उत्तरप्रदेश के विवादास्पद आईपीएस अधिकारी जावेद अहमद कल से मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अपनी कट्टर धर्मांधता का साम्प्रदायिक ज़हर उगल रहे हैं।
1983 बैच के आईपीएस अधिकारी ऋषिकुमार शुक्ल को सीबीआई डायरेक्टर बनाए जाने पर उनसे जूनियर, 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी जावेद अहमद ने सोशल मीडिया में मोदी सरकार के खिलाफ यह लिखते हुए अपनी कट्टरपंथी मुस्लिम सांप्रदायिकता का ज़हर उगला है कि… “मुसलमान होने की वजह से उन्हें CBI का डायरेक्टर नहीं बनाया गया है।”
दरअसल नियमों कानूनों की धज्जियां उड़ाने के लिए खुद के मुसलमान होने की सौदेबाज़ी करने के अपने शातिर साम्प्रदायिक हथकंडे सफलतापूर्वक आजमाते रहे हैं जावेद अहमद।
उनके इस शातिर साम्प्रदायिक हथकण्डे के दबाव प्रभाव में क्योंकि मोदी सरकार नहीं आयी तो इन्होने सोशल मीडिया में मोदी सरकार के खिलाफ अपनी कट्टरपंथी मुस्लिम सांप्रदायिकता का ज़हर उगला है।
ज्ञात रहे कि जनवरी 2016 में तत्कालीन उत्तरप्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने जब जावेद अहमद को उत्तरप्रदेश पुलिस का डीजीपी बनाया था तब उत्तरप्रदेश के आईपीएस अधिकारियों के एक बहुत बड़े वर्ग ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया था।
यह विरोध इसलिए हुआ था क्योंकि जावेद अहमद से सीनियर लगभग डेढ़ दर्जन आईपीएस अधिकारी डीजीपी पोस्ट के लिए दौड़ में थे।
जिन नामों पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही थी उनमें सबसे सीनियर रंजन द्विवेदी थे, जो 1979 बैच के आईपीएस थे। उनके बाद 1980 बैच के आईपीएस सुलखान सिंह का नंबर था। सीनियरों की इस लिस्ट में 1981 बैच के एमके सिन्हा और विजय सिंह का नाम भी शामिल था।
लेकिन समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने ऐसे लगभग 15 और सीनियर आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता को धता बताकर जावेद अहमद को डीजीपी की कुर्सी पर बैठा दिया था।
जावेद अहमद से चार-चार पांच-पांच वर्ष सीनियर डेढ़ दर्जन आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता को धता बताते हुए अखिलेश यादव की सरकार ने क्या जावेद अहमद को इसलिए डीजीपी बनाया था क्योंकि वो मुसलमान थे? और साल भर बाद उत्तरप्रदेश में चुनाव भी होने थे।
खुद को सीबीआई का डायरेक्टर नहीं बनाए जाने पर कल सोशल मीडिया में जावेद अहमद ने जिस तरह मोदी सरकार के खिलाफ अपनी कट्टरपंथी मुस्लिम सांप्रदायिकता का ज़हर उगला है, उससे यह साफ हो जाता है कि जावेद अहमद ने मुसलमान होने का साम्प्रदायिक हथकण्डा अपना कर ही उत्तरप्रदेश पुलिस का डीजीपी पद हथिया लिया था और उसी तरह उसी हथकण्डे के सहारे सीबीआई डायरेक्टर की कुर्सी हथियाने की उम्मीद पाले हुए थे।
किंतु मोदी सरकार क्योंकि इनके शातिर साम्प्रदायिक हथकण्डे के दबाव में नहीं आयी और इनसे वरिष्ठ ऋषि कुमार शुक्ल की वरिष्ठता की अनदेखी नहीं की तो जावेद अहमद अपने मुसलमान होने की घिनौनी सौदेबाज़ी पर उतारू हो गए हैं।