जी हां, 10 हज़ार का बेरोज़गारी भत्ता देने का वायदा किया गया है मध्यप्रदेश के बेरोज़गारों से।
अब एक बात ये भी सोचें कि unskilled labour की रेट 9 से 12 हजार है, जो फैक्टरी में या छोटे उद्योगों में काम करते हैं। कई जगह शायद इससे भी काफी कम है।
अगर उस लेबर को 10 हज़ार घर ठाले बैठे रहने के मिलने लगे तो अव्वल तो वो काम करना चाहेगा ही नहीं, और अगर काम करना भी चाहे तो उसका रेट कम से कम 15 हज़ार होगा।
अब ये भी मान के चलिए कि अगर 10 हज़ार एक unskilled या semi-skilled लेबर को मिले तो जो skilled होगा वो कम से कम 18 से 20 हज़ार लेना चाहेगा।
कहने सुनने में अच्छा लगता है, पर अगर लेबर इस तरह से महंगा होता है तो कोई उद्योग लगाना चाहेगा नहीं, और जो है वो दूसरे राज्य की तरफ दौड़ेगा। और अगर उसी राज्य में रहता है तो उसे अपने प्रोडक्ट की कीमत 10 से 15% बढ़ानी पड़ेगी।
यहाँ ये याद रखिये कि वो एक प्राइवेट उद्यमी है, जिसका मोटिवेशन व्यापार बढ़ाना, पैसा कमाना होता है। वो कोई सरकार नहीं जो किसान से गेहूं चावल 25 से 30 रुपए किलो में खरीदी कर 2 रुपये किलो में बांटता फिरे।
और जब इस तरह से व्यापारी चीजों की कीमतें बढ़ाने लगते हैं तो फिर ऐसे ही महंगाई बढ़ती है। और जब महंगाई बढ़ती है तो लोगों की purchasing power कम होती जाती हैं। फिर जो वो मुफ्त के 10 हज़ार मिलते हैं वो भी मुफ्तखोरी करने के लिए कम पड़ जाते हैं।
किसानों के ऋण माफ़ करना हर सरकार की ज़रूरत बनती जा रही है। 10 दिनों में लोन माफी की बात हो रही है। 10 दिन नहीं तो 2 महीने में हो ही जाएगी, इस बात को लेकर मैं आश्वस्त हूँ। ताकि आगे लोकसभा में भी ऐसी ही घोषणा की जा सकें और मुफ्तखोरी के लालच में वापस 2009 जैसे जीत भी जाएं।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों ने तो महीने भर से पैसे चुकाने बंद कर दिए, ये सोचकर कि सरकार बदलनी है, लोन माफ करवाना है। जो किसान सचमुच गरीब होता है उसे लोन मिल नहीं पाता और जो करोड़पति किसान है, वो fortuner में घूम रहे हैं, उनका सांठ गांठ से लोन मिलकर माफ भी हो जाता हैं। खाया पिया ख़तम।
बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, दुनिया में अगर कुछ सबसे महंगा है तो वो है मुफ़्त। मुफ्तखोरी एक तरह का लहू है, जो मुंह लग जाता है तो आदमी अपने समाज को, देश को खोखला कर एक दिन खा जाता हैं। ऐसे मुफ्तखोरी के चक्कर में अच्छे से अच्छे देश वेनेजुएला बन जाते हैं और उनके नागरिकों की जिंदगी जेठालाल बन जाती हैं।