चलो जीते हैं : जूते चमकाने वाले स्वाभिमानी, मेहनती बच्चे ही देश का भविष्य चमकाते हैं

ये है ऋषभ सोलंकी, स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और अपने घर का पालनहार…
जूते पालिश करके पढ़ाई करता है… पारिश्रमिक लेता है, सहायता नहीं… पिता का एक्सीडेंट में निधन हो गया…

इस बच्चे के पिता खरगोन में जूते- चप्पल सुधारने की दुकान लगाकर परिवार की जीविका चलाया करते थे। विधि का विधान कि पिता एक दुर्घटना का शिकार होकर दुनिया छोड़ गए।

ऋषभ उस समय दो-तीन वर्ष का रहा होगा। दो बड़े भाई है, वे भी पढ़ाई के साथ यही काम करते हैं और अपने परिवार की जीविका चलाते हैं। देवास में इस बच्चे का ननिहाल हैं और मामा भी जूते चप्पल सुधारने की दुकान करते हैं।

हादसे के बाद मामा ऋषभ के परिवार को देवास ले आए और तब से ही यह परिवार आत्मसम्मान के साथ जीविका के लिए संघर्ष कर रहा हैं। ऋषभ इतनी कम उम्र में भी आत्मसम्मान के महत्व को जानता हैं। यह बच्चा घूम-घूमकर लोगों के जूते पॉलिश करता है और कोई दया दिखाकर यह कहने की कोशिश करता है कि जूते पालिश रहने दो यह दस-बीस रुपए यूंही रख लो तो यह बच्चा गर्व से कहता है मुझे अपना पारिश्रमिक चाहिए, भीख नहीं।

देवास में इस बच्चे का स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान चर्चा का विषय बना हुआ हैं। ऋषभ सोलंकी इतनी कम उम्र में आदर्श प्रेरणा बनकर देवास की सड़कों पर चहल-कदमी कर रहा हैं। यह बच्चा जब मेरे सामने आया, मैं इसकी स्वाभिमान युक्त विचारों से परिचित हुआ तो मैंने इसके फोटोज़ खींच लिए यह सोचकर कि अपने फेसबुक मित्रों के बीच इसकी खुद्दारी को वर्णन करुंगा।

आज आप लोगों के बीच मैंने ऋषभ को विषय बनाया हैं। निश्चय ही आज ऋषभ को विषय बनाकर मन को असीम सन्तोष मिला है। सरकार पर आश्रित रहने वाले परजीवियों के बीच ऋषभ आदर्श उदाहरण है। परमेश्वर हमेशा इस स्वाभिमानी बच्चे पर अपनी कृपा बनाए रखें।
इन्हीं शुभकामना एवं आशीर्वाद के साथ…..

पं.प्रदीप मोदी


सुनिए पंडित योगेश शर्मा से – इस बालक को हमने कई बार नगर निगम मे नाश्ता और चाय का कहा पर ये नहीं खाता है, ना ही पैसे लैता है।

अधिकतर हम सब इसकी महानता के कारण ना चाहते हुए भी इससे जूते पॉलिश करवाते हैं कभी लेस या जूते का पैंदा खरीद लेते हैं मगर ये बालक बिलकुल इमानदारी से काम करता है और आज भी कभी ये आता है तो हम इसको देखकर कर पॉलिश किये हुए जूते भी जबरन पॉलिश करवाते हैं।

क्योंकि यह कहता है मुझे भिखारी नहीं बनना है, मुझे काम करना है। मैंने कई बार उसको कहा कि कहीं और दुकान या होटल में काम कर ले पर नहीं मानता, कहता है हमारा खानदानी धंधा है मैं यही करूंगा.. मन बहुत दुखी होता है ये बच्चा जब जूते पॉलिश करता है… मगर क्या करें.. हम भी मजबूरी में करवाते हैं… ताकी उसकी ज़्यादा इंकम हो सके।

सुनिए महेंद्र सिंह की – अरे ये बच्चा, मैं इससे मिल चुका हूं, और वाकई में इसके इरादों को देखते हुए लगता है 1 दिन बुलंदी को छूकर रहेगा।
मुझसे इसने एक दिन बड़े शाही अंदाज़ से लिफ्ट मांगी थी और अपने बारे में बताया भी था।
मैंने कुछ पैसे देने चाहे पर इसने मना कर दिया, और कहा कि आप मेरी मदद करना चाहते हैं तो नंबर दे दीजिए मुझे जब कॉपी किताब में पैसे की ज़रूरत होगी तब मैं आपको फ़ोन कर दूंगा, मुझे आज भी उसके फ़ोन का इंतज़ार है।

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