सच का सेमीफाइनल…

सबसे पहले यह सवाल कि इन 5 राज्यों के चुनाव क्या 2019 का सेमीफाइनल थे?

मेरा मानना है कि हां, यही चुनाव 2019 का वास्तविक सेमीफाइनल थे। क्योंकि केवल 3 महीने बाद लोकसभा चुनाव का ज़मीनी संघर्ष शुरू हो जाएगा।

दूसरा सवाल कि यह सेमीफाइनल जीता कौन?

मेरा मानना है कि यह सेमीफाइनल नरेन्द्र मोदी ने जीता है लेकिन थोड़े कम अंतर से।

क्योंकि छत्तीसगढ़ के अलावा शेष दो बड़े और मुख्य राज्यों, राजस्थान और मप्र में काँग्रेस अपना पूरा जोर लगाने के बावजूद बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पायी जबकि उसका सामना 5 साल की जबरदस्त कुख्याति से अभिशप्त वसुंधरा राजे तथा 15 वर्ष के शासनकाल की ऊब से अभिशप्त शिवराज सरकार से था।

मप्र में सीटों का अंतर मात्र 5 रहा तो वोटों के अंतर की दौड़ में काँग्रेस को पीछे छोड़ने में भाजपा सफल हुई। ध्यान रहे कि यह चुनावी स्थिति उन शिवराज/ भाजपा की है जो लगातार 15 वर्षों से शासन कर रहे थे।

राजस्थान में भी काँग्रेस को भाजपा से मात्र 0.4% अधिक वोट ही मिले हैं। अब आइये छत्तीसगढ़ पर।

यहां कर्ज़ माफी के साथ ही साथ काँग्रेस ने किसानों को धान का जो मूल्य देने का वायदा किया है वह मूल्य दे पाना किसी भी सरकार के लिए असम्भव है।

जबकि काँग्रेस द्वारा धान की आसमानी कीमत देने के भरोसे के कारण छत्तीसगढ़ में पिछले 3 महीनों से किसान अपना धान बेचना बंद कर चुके हैं और इन्तज़ार कर रहे थे कि काँग्रेस सरकार उनका धान आसमानी कीमत पर खरीदेगी।

काँग्रेस ने यदि किसी तरह यह मूल्य दे दिया (हालांकि यह असम्भव है) तो चावल खाने वाले आम आदमी की चीखें निकल जाएंगी उस महंगे चावल को खरीदने में।

यह चीखें आसमान पर सुनाई देंगी।

काँग्रेस द्वारा अपने ये दोनों वायदे पूरे करने की कोशिश राजकोष का दीवाला निकाल देगी। 4-5 महीने में, लोकसभा के रण तक पहुंचते पहुंचते यह असलियत सामने आ जाएगी। इसका परिणाम क्या होगा, यह अनुमान स्वयं लगाइये।

उल्लेखनीय है कि 2019 में राजस्थान में मुकाबला वसुंधरा बनाम सचिन पायलट नहीं होगा। और मप्र में मुकाबला शिवराज बनाम युवराज नहीं होगा। 2019 में यह मुकाबला मोदी बनाम राहुल होगा।

राजस्थान, मप्र के परिणाम 5 महीने बाद के परिणामों की एक झलक दे रहे हैं। 2-3 महीने बाद छत्तीसगढ़ के हालात भी बहुत साफ चमकदार झलक दिखाएंगे।

बिकाऊ दलाल पत्रकारों, काँग्रेस से सवाल इसलिए पूछे जाने चाहिए क्योंकि…

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