एक सवाल है कि AREA DOMINANCE क्या होता है यह आप में से कितने ‘सिविलियन’ हिन्दू समझते हैं?
‘सिविलियन’ पर ज़ोर देने का कारण इतना ही था कि यह संज्ञा अधिकतर सैनिकी उपयोग में आती है, लेकिन जरूरी नहीं कि इसका अर्थ मिलिटरी परिप्रेक्ष्य में ही लिया जाये। कुल मिलाकर ‘अपने एरिया में अपनाइच आवाज़’ कह सकते हैं जिसके कई अर्थ निकल आते हैं।
सैनिकी बल, राजनैतिक बल, संस्कृति का हावी होना, इनके अलावा कई और पहलू हैं इस संज्ञा के। विशेषकर सांस्कृतिक टकराव को लेकर… अब पाठकों को यह बात आसानी से समझ में आने लगी है और बोलने का साहस रखते हैं, यह भी एक अच्छी बात है। इसे मोदी राज की उपलब्धि है कह दें, तो कई लोग क्षुब्ध होंगे, इसलिए रहने देते हैं।
सामान्यजन का इसके सांस्कृतिक पहलू से रोज़ाना वास्ता पड़ता है जब चारों ओर से कर्णकर्कश अज़ान नींद खराब करता है, आरती करने पर पथराव किया जाता है, अचानक मौके की जगहों पर कोई पीर बाबा की कब्र प्रकट हो जाती है, मूर्ति विसर्जन की शोभायात्रा पर अकारण पथराव किया जाता है, तारीखें बदलने को प्रशासन को बाध्य करता है आदि आदि।
या फिर स्कूल में मेहँदी, माला टीका पर बच्चों को दंडित किया जाता है। युवतियों को आने जाने में सर झुकाकर फब्तियों को अनसुना करना पड़ता है और छेड़छाड़ को बर्दाश्त करना पड़ता है।
ये और ऐसी अनगिनत बातें Area Dominance में आती हैं। लिस्ट गिनाने जाएँ तो भी मेमरी कम पड़ जाएगी, बेहतर होगा किसी स्थानीय मौलवी या पादरी से मशवरा किया जाए।
अकादमिया में तोते की तरह झूठ न दोहराने पर ज़ीरो मिलना, या वामपंथियों द्वारा तरह तरह का शोषण दोहन भी उनके Area Dominance में आता है। केरल या पहले बंगाल में हुआ करता था, वहाँ के रहनेवालों को वामी तानाशाही क्या है पूछिए ज़रा।
शहर में प्रवेश करते ही आकार में बड़े विधर्मी प्रार्थनास्थलों का सामना होना, उसके इर्दगिर्द उन लोगों का जमघट और लोगों का टकराव से बचकर चलना आदि सभी इसी dominance में आता है।
यह सब क्यों याद आया? या फिर Area Dominance पर क्यों लिख रहा हूँ?
आज एक वीडियो देखा जिसमें कोई बंधु बोल रहे थे कि भाजपा ने तीन राज्य क्यों खोये? हम ने उनको हराया इसलिए हिन्दू हमें कोस रहे हैं, पर वे यह क्यों नहीं जानना चाहते कि ऐसा क्यों हुआ? बाकी फिर वही हमेशा के कारण थे।
युद्ध में, फॉरवर्ड पोस्ट खाली किए जाते हैं उसके स्पष्ट कारण होते हैं और सभी एक सुस्पष्ट युद्धनीति के तहत होते हैं। लेकिन पोस्ट कमांडर से अपनी पटती नहीं, यह कारण मान्य नहीं होता। क्योंकि ज़मीन छोड़ने के लिए नहीं होती। उसकी रक्षा आप की ज़िम्मेदारी होती है। आप के ही भरोसे तो बाकी लोग हैं। अपनों से अनबन के कारण अपनी ज़मीन शत्रु को सौंप देने के अर्थ स्पष्ट होते हैं।
आप ने नोटिस किया है या नहीं पता नहीं, लेकिन जहां काँग्रेस जीती है वहाँ लोगों के फेसबुक व्यवहार में काँग्रेस के जीतते ही फर्क दिख रहा है। जो भाजपा को चिढ़ाते ही चल रहे थे वे शबाब पर हैं, अन्य चिल मार रहे हैं, मौसम का अंदाज़ ले रहे हैं।
बाकी आप सब कुछ देखकर भी जो हो रहा है उसे युद्ध न कहकर नॉर्मल ठहराने की कोशिश करना चाहते हैं तो कृपया सुन त्ज़ु की ‘आर्ट ऑफ वॉर’ अवश्य पढ़ लीजिये, हिन्दी अनुवाद भी मिलता है। खरीदना होगा लेकिन ज़िंदगी के सामने दो सौ रुपये की क्या बिसात? इंग्लिश तो मुफ्त में कई अनुवाद मिल जाएँगे, चाहिए तो मैं ही दे दूँ।
सुन त्ज़ु कहता है – और भी कई कहते हैं – कि हर युद्ध में हिंसा नहीं होती, बल्कि जो बिना रक्तपात के जीते वही महान सेनापति होता है।
वैसे, मुहम्मद ही कहता है कि बिना भरपूर रक्तपात के युद्ध नहीं रोकना चाहिए / शांति की घोषणा नहीं करनी चाहिए। (सूरह 8:67)
यह लीजिये आप को थ्री इन वन दे रहा हूँ, सुन त्ज़ु के साथ क्लॉज़विट्ज़ और मैकियावेली भी हैं –
इसके अलावा एक और लिंक यह है –