कुछ समय से निम्नलिखित विषय समय-समय पर उठाये जा रहे हैं। हर एक विषय पर एक लेख लिखा जा सकता है और मैं पहले लिख भी चुका हूँ। फिर भी, कुछ मुद्दों पर विचार विमर्श का प्रयास करता हूँ।
पहला, सवर्णो का भाजपा से मोहभंग हो रहा है।
SC एक्ट और आरक्षण कोई सरकार नहीं हटा सकती। क्या सवर्ण अपने विरोध के नाम पर राहुल, मायावती, अखिलेश, ममता को चुन लेंगे जो सवर्णो के सबसे बड़े ‘हितैषी’ हैं?
दलित राजनीति हिंसा का सहारा ले रही थी। परिणाम यह होता कि भाजपा के 44 दलित सांसद और सहयोगी दलों के सांसद विद्रोह कर देते। और उसी समय मोदी सरकार अल्पमत में आ जाती। क्या कभी आपने इसके बारे में सोचा है? आपके पास इसकी क्या काट है?
दूसरा, खज़ाना भर के ये जाएंगे। UPA की सरकार आएगी दिल खोल के लुटायेगी। इनको पुनः वापसी की कोई चिंता नहीं।
सोनिया सरकार ने 9 लाख करोड़ से अधिक का एनपीए छोड़ा था, 1.44 लाख करोड़ रुपया ऑयल बॉन्ड का ऋण ले रखा था, 6.5 अरब डॉलर ईरान का बकाया छोड़ रखा है, और 34 लाख करोड़ रुपया ऋण के रूप में बांटा था।
यह कहना तो बहुत आसान है कि प्रधानमंत्री मोदी को लोन चुकाने तथा अन्य सुधारों को करने के लिए 10 से 15 साल लेने चाहिए थे। लेकिन उस लोन को किसी ना किसी सरकार को चुकाना ही पड़ता।
और यह आप कैसे कह सकते हैं कि लगभग 50 लाख करोड़ रुपए के एनपीए, ऑयल बॉन्ड, लोन को 10 से 15 साल में चुकाने का समय उपलब्ध था? और उस लोन पर ब्याज़ कितना होता? क्या ब्याज़ देने से भी सरकार मुकर जाती? आज वेनेज़ुएला दर-दर भीख मांगने को क्यों मजबूर है?
अगर आप मानते है कि प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों का लाभ अगले वर्ष कांग्रेसी ले जाएंगे, तो एक तरह से आप यह मानते हैं कि उन्हें अच्छे कार्य करने की सज़ा मिलेगी!
क्या यही सज़ा आप अपने माता-पिता को देने को तैयार हैं जिन्होंने स्वयं कष्ट सहकर, स्वयं सूखी रोटी खाकर हम सब को शिक्षा दिलायी, हमारी सुख-सुविधा में कोई कमी नहीं आने दी, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके? क्या हमें अपने माता पिता को उस समय उचित कार्यवाही करने का दोषी ठहराना चाहिए?
तीसरा, GST से व्यापारी अप्रसन्न है।
जीएसटी को अब कोई हटा नहीं सकता। इसको हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा जिसमें संसद के अलावा आधी से अधिक राज्य सरकारों की सहमति आवश्यक है। वह संख्या अब नहीं जुटने वाली क्योंकि अभी भी आधे राज्य भाजपा या सहयोगी दलों के पास हैं।
इसके अलावा महाराष्ट्र, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों को जीएसटी से लाभ हुआ है। वह किसी भी हालत में जीएसटी समाप्त करने की अनुमति नहीं देंगे।
रही छोटे व्यापारियों के लाभ बात, कंपोज़िट स्कीम के अंतर्गत उन्हें वैसे भी जीएसटी रिटर्न फाइल करने में काफी सुविधा दी गई है। देखते, देखते अधिकतर व्यापारियों ने जीएसटी का रिटर्न फाइल करना समझ लिया है। इनसे समस्या केवल उन्हीं बड़े व्यापारियों को है जो कर चोरी नहीं कर पा रहे हैं।
चौथा, भगवान राम का मंदिर नहीं बनवाया।
क्या राम मंदिर का निर्माण आज 22 दिसंबर से शुरू किया जा सकता है? अगर नहीं, तो क्या बाधाएँ है? कैसे उनको दूर किया जा सकता है? कृपया अपने विचारो से अवगत कराये। और क्या उन बाधाओं को अखिलेश यादव, मायावती, केजरीवाल, राहुल, ममता, तेजस्वी यादव दूर करवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं? क्या वे राम मंदिर का निर्माण करवा सकते हैं?
आज के राजनीतिज्ञों में केवल प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम में ही यह सूझ-बूझ और इच्छा शक्ति है कि मंदिर के रास्ते में आयी बाधाओं को कैसे दूर किया जाए। सिर्फ धैर्य की आवश्यकता है।
पांचवां, भ्रष्टाचार दूर नहीं हुआ है।
यह सभी मानते हैं कि भारत सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो गया है। यहां तक कि रक्षा हथियारों की खरीद में भी एक भी रुपए का भ्रष्टाचार सामने नहीं आया है। सर्वोच्च न्यायालय तक ने रफाल खरीद की प्रक्रिया, आवश्यकता और कीमत को दोष रहित बताया है।
लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि छोटे स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हुआ है। अभी भी ठेले पर फल लगाने वालों, छोटे उद्यमियों और दुकानदारों से छोटे-मोटे आरोप लगाकर घूस वसूल ली जाती है।
लेकिन क्या भ्रष्टाचार कड़े कानून के अभाव या उस anti-corruption विभाग का आदमी और औरत या लोकपाल की कमी के कारण हो रहा है?
क्या ऐसी खबरें नहीं आई है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीयों ने घूस ली? क्या गारंटी कि ‘anti-corruption विभाग का आदमी और औरत’ और लोकपाल भी भ्रष्ट ना निकल जाए। अभी जहां 1000 रूपए की घूस का रेट है वहां लोकपाल का भी पैसा लग जाएगा और वह घूस बढ़कर 1500 रूपए हो जाएगी।
जिन देशों में भ्रष्टाचार के लिए कड़क सज़ा है, यहां तक कि मृत्युदंड भी, क्या वहां भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? क्या चीन, सऊदी अरेबिया, ईरान इत्यादि देशों में कोई भ्रष्टाचार नहीं है?
भ्रष्टाचार से निपटने का सार्थक उपाय है: अधिक पारदर्शिता, अधिकारियों के विवेकाधीन या discretionary पावर में कमी (यानि कि एक ही कानून की अवहेलना के लिए अलग-अलग दंड या छूट देने की पावर) और टेक्नोलॉजी का प्रयोग।
इसलिए ही प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संस्थागत उपाय कर रहे हैं। कैशलेस इकॉनमी, GST, आधार कार्ड से बैंकिंग व्यवस्था और सब्सिडी को जोड़ना इसी प्रक्रिया का अंग है।
छोटे भ्रष्टाचार पर काबू पा लिया जाएगा लेकिन उसमें समय लगेगा। यह मैं गारंटी से कह सकता हूं कि भ्रष्ट नेताओं को सत्ता में लाकर आप भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकते।