Ranbaxy : नीयत गई, लोग गए, बरकत गई

1937 में दो भाइयों ने एक कंपनी बनाई। ये कम्पनी दवा का व्यवसाय करती थी।

भारत में फार्मा क्रान्ति शुरू हुई तो उस समय कंपनी, परिवार के एक युवा और अति उत्साही सदस्य के हाथ में थी जो कि स्वयं भी एक वैज्ञानिक था।

इस वैज्ञानिक व्यवसायी ने कंपनी को भारत की पहली सबसे बड़ी R&D आधारित फार्मा कंपनी बना दिया। पूरे विश्व में 40 से ज़्यादा फैक्ट्री और सारे विश्व बाज़ार में प्रवेश दिलाया। उस समय अमेरिका के जेनेरिक दवा व्यवसाय पर सबसे बड़ा कब्ज़ा इसी कंपनी का था।

Ranbaxy और Dr. Parvinder Singh की कहानी किसी परीकथा जैसी है। डॉ परविंदर सिंह के समय रैनबैक्सी कंपनी भारत के BSE में टॉप 10 लिस्टेड कंपनी थी और market cap था 20 हज़ार करोड़ के ऊपर। अमेरिका के Nasdaq में लिस्टेड कंपनी हुआ करती थी यह कम्पनी…

नब्बे के दशक की शुरूआत में एक और कम्पनी आगे बढ़ रही थी जिसका नाम था Sun Pharma… इस कम्पनी के आगे बढ़ने को डॉ परविंदर सिंह नज़दीक से देख रहे थे और इसकी बढ़त को देखते हुए इसमें निवेश भी करने लगे।

कुछ समय के बाद Sun Pharma ने प्रमोटर दिलीप संघवी ने रैनबैक्सी के डॉ परविंदर सिंह के निवेश पैटर्न पर नज़र डाली तो उनको पता चल गया कि कुछ समय में कंपनी हाथ से गई…

दिलीप संघवी ने तत्काल चण्डीगढ़ के लिए उड़ान ली और काफी मेहनत के बाद डॉ परविंदर सिंह से मिलकर अपनी कंपनी के शेयर वापस खरीदे लेकिन उस समय के मूल्यों के काफी ज़्यादा दाम पर… डॉ परमिंदर सिंह ने शेयर तो वापस कर दिए लेकिन तगड़े प्रीमियम पर, और संघवी को नुकसान उठाना पड़ा था।

1999 में परविंदर सिंह के अचानक मृत्यु के बाद रैनबक्सी का काम करने का तरीका ऐसा बदला कि रैनबैक्सी को अपने शेयर और एसेट बेचने पड़े… कुछ जापान की कंपनी Diichi Sankyo ने खरीदे… डॉ परविंदर सिंह अपने आगे अच्छा मैनेजमेंट वाला उत्तराधिकारी नहीं खड़ा कर पाए थे।

1992 में जिस Sun Pharma को डॉ परविंदर सिंह acquire करना चाह रहे थे उसी सन फार्मा ने 2014 में रैनबैक्सी को पूरी तरह से खरीद लिया… खरीदने के बाद एक एक टुकड़े से रैनबैक्सी नाम मिटा दिया… कहीं भी रैनबैक्सी का नामलेवा नहीं बचा।

जहाँ डॉ परविंदर सिंह के पास खानदानी पैसा और दवा के व्यवसाय का इतिहास था जिसके दम पर उन्होंने रैनबैक्सी को भारत की सबसे बड़ी कम्पनी बनाया… वहीं दिलीप संघवी के पास उधार में लिए 10000 रूपये के दम पर काम शुरू करके बड़ा बनने का सपना और काम करने का निश्चय था…

जो Ranbaxy विश्व भर में नामी कम्पनी थी… जो उत्कृष्ट R&D आधारित उत्पादों का दम भरती थी, जो 9000 करोड़ से ऊपर का मुनाफा लेती थी… आज उस कंपनी को चलाने वाले डॉ परविंदर सिंह के बेटे 13 हज़ार करोड़ की उधारी के साथ घटिया उत्पाद सप्लाई करने का केस झेल रहे हैं।

अब पैसा न चुकाने की स्थिति में इसका अंतिम व्यवसाय Fortis हॉस्पिटल कुछ ही समय में एक मलेशिया की कंपनी IHH को बिकने जा रहा है… ये भी ध्यान देने वाली बात है कि Ranbaxy ने कभी इस कम्पनी IHH को भी, पिछले दरवाज़े से शेयर खरीद कर अधिग्रहित करने की कोशिश की थी।

फिलहाल भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है, लेकिन डील होगी और डॉ परविंदर सिंह के बेटे जेल भी जा सकते हैं क्योंकि जापान की कंपनी Diichi ने भी इन दोनों भाइयों पर धोखाधड़ी और डील के समय बातों को छिपाने का केस कर रखा है…

जब तक Ranbaxy की नीयत ठीक थी, विश्व के बड़े बड़े प्रोफेशनल और पूरा बाज़ार साथ था, वो दवा व्यवसाय की दुनिया की सितारा थी…

…नीयत गई – लोग गए – बरकत गई…

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