कोलकाता की घटना पर कुछ तथ्य, कुछ निष्कर्ष

पहले तथ्य :

  • सीबीआई केंद्र सरकार के निर्देश पर नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर शारदा चिटफंड घोटाले की जाँच कर रही है।
  • सीबीआई द्वारा बार-बार सम्मन किए जाने के बावजूद पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार उपस्थित नहीं हो रहे थे। सीबीआई उन्हें चार बार सम्मन कर चुकी थी।
  • सीबीआई, पुलिस कमिश्नर से शारदा चिटफंड घोटाले पर केवल पूछताछ करने गई थी, गिरफ्तार करने नहीं।

अब निष्कर्ष :

  • आप किसी सरकारी अधिकारी को ड्यूटी करने से कैसे रोक सकते हैं?
  • एक मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार में संलिप्त किसी अधिकारी को बचाने के लिए सारे पुलिस महकमे के साथ स्वयं कैसे पूरी ताक़त झोंक सकती हैं?
  • ममता कोलकाता में जो कर रही हैं उस तर्क के आधार पर तो केंद्र सरकार को अपने सभी विरोधियों के दिल्ली आने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। क्या यह सही होगा?
  • यह घटना देश की एकता-अखंडता एवं संघीय ढाँचे के लिए बड़ी चुनौती होगी। उनकी देखा-देखी और भी राज्य-सरकारें अराजकता का रास्ता चुन सकती हैं और केंद्र सरकार के हर निर्णय को ग़लत बताकर मनमानी पर उतर सकती हैं।
  • कोई भ्रष्ट है या ईमानदार इसे न्याय-प्रक्रिया या वैधानिक तरीकों से तय किया जाएगा या किसी व्यक्ति विशेष के प्रमाण-पत्र के आधार पर?
  • मोदी-विरोध में क्या आप इतनी अंधी हो जाएँगी कि सारी संस्थाओं को ध्वस्त कर देंगीं! यह देश संविधान से चलेगा या आपकी मर्ज़ी से? न खाता न बही, जो ममता कहें वह सही, यह कैसे संभव है?
  • आपके तर्क के आधार पर तो हर आरोपी को यह अधिकार है कि वह जांचकर्ताओं को ही बंधक बना ले। यदि पुलिस कमिश्नर और चुने हुए मुख्यमंत्री का यह व्यवहार सही है तो आम आदमी का ग़लत कैसे?
  • दरअसल ममता का ये सारा प्रयास स्वयं को निर्दोष या पीड़ित साबित कर सस्ती सहानुभूति बटोरना है। उनकी (बद)रणनीति यह है कि उनके इस क़दम से क्षुब्ध होकर केंद्र सरकार कोई कठोर कार्रवाई करे, उन्हें बर्खास्त करे और तत्पश्चात वे स्वयं को शहीद दर्शाते हुए जनता के बीच जाएँ। उनके पास न नीति है, न नीयत। इसलिए अपने निराश-हताश-हतोत्साहित कार्यकर्त्ताओं में उत्साह भरने के लिए केंद्र से सीधा टकराव लेने के अलावा उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। राज्य का जागरूक मतदाता वर्ग पहले ही उनके अंधे शासन से मुक्ति का मन बना चुका है। वे अपने अराजक एवं अंध समर्थकों के उन्माद के बल पर परिवर्तन के आकांक्षी तबकों में भय का वातावरण रचकर उनके आत्मविश्वास को डिगाना चाहती हैं। सीपीएम ने अराजक तत्त्वों के साथ मिल पश्चिम बंगाल में जो-जो किया, ममता भी वही-वही कर येन-केन-प्रकारेण सत्ता को बचाए रखना चाहती हैं।
  • एक और बात यहाँ ध्यातव्य है कि इतने निचले स्तर पर पुलिस का राजनीतिकरण आज तक किसी भी राज्य सरकार ने नहीं किया। जो पुलिस किसी मुख्यमंत्री के इशारे पर सीबीआई अधिकारियों को बंधक बना सकती है, क्या गारंटी है कि कल वह अपने निजी स्वार्थों एवं उद्देश्यों की पूर्त्ति के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करेगी?पुलिस को निरंकुश और विवेकहीन बनाना लोकतंत्र और संघीय ढाँचे की प्रत्यक्ष हत्या होगी।

दृष्टांत :

जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब केंद्र की सारी एजेंसियाँ उनके विरुद्ध जाँच-पड़ताल कर रही थीं । उन्हें अधिकारियों ने 9 घण्टे तक बिठाकर पूछ-ताछ की थी। ममता जी एक अधिकारी से सवाल पूछे जाने पर इतनी हाय-तौबा मचा रही हैं और वहाँ एक मुख्यमंत्री को 9 घण्टे तक बिठाए रखा गया था। क्या उन्होंने एक बार भी किसी जाँच-एजेंसी के रास्ते में रोड़ा अटकाया या अपनी ताक़त का बेजा इस्तेमाल किया?

जिन 23 दलों के नेता लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर कोलकाता में जुटे थे, क्या वे बताएँगे कि क्या ये लोकतांत्रिक तरीका है? आप ईमानदार हैं तो क्यों डर रही हैं? आपकी छटपटाहट बता रही है कि दाल में जरूर कुछ काला है। मोदी हटाइए, लेकिन लोकतंत्र और संघीय ढाँचे का गला तो मत घोंटिए।

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