भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री आपातकाल के बाद के समय में इन्दौर के साकेत में निवास करते थे। वह ‘वोल्टास’ कम्पनी में अधिकारी थे।
एक दिन सामाजिक कार्य से में उनसे मिलने बडे सबेरे जा धमका। मैं उनके निवास पर उनके साथ चाय पी रहा था, तभी वहां टेबल पर रखे अखबार ‘नई दुनिया’ में उस समय प्रकाशित ‘कतरनें’ नामक स्तम्भ पर मेरी नज़र पड़ी।
किसी पत्रकार ने संजय गांधी से पूछा, ‘और भी प्रधानमंत्री के बेटे थे, वह क्यों राजनीति में नहीं आए, आप कैसे आ गये?’ संजय गांधी ने दो टूक जवाब दिया, “और प्रधानमंत्री के बेटे योग्य नहीं होंगे। (यानि संजय गांधी काबिल थे, दूसरे काबिल नहीं थे, इसलिये वह राजनीति में आ गये)।
मुझसे रहा नहीं गया, पूछ लिया ‘अनिल जी आपको इस मुद्दे पर क्या कहना है?’ पहिले तो अनिल शास्त्री सकुचाए पर मेरे बार बार आग्रह करने पर बोले “और प्रधानमंत्रियों के बेटे प्रधानमंत्री के बेटे नहीं थे, वे अपने बाप के बेटे थे।”
मेरे यह कहने पर कि हर कोई अपने बाप का ही बेटा होता है, इसमें क्या नई बात हुई। जवाब में अनिल शास्त्री ने मुस्कराते हुए किस्सा सुनाया।
वह जब छोटे थे, प्रधानमंत्री निवास में रहते थे। एक दिन स्कूल जाने में देर हो गई थी। नाश्ता किये बिना स्कूल जाने लगे। उनकी माता जी ललिता शास्त्री ने कहा, ‘पराठे तैयार हैं। ड्राइवर कार से स्कूल छोड़ आएगा। नाश्ता करके स्कूल जाओ।’
अनिल शास्त्री नाश्ता करने बैठ गए। ड्रायवर ने कार निकालकर पोर्च में लगा दी। इस बीच शास्त्री जी बाहर निकले। ड्राइवर से पूछा, ‘मुझे तो अभी बाहर जाना नहीं है तो गाडी पोर्च में क्यों लगाई है?’
ड्राइवर सलाम ठोकते हुए बोला, ‘बाबा साहेब को देर हो गई है, उन्हें स्कूल छोडने जाना है।’
इतना सुनते ही शास्त्री जी नाराज़ हो गए और बोले, ‘यह सरकारी गाड़ी है, कोई बाबा के बाप की नहीं है। देर हो गई है तो क्या, जाओ उनसे कहो साईकिल से ही स्कूल जाए।’
और तत्काल गाड़ी को पोर्च से निकालकर गिराज में रखने का हुक्म शास्त्री जी ने ड्राइवर को दे दिया।
अनिल जी लम्बी गहरी सांस लेकर धीरे से बुदबुदाए, “दूसरे प्रधानमंत्रियों के बेटे ‘प्रधानमंत्री’ के बेटे नहीं थे, वह अपने बाप के बेटे थे।”
उस दिन का वाकया, अनिल जी की आँखों की किनोर में गीली चमक, पिता के प्रति पवित्र स्नेह और अद्भुत महानता का एहसास मुझे आज भी हो रहा है।
मेरा अपना विचार है अनिल जी एक सच्चे कार्यकर्ता के रूप में आज भी अगर कांग्रेस में हैं तो वह किसी वंशपरम्परा की अंधी भक्ति के कारण नहीं हैं।
वह अपने पूज्य पिताश्री के पदचिन्हों का अनुसरण करके, महान देशभक्त पिता को श्रद्धांजलि देने के रूप में काम कर रहे हैं। अन्यथा वह कांग्रेस सरकार के इतने लम्बे कार्यकल में किसी न किसी ऊंचे पद, उप राष्ट्रपति न सही कम से कम किसी राज्य के ‘राज्यपाल’ सहजता से बन सकते थे।
राजनीति में ऐसी अनोखी, विरली ‘वंश परम्परा’ का पालन करने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी के परिवार को मैं नमन करता हूं।