मैंने पिछले वर्ष 5-6 सितम्बर को लिखा था कि अगर भारत में इतनी बेरोज़गारी है – जैसा कि विपक्ष दावा करता है – तो प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद ‘बेरोज़गार’ युवाओं ने समूचे भारत में एक भी बड़ा प्रदर्शन क्यों नहीं किया?
[देखें – सन्नाटा भी बहुत कुछ कहता है भाग-1, भाग-2, भाग-3]
आज यही प्रश्न अरुण जेटली ने पूछा है कि यदि भारत में रोज़गार सृजन नहीं हो रहा है – जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है – तो तार्किक रूप से देश में एक भीषण सामाजिक आंदोलन होना चाहिए था। जेटली ने कहा कि विगत पाँच वर्ष बिना किसी बड़े आंदोलन के ही बीत गए।
जेटली ने बताया कि मोदी सरकार के पांच वर्षों में वास्तविक जीडीपी वृद्धि औसतन 7.5% रही है। यदि मुद्रास्फीति या मंहगाई का आंकड़ा इसमें जोड़ा जाता है, तो यह वृद्धि औसतन 11.5 से 12% के बीच होगी (मुद्रास्फीति से न केवल वस्तुएं और सेवाएं जैसे दाल, चावल, सब्जी, अन्न, कार, रेस्टोरेंट, हवाई यात्रा, बाल कटाई मंहगी होती है, बल्कि मंहगे दामों के कारण जीडीपी भी बढ़ जाती है)।
क्या यह कल्पना करना संभव है कि इतने तेज़ विकास से कोई रोज़गार सृजन नहीं होगा? उन्होंने बताया कि प्रोविडेंट फण्ड के डेटा सहित कई अन्य आंकड़ों ने अधिक रोजगार सृजन का प्रमाण दिया है।
जेटली के अनुसार, नोटबंदी के पूर्व भारत में एक बड़ी समानांतर अर्थव्यवस्था थी, जो हमारे विकास के आंकड़े में शामिल नहीं होती थी क्योंकि अधिकतर लेनदेन कैश में होता था और औपचारिक अर्थव्यवस्था के बाहर बहुत सारी आर्थिक गतिविधियां होती थीं।
जब नोटबंदी के कारण नकदी बैंक में जमा हो गयी और अधिकतर लेनदेन बैंक के द्वारा होने लगे, तो वह सब आर्थिक गतिविधियां जीडीपी में जुड़ गईं। वर्तमान डेटा निर्णायक रूप से इसे स्थापित करता है। वर्ष 2016-17 और 2017-18 के दौरान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों दोनों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। अगर अर्थव्यवस्था में वृद्धि नहीं होती, तो टैक्स कलेक्शन भी नहीं बढ़ता।
मेरा यह मानना है कि मोदी सरकार के समय में किये गए विकास के कार्यों (हज़ारों किलोमीटर के राजमार्ग और सड़क, हर गाँव में बिजली, हर घर में शौचालय, एयरपोर्ट, हॉस्पिटल्स, पुल, नई ट्रैन और रेल लाइन, स्वच्छता अभियान इत्यादि), उद्यम, निजी क्षेत्र का विकास, इनोवेशन या नई खोज से करोड़ों नए रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं।
अकेले मुद्रा योजना के तहत 15 करोड़ लाभार्थियों को लोन दिए जा चुके हैं। देखते-देखते डिजिटल इकॉनमी, सॉफ्टवेर इंडस्ट्री, एप्स, सेल फ़ोन, ओला और उबेर टैक्सी, Airbnb, ऑनलाइन शॉपिंग, ट्रांसपोर्ट, सर्विस सेक्टर (पर्यटन, ब्यूटी पार्लर, स्वास्थ्य, वकील, रेस्टोरेंट, ट्रासपोर्ट, मास मीडिया, विज्ञापन, प्रॉपर्टी इत्यादि) में वृद्धि हो रही है।
पहली अप्रैल 2014 को भारत की जीडीपी 112 लाख करोड़ रुपये थी, जब प्रधानमंत्री मोदी ने मई में सत्ता संभाली थी। चार वर्ष बाद पहली अप्रैल 2018 को यही जीडीपी 170 लाख करोड़ रुपये हो गयी। दूसरे शब्दों में, चार वर्ष में 51 प्रतिशत की वृद्धि। पहली अप्रैल 2019 में जीडीपी 184 लाख करोड़ पार करने की आशा है। यानि कि मोदी सरकार ने पांच वर्ष में 64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की है।
अगर कोई कहे कि इतने तेज़ विकास के बावजूद रोज़गार उपलब्ध नहीं है, तो वह सत्य नहीं बोल रहा है।
यह अब विश्व बैंक भी मान रहा है कि इस वर्ष भारत से भीषण गरीबी समाप्त हो जायेगी। और यह बात भारत सरकार ने विश्व बैंक को नहीं बतायी है, बल्कि विश्व बैंक की ‘निर्धनता मापने की घड़ी’ कह रही है। इस उपलब्धता का श्रेय मोदी सरकार के समय में हुए तेज़ विकास और स्वच्छ प्रशासन को जाता है।
तभी रोज़गार के बारे में लीक किये गए असत्यापित आंकड़े संदिग्ध हैं और राजनीति से प्रेरित हैं।