आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ बनाए रखें या नहीं, इसका निर्धारण करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी थी।
प्रधानमंत्री मोदी या विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का क्या मत था, सबको पता था।
तीसरे सदस्य के तौर पर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य सीनियर जज जस्टिस सीकरी को खुद की जगह भेजा जहाँ सीकरी का वोट ही फाइनल होता।
जस्टिस सीकरी के निर्णायक वोट के कारण, आलोक वर्मा की सीबीआई से छुट्टी हुई। CVC (केंद्रीय सताराकता आयोग) की रिपोर्ट जिसमें आलोक वर्मा को अपना पक्ष रखने की पूरी छूट दी गयी थी, उस पर ही यह निर्णय किया गया।
अब इस सब में आप भारतीय मीडिया की भूमिका देखिए।
तीन रोज़ से जस्टिस सीकरी को लेकर खोजी पत्रकारिता हो रही है, और मीडिया के इस पाखंड के विरोध में भी सारे सही तथ्य, सुप्रीम कोर्ट के ही एक भूतपूर्व जज, जो मोदी और भाजपा से विरोध के कारण पूरे लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम में मशहूर है, जस्टिस काटजू ने खुल कर रखे हैं।
फिर भी ना मीडिया ने माफी मांगी है, और कई ‘प्रदेशों के सबसे बड़े अखबार’ तो उसी तरह खुल कर इसके लिए बैटिंग कर रहे हैं, जिस तरह से वो राफेल, सबरीमाला और बाकी मुद्दों पर खुल कर धृष्टता में नंगे नाच रहे थे।
एक चीज़ जो हम सब देख नहीं पा रहे हैं, कुछ ऐसा जिसकी जबरदस्त पर्दादारी है। कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खड़गे, आलोक वर्मा को बचाने के लिए एकसाँस हो रहे है, और 10, जनपथ से चले आदेश पर सारी मीडिया जस्टिस सीकरी को ही लपेटे में लेने की कोशिश कर रही है। उन्हीं जस्टिस सीकरी को, जिन्होंने अभी अभी में कई निर्णय सरकार या बीजेपी के खिलाफ दिए हैं।
यहां तो हम एक बार जस्टिस सीकरी को निष्पक्ष मान लेते हैं, पर इससे एक बात तो स्पष्ट है, आप अगर परिवार के खास भी रहे हों, लेकिन अगर आपने परिवार के खिलाफ कोई शब्द बोला, तो बाकी के pidi आपकी लंका लगा देंगे। इकोसिस्टम में आपका अस्तित्व सिर्फ और सिर्फ परिवार के प्रति आपकी unwavering loyalty (अटूट वफादारी) पर ही है।
बाकी, आने वाला बजट सेशन जो हर बार 4-5 दिन या अधिक से अधिक हफ्ते भर का का होता था, इस बार 14 दिन का है। 5वें साल में राजनीति के वादे वाले पर भरोसा है कि पर्दा ज़रूर उठेगा।
आने वाले दिन बहुत ‘इंटरेस्टिंग’ होने वाले हैं। Have you all got your pop-corn with you..??