मानव रहित Railway Crossing का भुगतान संयोग से मुझे भी प्राप्त हो चुका है।
जुलाई 2012 की एक घटना है। सहरसा में अपने नाम से निबंधन करवाना था। इसलिए मैं और चन्दन भायजी अपने गाँव से bike चलाकर सहरसा गये हुए थे। वहाँ कागजी औपचारिकताओं के बाद मुँह “मीठा-तीता” हुआ। यह सब होते होते साँझ के 7 बज गये थे। नभ में अकस्मात मेघ के काले काले बादल उमड़ पड़े… थे । रह रह कर चमकती हुई आकाशीय विद्युत गर्जना कर रहे थे।
उस समय चन्दन भायजी ही ड्राइव कर रहे थे और मैं पीछे बैठा था। हमलोगों ने बायपास रास्ता चुना था सो उसके बीच में एक मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पड़ता था। मैं तो प्रसन्न था ही.. कुछ गुनगुना भी रहा था। अचानक क्रॉसिंग आ गया.. तभी मैंने देखा कि मेरी दाहिनी ओर कुछ दूरी पर ट्रेन के हेडलाइट का प्रकाश रेलवे track पर पड़ रहा था। मैंने पूरी शक्ति से चिल्लाकर कहा- चन्दन भायजी जल्दी.. !! ट्रैक के बीचों-बीच बाइक आ चुकी थी…
समझिये की उस दिन गये ही थे काम से हम.. चन्दन भायजी फुल एक्सीलेटर देकर track पार कर लिए!
तभी मैंने गिना.. One, Two और Three.. ! कि रेलगाड़ी सन्न… से पास कर गयी। गाड़ी से उतरकर 10 मिनट तक तो हम दोनों एक दूसरे को मौन साधकर देखते रहे। फिर ठहाका मार कर हंसने लगे, बारिश आ चुकी थी.. लेकिन हम बाइक पर बैठकर मधेपुरा के रास्ते घर निकल लिए।
जीवन और मृत्यु के बीच 3 सेकंड का अंतर था, तब से लेकर आजतक कभी-कभी उस क्षण का स्मरण होता रहता है।
आज देश में एक भी मानवरहित Railway crossing नहीं रहने के कारण मोदी सरकार बधाई की पात्र है!
उस मोदी को दुबारा चुनिये जिसको भारतवासियों के जान-माल की परवाह है…..