राष्ट्रवाद की हवा चली है, सारे अजगर निकल रहे हैं!
जंगल जंगल पूँछ पटक कर, गली गली विष उगल रहे हैं!!
बंग भूमि जो युगों युगों से, माँ काली की धरती थी !
प्राण फूंकती थी मुर्दों में, दुश्मन का बल हरती थी!!
हुए विवेकानंद जहाँ पर, और क्रांति उद्घोष उठा!
आनंदमठ की ज्वाला उपजी, वन्देमातरम घोष उठा!!
चूल हिला डाली थी जिसने, अंग्रेजों के सत्ता की!
जन्म लिए थे जहाँ मुखर्जी, वह धरती है कलकत्ता की!!
एक जेहादन राष्ट्रद्रोह की, गाथा अंकित करती है!
शौर्य कुचल उस बंग भूमि का, भाल कलंकित करती है!!
चिटफंडों के घोटालों से, हाथ है जिसके सने हुए!
पाले हैं जिसने जेहादी, बंग्लादेशी तने हुए !!
गौ गंगा औ गायत्री का, निश दिन भक्षण करती है!
हिन्दू हित का मर्दन करके, सर्पों का रक्षण करती है !!
तस्करियाँ होती हैं प्रतिदिन, गाय बैल औ भैसों की!
बेची जाती हैं बालायें, सत्ता है बस पैसों की!!
उस जेहादन के पापों का, घड़ा आज है भरा हुआ!
सी बी आई के डंडों से, पूरा कुनबा डरा हुआ !!
इसीलिए वह तरह तरह के, राग अलापे जाती है!
कोर्ट कोर्ट में अर्जी देकर, मोदी मोदी चिल्लाती है!!
घड़ा भरा है पापों का, अब जल्दी ही फूटेगा!
जेहादी अरमानों का, हर सपना अब टूटेगा !!
संविधान की माला जपना, मोदी जी अब बंद करो !
दिखला दो गुजराती साहस, स्वर को और बुलंद करो!!
टैंक चढ़ा दो अब जल्दी से, इन श्वानों की छाती पे!
देशद्रोह का गला घोंट दो, श्यामा प्रसाद की माटी पे!!
तर्पण होगा तब श्यामा का, जब रक्तिम हर नाली होगी !
इनके मुंडों की माला से, जिस दिन सज्जित काली होगी!!