प्रियंका की पराजय राहुल से बड़ी हो तो देश को जागृत मानूं…

मुझे किंचित आश्चर्य नहीं कि लोग भावुक हो रहे हैं। वे भी जो भाजपा समर्थक हैं। साक्षात भगवती जो आईं हैं, दादी की आत्मा और देह उनकी अपनी लेकर।

अभी तक कांग्रेसी भावुकता और भाट होने का भारतीय गुणधर्म हमारी रूह में रेंगता है। उससे मुक्ति में अभी समय लगेगा। देश की बेटी! और पता नहीं क्या क्या…

सलोना चेहरा, नेहरू गांधी परिवार का ठप्पा ऊपर से इंदिरा प्रियदर्शिनी सा रूप। सुंदर स्त्री देखी नहीं कि लार गिरा बैठे।

स्त्री की व्यक्तिगत उपलब्धियां, राजनीति में उनका सत्व, योगदान कौन देखे! देखना तो बस यह है कि वे सुंदर हैं, गोरी चिट्टी, इंदिरा जी की पोती हैं। बिछ गए जी!

बिछ गए! बहारों फूल बरसाओ! वे कुछ युगांतकारी कर बैठेंगी जो उनके महान भ्राता और त्यागमयी माता न कर सकीं! उफ़! कितने मासूम हो यार!!

यह भी भुला बैठे कि वे उसी खानदान की अगुवाई कर रही हैं, जिससे मुक्ति के लिए इतना कठिन श्रम कोई कर रहा। जिसने कांग्रेसी जाल के अंध विस्तार को काटने में बड़ी सफलता पा ली है। देश की जनता का मोहभंग करने में कामयाब हुआ है।

प्रियंका के पुराने भाषणों को याद करना चाहिए कि उन्होंने देश के एक दरिद्र घर से उठे महानायक के लिए क्या क्या कहा था। कितनी हिकारत और हेय भाव से उन्हें देखने की वे आदी रही हैं। और किस व्यक्ति की पत्नी, बहन और किसकी बेटी हैं।

दरअसल इस मोह और रूपमाया, रंग के प्रभुत्व को काटना ही भारतीय समाज का अभीष्ट है। उसे काट सके तो कांग्रेस की पतित राजनीतिक विरासत से आज़ाद हो सकेंगे।

देखना ज़रूरी यह है कि कांग्रेस ने इस विकट काल में कौन सी मोहिनी का फंदा डाला है। शायद उसका वह ब्रह्मशर है जिसे नष्ट करना बहुत सरल है। इस गुलामी पर मर्मांतक प्रहार हो तो भारतीय राजनीति में स्वर्णयुग आ जाय।

प्रियंका न सिर्फ़ कांग्रेस की भ्रष्ट राजनीति को बचाने के लिए उतारी गई माया है बल्कि उसकी समानधर्मा पार्टियों की ओर से संधान किए जाने वाले आखिरी और मारक हथियार का प्रतिनिधित्व करती हैं।

अतः हमें धैर्यवान होकर इस छल को समझना चाहिए। अगर रूपवती होने से, खानदानी ठप्पा लगाकर आने से ही कोई विजयी हो जावे तो हमें मान लेना चाहिए कि अभी कांग्रेस का खून रगों में दौड़ रहा। अभी तो उनके प्रति हमारी कृतज्ञता शेष है। एकदम धड़क रही है मोह बनकर। इस मोहिनी की पराजय सुनिश्चित करिए तभी महानायक के सत्कर्म फलित होंगे। वरना सब व्यर्थ।

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