जब से सोशल मीडिया पर हूँ, देख रहा हूँ, कई लोग धीरे धीरे रूठकर या मन मसोसकर अपने ही लोगों से उलझकर, अलग अलग कोनों में सिकुड़ रहे हैं।
अब राहुल गांधी के चुटकुलों में कोई आनन्द नहीं आ रहा…
अब वामपंथियों की बखिया उधेड़ने में मजा नहीं आ रहा है…
SCST एक्ट, आरक्षण, 370, राममंदिर, शिक्षा व्यवस्था पर बहुतों को घोर निराशा हुई है। स्वाभाविक भी है!!
परस्पर उलाहने दिये जा रहे हैं।
अपनों पर ही व्यंग्य हो रहे हैं।
इन सबमें कुछ भी विशेष नहीं है, मनुष्य मन है, कोई देवता तो है नहीं, जैसा सोचा था वैसा हो नहीं रहा, जो हो रहा है वह बिल्कुल ही धीमा, बोझिल, उबाऊ, रीत के रायते जैसा लग रहा है।
मैं भी आप लोगों जैसा ही हूँ। मुझे भी निराशा होती है।
मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं कि धर्मक्षेत्र के केशव की भांति मुस्कुराता हुआ आऊँ और अठारहवें दिन भी मुस्कुराता हुआ चला जाऊं। पर कुछ लोग हैं, जिनकी तासीर जरा भी नहीं बदली है। यह सूची बहुत बड़ी है, सबके नाम सम्भव नहीं, पर वे पहले दिन जैसे थे, उसी तन्मयता से आज भी जुटे हैं।
मुझे बॉर्डर फ़िल्म का वह अंतिम सीन याद आता है, रात भर एक छोटी सी टुकड़ी, पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट से जूझती रही है। केवल 12 घण्टे, उन्हें रोके रखना है।
सुबह की पहली किरण उगते ही, उतरलाई एयर फोर्स स्टेशन से, जैकी श्रॉफ, अपने लड़ाकू विमानों सहित पहुंचने ही वाले होते हैं, एक एक सेकंड निकालना मुश्किल है।
इधर, भारतीय मेजर के रोल में सनी देओल, रात भर लड़ता रहा है। घूम घूम कर, हरेक खन्दक में, चीख चीख कर, उनका उत्साह बढ़ा रहा है!
सुनील शेट्टी, अक्षय खन्ना, पुनीत इस्सर, सभी जांबाज़, एक एक कर, अद्भुत शौर्य प्रदर्शन करते हुए घायल हो रहे हैं।
बिल्कुल, वही स्थिति है…
“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ, तब गोविंद सिंह नाम कहाऊँ”
बस, अब सुबह होने ही वाली है। अर्धरात्रि गई कपि नहीं आयउँ, लक्ष्मण उठो, देखो, तुम्हारा भाई विलाप कर रहा है, उठो भैया, सब ठीक होने वाला है!!
देखो कोई सोना मत, जागो, उठो, लड़ते रहो, सनी पाजी की खँखरी आवाज फिज़ाओं में गूंजती है। वह अकेला ही सिंह की भांति सबकी सार सम्भाल कर रहा है।
युद्ध जनित कोलाहल में, उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं। कोई उदासी नहीं, कोई विवशता या लाचारी भी नहीं!
जैसे वीर का वीरत्व नित्य नये घाव के साथ और तेज चमकता है, दर्प के उन्मेष से आवेशित वह और भी ताकतवर और भी दृढ़ दिखता चला जाता है!
अचानक कानों के पर्दे चीरने वाली आवाज के साथ भारतीय लड़ाकू विमान प्रकट होते हैं। बम वर्षा से पाकिस्तानी टैंक हवा में उछल उछल कर नष्ट हो रहे हैं।
विजय हमारी होती है!!
सनी देओल, इस खुशखबरी को सुनाने के लिए, खंदकों में कूद कर एक एक को झिंझोड़ता है, अरे यह क्या, ज़्यादातर सैनिक संगीनों का सिराहना बना, सो चुके हैं।
पहली बार, मेजर की रुलाई फूट पड़ती है, अरे उठो न, देखो, हम जीत गए हैं, उठो, अब हम सब अपने अपने घर जाएंगे, परिवार से मिलेंगे, टीन टप्पर ठीक करेंगे। माँ का इलाज कराएंगे, प्रेयसी के उपहार ले जाएंगे, गलत बात, यूँ नहीं नाराज होते, देखो, रात भर तुम मेरा ऑर्डर मानते रहे, एक बार और मानो न…
……कोई नहीं उठ रहा, कई ट्रक भर कर बॉर्डर पर गये थे, एक जीप में वापस आ गए!
युद्ध, युद्ध होता है। मरने के लिए नहीं, जीतने के लिए लड़ो। ज़िन्दा रहने के लिए लड़ो। वीर भोग्या वसुंधरा, विजय के उत्सव हेतु लड़ो!
ये हम कहाँ आ गए, सोशल मीडिया पर लड़ते लड़ते, धीरे धीरे हम अपनी ही खंदकों में खेत हो रहे हैं।