
आज अर्थव्यवस्था के इतिहास पर थोड़ी चर्चा करेंगे और इस इतिहास में मैं अभी चाणक्य या किसी सनातनी आर्थिक दृष्टिकोण नहीं डालूँगा क्योंकि आज भारत में जो अब हो रहा है वह सनातनी तो किसी भी दृष्टि से है नहीं।
सनातन के अतिरिक्त यदि आप विश्व की अर्थव्यवस्था का इतिहास देखें तो माया सभ्यता और पेरू इत्यादि दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप की सभ्यातओं को छोड़ दिया जाए तो दो बातें ही देखने को मिलती हैं।
पहली ‘Totalitarianism’ सर्व सत्तावाद और दूसरी ‘Dystopianism’ सर्वनाशवाद। इन दोनों में एक पश्चिमी पूँजीवाद है जो आपको पूरी तरह नियंत्रित करना चाहता है, दूसरा वामपन्थ है जो चाहता है कि आपका परिवार बिखर जाए और आप दाने दाने के लिए सरकार पर मोहताज रहें, पर इन दोनो के ऊपर आगे की कड़ियों में लिखूगा।
आज चर्चा करते हैं कि ‘क़र्ज़ का इतिहास और उसका स्वरुप पश्चिम में; कैसा रहा है।
आज भारत ही नहीं, लगभग दो तिहाई यूरोप और 100 मिलियन से ऊपर अमेरिका के लोग बुरी तरह से क़र्ज़ में डूबे हुए हैं। और यह क़र्ज़ कुछ इस प्रकार का हो गया है जो कदाचित वे चुका ही न पाएँ।
यह क़र्ज़, होम लोन के रूप में है, कार लोन, क्रेडिट कार्ड का क़र्ज़, मेडिकल क़र्ज़, हॉलीडे का क़र्ज़, पढ़ाई का क़र्ज़, विवाह का क़र्ज़ इत्यादि इत्यादि।
केवल अमेरिका के सामान्य लोगों का यह क़र्ज़ एक डेटा के अनुसार 1.3 ट्रिलियन डॉलर है। केवल समझने के लिए, यह पाकिस्तान के 20 वर्षो के कुल बजट से अधिक है।
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[अर्थव्यवस्था-3 : अर्थव्यवस्था का मूल है ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’]
यदि आजकल की इकॉनमी को साधारण ढंग से समझा जाए तो यह एक माफ़िया इकॉनमी है और माफ़िया सरकार द्वारा नियंत्रित हो रही है।
पर क्या यह क़र्ज़ का स्वरूप आधुनिक है? क़र्ज़ का यह स्वरूप भारत के लिए सर्वथा नया है पर यदि आप रोमिला थापर वाला चश्मा हटाकर सुमेरु और बेबिलोनियन इकॉनमी के बारे में पढ़ें तो ठीक इसी प्रकार से क़र्ज़ बांट कर समाज को नियंत्रित किया जाता था।
लेकिन सुमेरु और बेबीलोनियन इकॉनमी आज की तरह लालची नहीं थी। उस अर्थ व्यवस्था को यह पता था कि क़र्ज़ में डूबा हुआ समाज टूट जाता है और बिखर जाता है। यह भी उन्हें पता था कि क़र्ज़ का ब्याज और चक्रवृद्धि ब्याज, कमाई की गति से तेज बढ़ता है अत: यदि लोगों के ऊपर से क़र्ज़ का बोझ कम नहीं किया गया तो समाज बिखर जाएगा।
और सुमेरु तथा बेबिलोनियन इसके लिए क़र्ज़ माफ़ी का प्रोग्राम समय समय पर चलाते रहते थे।
क़र्ज़ का स्वरूप और उसको वसूलने की ऐतिहासिक विधि क्या थी?
बेबिलोनियन समय में जब राजा का बेटा राजा बनता था या कोई अन्य नया राजा आता था, तो सबसे पहले वह व्यक्तिगत क़र्ज़ को माफ़ करता था और गिरवी रखी उसकी ज़मीन, उसकी पत्नी या उसकी बेटी को वापिस करवाता था।
जी हाँ, आप ठीक पढ़ रहे हैं… ब्याज चुकाने के लिए बीबी, बेटी या बहन को एक रात से लेकर वर्षो के लिए गिरवी रखने का प्रचलन बहुत सामान्य था मध्य एशिया और यूरोप में। बहुत से ट्राइबल्स मिडिल ईस्ट के अभी भी इस व्यवस्था का प्रयोग करते हैं।
अब ध्यान दीजिए, उस समय क़र्ज़ लेने का मुख्य स्रोत राजा होता था आजकल की तरह प्राइवेट बैंक नहीं, और राजा को वह क़र्ज़ माफ़ करने में सहूलियत होती थी, आजकल की डेट मार्केट पर आगे लिखूगा।
किसी को क़र्ज़ माफ़ी के इतिहास को और समझना है तो वह ओल्ड टेस्टामेंट और मोज़ेक लॉ पढ़ सकता है।
हाँ, बेबिलोनियन समय में 75% से अधिक क़र्ज़ माफ़ी, बाढ़, सूखा, अन्य प्राकृतिक आपदा, युद्ध, बीमारी, परिवार के मुखिया के मृत्यु की ही अवस्था में की जाती थी। रोमन व्यवस्था भी कमोवेश वैसी ही थी, कम से कम जूलियस सीज़र के आने तक।
तो, ऐतिहासिक रूप से क़र्ज़ और नगद की अर्थ व्यवस्था का वही स्वरूप भारत में पहुँच गया है जो रोमन साम्राज्य के समय में था। बीज बोने के समय क़र्ज़ की इकॉनमी और फ़सल पैदा होने के बाद नगद की इकॉनमी। भारत का ऐतिहासिक स्वरूप कुछ और था पर अंग्रेज़ों के आने के बाद से अब भारत की अर्थ व्यवस्था का स्वरूप भी रोमन और पश्चिमी क़र्ज़-नगद सिद्धांत की ओर मुड़ चुका है।
अगली कड़ी में ज़िल़े जॉ के बारे में तथा आधुनिक अर्थ व्यवस्था के बारे में
क्रमश:..