घटना सम्भवतः अप्रैल 2000 की है। मायावती ने एक दिन अचानक अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। हर पत्रकार अटकलें लगा रहा था कि अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों बुलाई गई है।
पत्रकार वार्ता करने कक्ष में पहुंची मायावती की कुर्सी के बगल में आकर एक व्यक्ति सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया था।
पत्रकार वार्ता की शुरुआत करते हुए मायावती ने घोषणा की थी कि “आज हमने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल को पार्टी से निकाल दिया है और उसकी जगह…” इतना कहकर मायावती ने अपनी कुर्सी के बगल में सावधान मुद्रा में खड़े व्यक्ति को देखकर तेज़ आवाज़ में उससे पूछा था कि “क्या नाम है तुम्हारा…?”
उस व्यक्ति ने बहुत धीमी आवाज़ में मायावती को अपना नाम बताया था। उससे नाम पूछने के बाद पत्रकारों की तरफ देखते हुए मायावती ने कहा था कि… “ये इन्द्रजीत सरोज है, हमने दयाराम पाल की जगह इन्हें पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।”
उस पत्रकार वार्ता में क्योंकि मैं भी उपस्थित था इसलिए मायावती की उपरोक्त राजनीतिक अदा या शैली मैं आजतक नहीं भूला।
दरअसल ऐसा नहीं था कि मायावती ने जिसे प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, उसका नाम भी नहीं जानती होंगी। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसका नाम पूछ के मायावती ने बहुत स्पष्ट संकेत देकर मीडिया को उस व्यक्ति की राजनीतिक हैसियत बता दी थी कि इन महाशय को प्रदेश अध्यक्ष तो बनाया है लेकिन इनका नाम भी मुझे ठीक से याद नहीं। ऐसा कर के मायावती ने उस व्यक्ति को भी बहुत साफ सन्देश दे दिया था कि उसकी राजनीतिक हदें क्या और कितनी हैं।
उपरोक्त घटना के लगभग 18 वर्ष बाद आज अखबारों में छपी एक खबर पढ़कर मुझे मायावती की वह प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आ गयी। क्योंकि वह खबर बता रही थी कि 12 जनवरी को सपा बसपा के गठबंधन की औपचारिक घोषणा के लिए आयोजित हुई मायावती अखिलेश यादव की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती के लिए बड़ी व अखिलेश यादव के लिए छोटी कुर्सी की व्यवस्था की गई थी।
पृष्ठभूमि में दीवार पर साइकिल वाले सपाई झंडे से बड़े आकार का हाथी वाला बसपाई झंडा लगा हुआ था।
ऐसा अनायास, अचानक या अज्ञानतावश नहीं हुआ है। यह मायावती की चिरपरिचित राजनीतिक शैली के अनुरूप ही हुआ है। ऐसा कर के मायावती ने मीडिया और अपने कार्यकर्ताओं/ समर्थकों तथा सपा के भी नेताओं/ कार्यकर्ताओं/ समर्थकों को शुरूआत में ही यह सन्देश दे दिया है कि गठबंधन में किसकी क्या हैसियत है।
मायावती द्वारा इस तरह स्पष्ट सन्देश दिए जाने की यह शुरूआत मात्र है। निकट भविष्य में भी ऐसे कई और सन्देश देने में मायावती को कोई हिचक या परहेज नहीं होगा क्योंकि यह मायावती की राजनीतिक शैली है।
मायावती की इस शैली के साथ अखिलेश यादव कब तक तालमेल बैठा पाएंगे? अखिलेश के धैर्य का बांध ऐसे राजनीतिक थपेड़ों को कब तक सह पाएगा?
[ माया की बड़ी और अखिलेश की छोटी कुर्सी की खबर का लिंक – कुछ कहती हैं कुर्सियां..]
यह सवाल आज इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि लगभग 23 वर्ष पूर्व अत्यन्त हिंसक/ विस्फोटक घटनाक्रम के साथ सपा बसपा का गठबंधन जिस विशेष ‘कारण’ से भंग हुआ था, इस बार मायावती ने सपा बसपा ने गठबंधन की दूसरी पारी की शुरूआत ही उस ‘कारण’ के साथ की है।
‘जिसने कभी ना झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है’। उत्तरप्रदेश की राजनीति में यह नारा पिछले 3 दशकों से मुलायम सिंह यादव की पहचान बना हुआ है। यह नारा कोई अतिरेक या अतिशयोक्ति भी नहीं है।
भारतीय राजनीति के सबसे बड़े अखाड़े उत्तरप्रदेश के अपराजेय योद्धा समझे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कद को चंद्रशेखर, अटल जी, नरसिंह राव, देवेगौड़ा, आईके गुजराल और आज के नरेन्द्र मोदी सरीखे दिग्गजों ने सार्वजनिक रूप से सदैव स्वीकारा है और सम्मान दिया है।
उन्हीं मुलायम सिंह यादव की पार्टी के झंडे का कद बसपाई झंडे से छोटा देखकर तथा अपने उत्तराधिकारी अखिलेश यादव की कुर्सी का कद बगल में बैठी मायावती की कुर्सी से बौना देखकर भारतीय राजनीति के दिग्गज़ योद्धा मुलायम सिंह यादव पर क्या गुज़री होगी यह मुलायम सिंह यादव से बेहतर कोई नहीं समझ सकता।