यह भोजपुर की कहावत है, ‘अन्हरी बिलार के घर में शिकार’। मेरे पिता बचपन से कहते आए हैं, जब भी हम दोनों भाई घर में चीखते या चिल्लाते थे, तो।
आशय यह होता था कि बहुत काबिल हो, तो बाहर चिल्लाओ, इतने काबिल बनो कि बाहर वाले तुम्हारी चीख सुनें, वरना अंधी बिल्ली की तरह अपने ही घर में शिकार करते रहो।
यह हाल तथाकथित सवर्णों, नोटावीरों, बुद्धिजीवियों, दक्षिणपंथियों, भाजपाइयों, संघियों (ध्यान दीजिएगा, सबके पहले तथाकथित लिखा है) का भी है। ये अन्हरी बिलार तो हैं ही, चिर असंतुष्ट भी हैं।
वामपंथियों से, कांग्रेसियों से, लिबिर-लिबर गिरोह से, तथाकथित नारीवादियों से इनकी रार नहीं होती (डर के मारे चौहत्तर जो हो जाती है), बल्कि अपने ही घर में ये शिकार करेंगे- “अच्छा, ये कर दिया। रुको, मोदिया को बताते हैं। नोटा दबाएंगे, मोदी से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं… मोदिया समझता है क्या, राममंदिर नहीं बनाया, 370….”
-ऐसी तमाम बातों के बाद ये वीरपुरुष या वीरमाताएं फेसबुक पर तमाम तरह की उल्टी कर देंगे।
अस्तु। इनको अपने नेता पर भी भरोसा नहीं। भैए, अगर तुमने 2014 में झूमकर, नाचकर, गाकर किसी को अपना नेता चुना तो उसे पांच साल दो। मने, तुमने वोट दिया, अहसान किया… पर, क्या इसका मुआवजा मांगोगे?
अगर वह तुम्हारे हिसाब का नहीं, बदल दो। भाई… लेकिन इसका गाना मत गाओ यार, कांग्रेसी-वामपंथी गिरोह के गुंडों को देखो… कमलनाथ को सीएम बनाया रागा ने… कोई शुचितवाद का ठेकेदार नहीं पहुंचा, राजस्थान में गलत यूरिया बंटवा दिया… कोई बात नहीं। ‘कौमी’ तो खैर बलात्कारी तक का समर्थन कर देते हैं।
कैसे राष्ट्रवादी हो तुम लोग यार? – वयं पंचाधिकम् शतम् – तुम्हारे आदिकवि व्यास लिख कर मर लिए। दूसरों के सामने काहे ये अंडोले, भगत, अपोले, दुकानदार, कांग्रेस का दल्ला… लगाए हुए हो?
अभी चार-पांच घंटे हुए हैं, तथाकथित सवर्णों को 10 फीसदी आऱक्षण की ख़बर आए (वह भी अभी केवल कैबिनेट से अप्रूव हुई है। लोकसभा, राज्यसभा के रास्ते कानून बनने में अभी नौ मील की यात्रा बाकी है) …।
फेसबुकिया विद्वान इसे समझ भी गए, संविधान की धारा भी गिना गए और बखिया भी उधेड़ दी – सुभाष कश्यप भी इतने तेज़ न थे (वैसे, य़दि कानूनी जानकारी चाहते हैं, तो मेरे मित्र प्रभाकर मिश्रा ने कम शब्दों में बड़ी अच्छी पोस्ट लिखी है, पढ़ लीजिए)।
उसी के साथ कुछ हजरात तो उसे मियां लोगों को फायदा पहुंचाने का ‘मियां मोदी’ का अस्त्र भी बता गए। वहीं कुछ मियां भाई मोदीजीवा से पूछने लगे कि पिछड़े मियों का क्या होगा? काहे भाई… जब मुहम्मदवाद में कोई पिछड़ा या अलग है ही नहीं, तो तुमको आरक्षण काहे मिलेगा जी? खैर….
निष्कर्ष के तौर पर यही कहना है कि (और, ये बात मैं बचपन से कहता आय़ा हूं) भाई, ये राजनीति है। मोदी कबड़्डी खेलने नहीं आए हैं। वे अपनी चाल चलेंगे ही। वह इतने बड़े देश के पीएम हैं, 40 वर्षों से शुद्ध राजनीति ही ओढ़ते, बिछाते और पहनते हैं, मुझसे और आपसे थोड़ी अधिक राजनीति तो जानते ही होंगे और थोड़ी अधिक चिंता भी अपनी कुर्सी की कर ही लेंगे।
नहीं?
इतनी रामायण के बाद मेरा मत!
मोदीजीवा ठीक वही कर रहे हैं, जो मैं अपनी किताब के लिए कर रहा हूं। मुझे कतई पसंद नहीं कि मैं सेल्फ-प्रमोशन करूं, पर यह मेरी मजबूरी है। आरक्षण के आधार पर देश बहुत बुरी तरह पहले ही बंट चुका है। यह बेहद घातक निर्णय है, लेकिन यह मोदी की मजबूरी है…
और…
मोदी अपनी मजबूरी को मास्टर-स्ट्रोक में बदलने में माहिर हैं… So just chill and have fun!