कहानी दो नेताओं की – 2

गतांक से आगे…

लेकिन माक्रों के विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति के और निर्धन परिवार में पैदा हुए थे।

उन्होंने बचपन में चाय बेची थी और उच्च शिक्षा पत्राचार पाठ्यक्रम या ओपन स्कूल से की, उनके परिवार में दूर-दूर तक कोई राजनीति में नहीं था। किशोरावस्था में परिवार से दूर यायावरी करते हुए अनुभव और ज्ञान दोनों प्राप्त किया।

जब प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ एक गैर-काँग्रेसी सरकार बनायी, तब यह अपने-आप में ही एक अभूतपूर्व घटना थी क्योंकि अभी तक एक ही परिवार के लोगो ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था।

परिवार के बाहर जो लोग प्रधानमंत्री बने – चाहे वे किसी भी पार्टी के हो, उदहारण के लिए गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री जी, मोरार जी देसाई, चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, नरसिम्हा राव, देवेगौड़ा, गुजराल, मनमोहन को ले लीजिये, वे सब के सब किसी दुर्घटना या मृत्यु (गुलजारीलाल नंदा, शास्त्री), जोड़-तोड़ (वी पी सिंह, चंद्रशेखर), परिवार के सदस्य का सत्ता के लिए रेडी ना होना (शास्त्री, नरसिम्हा राव, मनमोहन), प्रधानमंत्री पद के लिए गठबंधन में एकमत नहीं होने (मोरार जी, चरण सिंह, देवेगौड़ा, गुजराल) के कारण सरकार प्रमुख बन पाए। वाजपेयी जी प्रधानमंत्री अवश्य बने, लेकिन अन्य पार्टियों के समर्थन से।

वर्ष 2014 में जब मोदी ने सत्ता की डोर संभाली, उस समय भारत भ्रष्टाचार से त्रस्त था। 18 करोड़ लोग भीषण गरीबी में रह रहे थे। वित्तीय घाटा राजकोषीय घाटा 4.5% या 5 लाख करोड़ रुपये था। गरीबों के नाम पर दी जाने वाली सब्सिडी भारत की जीडीपी की 4.2% या 4.8 लाख करोड़ रुपये थी।

यानि कि सब्सिडी ना देकर अगर हर निर्धन व्यक्ति को सब्सिडी ट्रांसफर कर देते, तो प्रत्येक को 28000 हज़ार रुपये प्रति वर्ष मिलते। ऊपर से वेलफेयर स्कीम, जैसे कि मनरेगा, कृषि, स्वास्थ्य इत्यादि पर अलग से निवेश किया जाता था। मोटे तौर पर, चार व्यक्तियों के एक परिवार को लगभग 1.15 लाख हर वर्ष सब्सिडी के ही कैश मिल जाते।

एक तरह से भारत से भीषण गरीबी मिट जाती। लेकिन फिर ‘कमाई’ कैसे होती। विश्व बैंक के अनुसार, पेट्रोल एवं डीज़ल में मिलने वाली सब्सिडी का गरीबों की तुलना में भारत के धनी लोग 27 गुना लाभ उठाते है। निर्धनों पर सब्सिडी के नाम पर धनाढ्य मज़े काट रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधार, जन-धन, स्वास्थ्य बीमा, उजज्वला, हर घर में शौचालय और बिजली, स्वच्छता, मुद्रा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लाभार्थियों के बैंक खाते में सीधा पैसा भेजना इत्यादि के द्वारा सब्सिडी पर कण्ट्रोल किया और निर्धन एवं मध्यम वर्ग को राहत देना और लाभ पहुंचाना शुरू किया।

लेकिन इन सबसे बढ़कर नरेंद्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में रातों रात सुधार कर दिया। इन सुधारों में काले धन को बैंकों में वापस लाने और टैक्स बढ़ाने के लिए नोटबंदी, जीएसटी, तीन लाख से अधिक फर्जी कंपनियों को बंद करना, दिवालिया कानून लाना, बजट घाटे को कम करना, महंगाई पर कंट्रोल करना, उदारीकरण इत्यादि शामिल हैं।

इन कठोर सुधारों के बावजूद भी जनता सड़क पर विरोध करने नहीं आयी। आखिरकार अगर सरकार 3 लाख से अधिक कंपनियों को रातोंरात बंद कर देती है तो उन में नौकरी कर रहे लोग विरोध नहीं करेंगे?

सुप्रीम कोर्ट, मीडिया और अभिजात्य वर्ग के लोग आश्चर्य करते है कि नोटबंदी, GST और किसानों ने उपज के दाम को लेकर कभी भी स्वेच्छा से – ध्यान दीजिये, स्वेच्छा से – सरकार के विरूद्ध विद्रोह क्यों नहीं कर दिया। कई बार इन वर्गों ने जनता को भड़काने और हिंसा करने के लिए भी उकसाया।

यहाँ पर दो नेताओं – माक्रों और मोदी – की कहानी अलग हो जाती है।

यह श्रेय एक चायवाले को जाता है कि जहाँ उसने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता को समझा।

लेकिन उसे यह भी समझ थी कि आर्थिक सुधार का मतलब आम नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते में कटौती नहीं है। ना ही आर्थिक सुधार माध्यम और निर्धन वर्ग पर टैक्स के बोझ बढ़ाना या फिर धनाढ्य वर्ग को टैक्स में राहत देना है।

उसे यह भी समझ थी कि इस डिजिटल क्रांति के युग में अर्थव्यवस्था का स्वरुप बदल रहा है और सरकार को नए काल के लिए अर्थव्यवस्था और जनता दोनो को रेडी करना होगा।

इस पिछड़ी जाति के चायवाले, जो ऑक्सफ़ोर्ड या हारवर्ड या फ्रांस में नहीं पढ़ा है, ने यह पकड़ लिया था कि आर्थिक रिफॉर्म का सही अर्थ है धनाढ्य वर्ग से मध्यम और निर्धन वर्ग की तरफ समृद्धि का ट्रांसफर।

लेकिन आम जनता को यह समझने में कठिनाई हो सकती है क्योंकि हमारी समृद्धि के साथ हमारी आकांक्षाएं भी बढ़ जाती हैं।

अतः प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आप को प्रधान सेवक के रूप में प्रस्तुत किया। जनता के बीच में उन्होंने हमेशा विनम्रता से व्यवहार किया। हर भाषण के बाद वे झुककर, हाथ जोड़कर जनता जनार्दन का अभिवादन करते हैं। एक रैली में उन्होंने एक आदिवासी महिला की चप्पल पहनने में मदद की। कभी भी अवकाश नहीं लिया, न अपने परिवार और नाते-रिश्तेदारों को सरकारी खर्च पर सैर करायी।

नरेंद्र मोदी जैसे साधारण परिवार से आये व्यक्ति की नीतियों का परिणाम यह है कि अगले वर्ष के अंत तक स्वतंत्र भारत से भीषण गरीबी समाप्त हो जायेगी।

यह मैं नहीं, विश्व बैंक के आंकड़े कह रहे है… और यह चमत्कार सैकड़ों वर्षो की गुलामी के बाद होगा।

कहानी दो नेताओं की – 1

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