नरेंद्र मोदी को घेरने की पिछले चौदह साल की काँग्रेसी रणनीति पर मैंने गहरी नज़र डाली है।
अपने निरीक्षण के इन सभी सालों में मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि काँग्रेस आलाकमान से तमाम छूट योजनाओं के बावजूद उसके तमाम नेता इस मसले पर सौ फीसदी फेल साबित हुए हैं।
इसका एक आईना मोदी के उस कथन में है, जिसमें उन्होंने कहा था – वे मेरे ऊपर पत्थर उछालते हैं और मैं उनसे अपने लिए सीढ़ी बना लेता हूं।
ताज़्ज़ुब होता है कि अपनी पार्टी को एक कॉर्पोरेट घराने की तरह चलाने वाला राजवंश इस सबके बावजूद मोदी को समझ नहीं सका है, अथवा समझ नहीं सकने का अभिनय करने को विवश है।
सर्वाधिक मौजूं और प्रासंगिक सवाल यही है – आखिरकार विवश क्यों है?
साफ़-साफ़ कहूं, तो एक बात स्पष्ट है – इस खानदान को पता है कि उसे जीवनदान सिर्फ इस आशंका के चलते मिला है कि उन्हें जेल भेजा गया, तो वे इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की तरह सहानुभूति की लहर पर सवार होकर पुनर्वापसी कर लेंगे। इस तरह यह अंतिम अवसर है। अगले चुनाव में वर्तमान सरकार की वापसी हुई, तो इन सभी के लिए जेल की कोठरियां सुरक्षित हैं, यह ये सभी भली-भांति जानते हैं।
ठीक इसीलिए पंजा सरे-आम नफरत की नदी में डूब रहा है, डूबते-उतराते आग उगल रहा है, लेकिन इसके बावजूद उसे सहानुभूति के किसी एक पत्ते का सहारा देने वाला भी कोई नहीं है।
इसी के चलते युवराज साम-दाम-दंड-भेद आदि सब कुछ आजमाने को विवश हुए हैं, लेकिन एक चीज़ ऎसी है, जिसे वे पूरी तरह भूल गए हैं और वह है सत्य।
राफेल को लें। युवराज ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां मितरां से भेंट और उनके कथन का हवाला दिया।
खंडन आ गया। वहां से कहा गया कि ऎसी कोई बात पूर्व राष्ट्रपति ने नहीं कही। राहुल बाबा एक ब्लैकमेलर के ब्लॉग पर लिखी गई काल्पनिक बातों को आधार बना कर अनाप-शनाप बक रहे हैं।
बाबा नहीं माने। मानना होता, तो शुरू ही क्यों होते? आज तक उसी राह पर सरपट रपट रहे हैं।
डोकलाम विवाद के दौरान खबरें आईं – राहुल बाबा चीनी अधिकारियों से गुपचुप मिले हैं।
काँग्रेस ने पहले खंडन किया। जब इस अवसर के फोटो सार्वजनिक हो गए, तब माना कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी।
अब मनोहर पर्रिकर बाबा का शिकार बने। यह एक शिष्टाचार भेंट थी। एक कूढ़मग़ज़ तक सहज समझ सकता है कि कोई भी सीएम इतना नासमझ नहीं होता कि अपनी पार्टी के हितों के खिलाफ बयानबाज़ी करे। और यहां तो राहुल बाबा के सामने एक सुलझा हुआ इंसान था। लेकिन आदत से लाचार बाबा सब कुछ भूल कर अनजाना राग अलापने लगे।
ज़ाहिर है कि राहुल बाबा को झूठ से सच्चा इश्क है, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि आम मतदाता उनके इस इश्क में मुब्तिला नहीं है।
यानी बाबा नहीं सुधरे, तो जाना तय है। कहां? यह मुझ से ज्यादा उन्हें भी मालूम है और आप सब को भी।