हो गयी और उनके जाने का समय आया तब उन्होंने गाड़ी में बैठते हुए कहा, “मोदी की सारी कुण्डलियां जो बाज़ार में घूम रही है, वह गलत हैं। वो कुण्डलियां बाज़ार में फेंकी गयी हैं, ताकि लोग अपना यह शौक भी पूरा कर लें।”
फिर वह गाड़ी में बैठ गए। मैं अब भी कुछ और जानने के लिए उत्सुक था लेकिन मैं अपनी सीमा भी जानता था, इसलिए केवल अपनी आँखों से ही निवेदन किया। पता नहीं उनका क्या मूड आया कि मेरी तरफ मुँह कर के बोले, “योग से छेड़छाड़ हो जाती है क्योंकि योग के परिणामों पर असर बहुत से अन्य कारणों का भी पड़ता हैं लेकिन प्रारब्ध नहीं बदलता।”
ठिठके और फिर कहा, “जितना अपयश और लांछन लगेंगे उतना ही यह शक्तिशाली होता जायेगा।” फिर एक योग का नाम बताया जिसको मैंने पहली बार सुना था और अब उस का स्मरण भी नहीं है और कहा, “यह समझ लो कि इस योग का जातक 100 गज (हाथी) का बल रखता है और इसका शत्रु हन्ता योग इतना प्रबल है कि इसे एक कमरे में, 100 लठैतों के साथ, निहत्था बंद कर दिया जाये तो सुबह दरवाजा यही खोलेगा।”
उसके बाद वो मौन हो गये और चले गए।
मैने तब भी विश्वास किया था जब उन्होंने कहा था और आज भी अटल विश्वास है।
जो दूसरी बात है वह मोदी के जीवन, जिसमें राजनीति बाद में आती है, उससे सम्बंधित है। जो व्यक्ति, संन्यास मार्ग से लौटा कर, सांसारिक जीवन की आकांक्षाओं और अवसरों को सारगर्भित करने के लिए भेजा गया हो, वह किसी कारण के अधीन है। नरेंद्र मोदी मानव हैं, उनसे गलतियां होंगी ही लेकिन वो गलतियों को नेपथ्य में छोड़, वर्तमान और भविष्य को दिशा देने में समर्थ हैं, यह भी सत्य है, क्योंकि यह प्रारब्ध है।
कोई कितना भी बड़ा विख्यात और मोदी समर्थक 2013 में रहा हो लेकिन उसको भी, मोदी के साथ ही यह नहीं मालूम था कि भारत की वास्तविक स्थिति क्या थी। 2014 में मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन कर आये तो वह भी किसी की क्या, हमारी आपकी संभावनाओं और आकांक्षाओं को लेकर आये थे। लेकिन शीघ्र ही समझ मे आ गया कि वे स्थिति का जो आंकलन कर के आये थे, स्थितियां उससे कहीं ज्यादा भयानक है। उस वक्त उन्होंने वही किया जो एक प्रकृतिस्थ व्यक्ति को करना चाहिए।
जिसने मुझे 2014 से 2017 तक पढा है, उसको याद होगा कि मैं यही लिखता था कि मोदी आपकी प्राथमिकता के अनुसार तब तक कुछ नहीं करेंगे जब तक उनकी गांठ में दम नहीं होगा। जब तक वो भारत को आर्थिक रूप से मज़बूत और दूसरी वैश्विक शक्तियों को उसके लोभ व लाभ में नहीं बांध लेंगे तब तक वे व्यवस्था व आंतरिक शत्रुओं का संहार नहीं करेंगे।
क्योंकि उनको 1000 वर्ष से गुलाम रही जनता की नपुंसकता, स्वार्थपरायणता व अकर्मण्यता पर पूरा विश्वास था। मोदी इस सत्य को स्वीकार कर चुके हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में आप तब ही सफल हो सकते है जब आपके संहार पर शक्तियां मौन रहें या तटस्थ रहें। चीन, रूस और समस्त पेट्रो डॉलर के मध्य एशिया इसके सबसे बड़े उदहारण है।
मुझे नरेंद्र मोदी द्वारा दिए संबोधन पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है क्योंकि परिणाम, मौसमी मेंढकों के नहीं, प्रारब्ध के अधीन है।