बापू के नाम एक पत्र!

दिनाँक 08/12/2018

प्रिय बापू,
प्रणाम

विषय: आपको मिलने वाले असम्मान का जिम्मेदार कौन!

जानता हूँ मेरी बात आप तक नहीं पहुँचेगी। पर दूसरी दुनिया में जहां आप अभी हैं वहां मेरी भावनायें जरूर पहुचेंगी। इस विश्वास से मैं ये पाती लिख रहा हूँ।

बापू, मुझे ये स्वीकारने में ये बिल्कुल झिझक नहीं कि मैं आपकी राजनीतिक विचारधारा का विरोधी हूँ। पर व्यक्तिगत तौर पर मैंने आपका विरोध कभी नहीं किया।

आपके कई विरोधी हर स्तर पर आपका विरोध करते हैं। आप जैसे व्यक्तित्व को बच्चा बच्चा गाली देता है। आपका जीवन कैसा भी रहा हो पर देश की आज़ादी में आपका योगदान तो था। फिर आप सरीखे महापुरुष को हमेशा गालियाँ क्यों मिलें? इससे व्यथित हो इसके कारण समझने के लिये मैंने आपको पढ़ना शुरू किया।

पढ़ने के इन क्रम में ग्राम स्वराज, मेरे सपनों का भारत, आपकी डायरी के अंश आदि पढ़े जिसमें आपने अपने विचार लिखे। पढ़ने के बाद पता चला कि बापू आपके विचार तो बिल्कुल मेरे अपने विचार हैं।

गौ मां के लिये आपने लिखा कि “गाय करुणा का काव्य है। इस सौम्य पशु मूर्तिवन करुणा है। यह करोड़ो भारतीयों की माँ है। गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीवजगत में अपना तारतम्य स्थापित करता है। गाय की वजह से ही कृषि सम्भव हो सकी।” – यंग इंडिया

इसी प्रकार दलित उद्धार और ग्राम स्वराज पर भी आपके विचार हम राष्ट्रवादियों से मिलते जुलते हैं। उन विचारों को यहां कोट कर सकता हूँ। पर वो केवल पत्र को ही लम्बा करेंगे।

विचारों में साम्य होने के बाबजूद आपको गालियाँ मिल रही हैं! क्यों?

इसका उत्तर है आपके अनुयायी जो आपकी नीतियों को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं। आप अपनी प्रार्थना सभा के बाद एक संवाद सत्र रखते थे न बापू। जिसमें आप अपनी बात रखते थे और जिज्ञासुओं के प्रश्नों का उत्तर देते थे।

पर आज आपको होली काऊ घोषित कर दिया गया है। आपके बारे में प्रश्न करना अपराध है। आपकी नीतियों पर सवाल उठाना तो मानो ईशनिंदा के बराबर है। आपकी आलोचना करने वालों को माँ बाप और खानदान तक की गालियाँ सुननी पड़ती हैं। क्योंकि तर्क आपके अनुयायियों के पास है ही नहीं।

बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है बापू कि आज आपका गाँधीवाद भेड़ियों के हाथों में है। ऐसे भेड़िये जो आपकी ही लाश को नोचकर खा रहे हैं। आपने अपनी जिंदगी दो कपड़ों में बिता दी और आपको बेचकर आपके तथाकथित अनुयायी करोड़ो में खेल रहे हैं।

आपके ग्राम स्वराज को रद्दी में बेच दिया गया है बापू। जिस गौ को आपने कामधेनु कहा उसे आपके वंशज तश्तरी में परोस कर खा रहे हैं।

किसी भी महापुरुष के विचार उसके अनुयायियों के व्यवहार में दिखता है। उसी को आधार बना जनता अपना परसेप्शन बनाती है। उसमें आपके अनुयायी खरे नहीं उतर रहे। इसीलिये आपको गालियां मिल रही हैं।

अभी कल ही आपके ऊपर कम से कम छ: किताब लिखने वाले प्रसिद्ध गांधीवादी इतिहासकार राम गुहा गौमांस खाने का प्रचार करते नजर आये।

इतनी किताबें लिखने के लिये उन्होंने नि:संदेह आपको तो पढा ही होगा तो क्या वो यंग इंडिया, नवयुग में गौ माता पर छपे आपके लेख पढ़ना भूल गए थे? या “किसी को भी भड़काने का कार्य हमें नहीं करना चाहिये” भगत सिंह के लिये दी गयी ये सीख भूल गये।

गौमांस खाना उनका पर्सनल मैटर है। पर इसका प्रचार करना करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत करना है। मुझे बताओ आप बापू कि क्या आप गौहत्या के समर्थक थे? क्योंकि जितना मैंने आपको पढ़ा उसमें तो गौभक्त नजर आये। आपने यहां तक लिखा गौ को बचाने के लिये अपनी जान देनी पड़े तो दे देना। फिर आपके अनुयायी कैसे हिम्मत कर लेते गौ माँ को काट के खा लेने की?

खुद आपके पड़पोते तुषार गांधी महिलाओं के बारे में अश्लील शब्दावली का जिक्र करते हैं। उनके टेनिस बॉल्स वाले घटिया कमेंट को कौन भूल सकता है? और वो आशा करते हैं आपके विरोधियों से कि आपके लिये सम्मानजनक भाषा का प्रयोग हो! ऐसा कैसे संभव होगा बापू?

मुझे पता है आपकी आत्मा आपके अनुयायियों के व्यवहार से तड़पती होगी। स्वर्ग में होने के बावजूद आप नरक की अग्नि में जलते होंगे। पर क्या किया जा सकता है वो आपके अनुयायियों के कर्मों का भोग है। जिसे दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आपको ही भोगना है !

वैचारिक विरोधी खेमे से आपका शुभचिंतक,
अनुज

याद रखना… अब भी हमारी म्यानों में है पुष्यमित्र शुंग की शमशीर

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