25 साल की इशरत मुनीर बर्फ पर हाथ जोड़ दया की भीख मांगती है… तभी जम्मू-कश्मीर के इस्लामी आतंकवादी उसके सर पर गोली मार देते हैं। उसके बर्फ से ढंकी जमीन पर गिरते ही आतंकी दूसरी गोली दाग कर उसकी जान ले लेते हैं।
इशरत मुनीर पुलवामा के डांगरपोरा अरिहाल पुलवामा की रहने वाली थी और 17 दिन पहले मुठभेड़ में मारे गए अल-बदर के दुर्दांत आतंकी ज़ीनत-उल-इस्लाम की रिश्ते में बहन थी। इस्लामी आतंकवादियों ने इशरत को अपने ममेरे भाई ज़ीनत की मुखबिरी के संदेह में उसके घर से अगवा किया और निर्ममता से हत्या कर दिया।
25 साल के इशरत मुनीर के सर पर चली ये गोलियां कोई पहली चली गोली नहीं हैं घाटी में, यह तो घाटी की आम घटना है। लेकिन इशरत पर चली ये गोलियां :
- उन पाखंडी बुद्धिखोरों के सर पर चली गोलियां ज़रूर हैं… जो टीवी स्टूडियो, टीवी कैमरों के सामने जम्मू-कश्मीर में बात-बात पर मानवाधिकार खोजते हैं। पत्थरबाज़ों के लिए समर्थन जुटाते हैं।
- उन स्थापित मीडिया के सस्ते दूकानदारों के सर पर चली गोलियां ज़रूर हैं… जो घाटी से लगायत राजधानी की यूनिवर्सिटी तक भारत के टुकड़े और बर्बादी गैंग की पैरोकारी करते हुए आज़ादीखोर नारों के वीडियो को गलत बताते हैं। जिनकी हिम्मत तक नहीं इस हत्या का वीडियो चलाने की।
- उन लाल बड़ी बिन्दियों से सजी-धजी वैचारिक कोठों की नैतिक तवायफों के सर पर चलीं गोलियां ज़रूर हैं… जो हर छोटी-बड़ी घटनाओं के बाद नारी अधिकार के नारे लेकर मोमबत्तियों के जलूस निकाला करती हैं राजधानी की चौड़ी सड़कों पर।
क्या इशरत भारत की बेटी नहीं थी? क्या इशरत को इंसाफ नहीं मिलना चाहिए?
गिरोह आज चुप हैं। घाटी के इस्लामिक आतंकियों के हाथों मारी गयी इशरत मुनीर की लाश संभवतः लाशों के ऊपर गिद्ध भोज करने के शौकीन अभागों के स्वाद की नहीं।
देश के ऊपर मंडराते ऐसे गिद्धों की पहचान करते चलिए : घाटी की 25 साला इशरत मुनीर को कम से कम नैतिक इंसाफ हासिल हो सकेगा।