कश्मीरी नवयुवक राकेश रैना की बातें वाकई हिला देने वाली थी कि कैसे एक स्वयंभू राष्ट्र कुछ बन्दूक धारियों के सामने इतना बेबस और लाचार हो सकता था कि वो अपने नागरिकों को ही शरणार्थी बनते हुए देख रहा था।
समय गुज़रा 2002 आया, मैं भी दिल्ली सरकार की नौकरी छोड़ अब केंद्र सरकार का मुलाज़िम हो चुका था।
अप्रैल का महीना था गुजरात में पहले फरवरी में दुःखद गोधरा कांड जिसमें विश्व हिन्दू परिषद के 59 कारसेवकों की ट्रेन की बोगी में जलने से मृत्यु और उस घटना की प्रतिक्रिया में पूरे गुजरात में भड़के दंगो में हजारों मुसलमान और हिन्दुओं की दुःखद मौत हो चुकी थी।
छुट्टी वाले दिन यूँ ही बैठे बैठे सोचा चलो आज रईस मियाँ से बात कर ली जाए, फोन मिलाया तो उस तरफ से किसी महिला की आवाज सुनाई दी।
महिला की आवाज़ सुन पहले तो मैं सकपका गया.. शायद गलत नम्बर लग गया क्योंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि रईस मियाँ के फोन पर किसी महिला की आवाज सुनाई दी हो।
हड़बड़ाहट में “रईस भाई से बात हो सकती है” मैंने पूछा! कुछ देर उधर से कोई जवाब नहीं आया फिर उस जनाना आवाज ने पूछा कि मैं कौन बोल रहा हूँ?
मैंने उसे बताया कि मैं दिल्ली से इक़बाल बोल रहा हूँ और रईस मियाँ का बड़ा पुराना दोस्त हूँ।
अब जो कुछ उस औरत ने बताया एक मर्तबा तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ शायद मेरे नाम की वजह से वो मुझे अपना ही मज़हब वाला समझ रही थी।
उसने बताया कि वो रईस मियाँ की बहन बोल रही थी, अहमदाबाद गुजरात से रईस मियाँ का इंतकाल हो चुका है अभी दो महीने पहले हुए दंगो में उस समय रईस मियां रात में पुराने बाज़ार से अपनी मसालों की पेमेंट ले कर घर वापस आ रहा था और दंगाई भीड़ ने उसे पकड़ कर बेहरमी से तलवारों से काट डाला था।
रईस मियाँ की बहन ने जो मुझे भी अपना ही धर्मावलंबी ही समझ रही थी इन दंगों में साफ साफ मोदी और सत्तारूढ़ BJP का हाथ बताया… और खूब सारी गालियां बद्दुआएं उस भली औरत ने मोदी, अमित शाह, माया कोडनानी, मुन्ना बजरंगी समेत पूरी BJP और आरएसएस व विश्व हिंदू परिषद को दे डाली, सच बताऊँ तो इन गालियों बद्दुआओं से मैं बिल्कुल निर्विकार अविचलित निर्जीव जड़वत फोन कान से लगाये रईस मियाँ के बारे में सोचता खड़ा हुआ था।
2018
मस्तिष्क में विचार बड़ी तेजी से आ जा रहे थे… चलचित्र की मानिंद… एक श्वेत श्याम चलचित्र जिसमें कभी कम्युनिस्ट पार्टी का लीडर गंगाधर अधिकारी पहली बार अलग पंजाब के लिए लोगों को बोलता, कभी मास्टर तारा सिंह, कभी भिंडरावाले, कभी इंदिरा गांधी, कभी 84 के दंगे, बड़ा पेड़ गिरा जैसा कुछ बोलते राजीव गांधी, आग की लपटों में घिरा मासूम सा छोटी सी जुड़ी बांधे पूरन सिंह, दंगो के लिये भीड़ को भड़काते कोंग्रेसी सज्जन कुमार जगदीश टाइटलर HKL भगत, फिर अचानक दृश्य बदल जाता है और श्रीनगर से रातों रात भागते कश्मीरी पंडित रोती बिलखती महिलाओं का छाती पीटना फिर से एक बार दृश्य बदलता है अब की बार तलवारों से रईस मियाँ को काटते हुए लोग, लोगों को उकसाते BJP के नेता माया कोडनानी, मुन्ना बजरंगी, पीछे नेपथ्य में अटल बिहारी जी किसी को राजधर्म निभाने की नसीहत देते, फिर मोदी जी अमित शाह जी दिखाई देने लगते हैं….
और इसी के साथ मैं घबराकर नींद से जाग पलँग पर उठ बैठता हूँ…
बेड की साइड टेबल पर रखे लैम्प को ऑन करके पास ही रखी CASIO की मल्टी परपस घड़ी जो रूम टेम्परेचर से लेकर दिन वार और महीना ह्यूमिडिटी लेबल सब बताती है में टाइम देखा तो रात के 2.40 हुए थे।
वापस टेबल लैंप बन्द करके फिर से सोने की कोशिश करने लगा पर अब नींद कोसो दूर थी, कहीं शून्य में अँधेरे में कुछ दिखने की नाकाम सी कोशिश करता मैं सोच रहा था कि कैसे कोंग्रेस अपने वोट बैंक मुस्लिमों को गुजरात दंगों में कानूनी न्याय दिलवाने में कामयाब रहती है चाहे अधूरा ही सही माया कोडनानी, मुन्ना बजरंगी सहित दर्जनों लोगों को सजा हुई। पूरी दुनिया में कोंग्रेसियों ने इस मामले को उठाया मोदी और अमित शाह जैसे तैसे अपनी जान बचा पाये।
वहीं दूसरी तरफ पंजाब में मारे गए हज़ारों हिन्दू फिर 84 के दंगों में आज तक इंसाफ के लिये लड़ते सिख भाई (जो हिन्दू ही है बेशक वो ना माने) बिसरा दिया गया, रामपुर तिराहा काण्ड?? अयोध्या में गोलियां से भून दिये गए कारसेवक या कश्मीरी पंडित जो अभी भी शरणार्थियों का जीवन जीने को विवश हैं बावजूद 6+4.5 =10.5 साल “हिंदूवादी सरकार” होने पर भी???
फिर कही पढ़ी हुई पंक्ति “राजनीति में मुर्दों को बचा के रखा जाता है, ताकि समय आने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके…” याद आती है
इकबाल सिंह पटवारी