हाथ से छू के इसे रिश्ते का इलज़ाम न दो…

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हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ यदि एक स्त्री और एक पुरुष को आपस में बात करनी हो, या मिलकर कोई काम करना हो तो शेष समाज – रिश्तेदारों की उनसे यही उम्मीद रहती है कि उनकी उम्र के मुताबिक उनके इस प्रोफेशनल या पर्सनल रिश्ते को कोई नाम दे दिया जाए।

अगर हमउम्र हैं तो “दोनों भाई – बहन जैसे हैं”, अगर दोनों में से कोई एक बड़ा है तो “बड़ी बहन या बड़ा भाई बना दो”, उम्र थोड़ी और ज़्यादा हो तो “आप मेरी माँ जैसी है या पुरुष हुआ तो आप मेरे पिता, चाचा, ताऊ जैसे हैं”।

और अगर आप इन कथित पारिवारिक रिश्तों से जुड़े शीर्षको के बिना एक – दूसरे से बात करते हैं, या साथ में काम करते हैं तो “आपके बीच जरूर कोई चक्कर चल रहा होगा”।

यह एक ऐसी रूढ़िवादी सोच है जिसमें दो व्यक्तियों की उम्र, आपसी समझदारी, आत्मीयता, सबको एक तरफ खिसका कर सिर्फ उनकी लैंगिक भिन्नता को ही सर्वोपरि माना जाता है, यह वही सोच है जो मानती है कि स्त्री – पुरुष कभी गहरे मित्र नहीं हो सकते, सहयोगी नहीं हो सकते, उनमें आत्मीयता या आपसी समझदारी नहीं हो सकती।

ताज्जुब तो इस बात का होता है कि हमारे इसी समाज में आज परिवार टूट रहे हैं, लोग अपने सगे भाई – बहनों, रिश्तेदारों तक से कट चुके हैं, सगे सम्बन्ध नहीं निभा पा रहे, लेकिन दुनिया भर के लोगों से तमाम रिश्ते जोड़ते चलते हैं।

और क्या महज़ किसी रिश्ते को कोई नाम दे देने से आपके मन के भाव बदल जाएंगे? मैंने अपनी ज़िंदगी में कई ऐसे लोग देखे हैं जो बेटी बनाकर, भांजी बनाकर, छोटी बहन बनाकर पहले आपसे जुड़ते हैं और फिर अपना मतलब साधने की कोशिश करते है, या आपको बरगलाने की कोशिश करते है, इस श्रेणी में स्त्री – पुरुष दोनों शामिल हैं।

वहीं मैंने कुछ ऐसे भी लोग देखे हैं जो साफ – साफ कह देते है कि “नहीं आप मेरी बहन जैसी नहीं हैं या बेटी जैसी नहीं है, आपके काम, पढ़ाई और व्यक्तित्व की इज़्ज़त है मन में, पर हम आपको सुजाता जी या सुजाता मैम ही कहेंगे, दीदी या बेटी नहीं।”

एक समय था जब मुझे इस तरह स्पष्ट और मुखर बात करने वाले लोग बहुत विचित्र लगते थे, किन्तु जीवन के इतने अनुभवों के बाद मुझे लगता है कि ऐसे मुखर – बेबाक और स्पष्टवादी लोग उन तमाम लोगों से कहीं बेहतर होते हैं जो अपनेपन और रिश्तों के मुखौटे लगाए घूमते हैं।

जबरन रिश्ते थोपने की यह परंपरा सिर्फ आम आदमी की ज़िंदगी में नहीं है, बल्कि सब जगह, सब लोगों के साथ है। हाल ही में बिग बॉस में भी इसकी झलक दिखाई दी, जहां दीपिका और श्रीशांत तथा सोमी खान और रोमिल चौधरी को भी अपनी गहरी मित्रता और आपसी समझदारी के आत्मिक रिश्ते को अंततः ‘भाई – बहन का रिश्ता’ घोषित कर दूरी बनानी पड़ी।

हालांकि कल बिग बॉस के होस्ट सलमान खान ने भी इसी स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी को जबरन भाई – बहन बनाने की क्या ज़रूरत है? जब दो लोग एक दोस्ती के रिश्ते में खुश है तो उन्हें वही रहने दो न!

सलमान भाई, ये हिंदुस्तान है, यहाँ स्त्री -पुरुष के रूप में देवर – भाभी, जीजा – साली के रिश्ते के नाम पर हर तरह की फूहड़ता का दिल खोलकर स्वागत किया जाता है, किन्तु वही स्त्री – पुरूष यदि आपस में अच्छे मित्र, सहयोगी या सहकर्मी बनकर चले तो उनको शक और तिरस्कार की नज़र से ही देखा जाता है, सचमुच हम कितने पूर्वाग्रही और रूढ़िवादी लोग हैं!

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