“बेटा शिवकुमार अपने पेरेंट्स को भेजो, जो छात्रवृति आई है तुम्हारी उसके लिए हस्ताक्षर करने है।”- पांचवी कक्षा के छात्र से उसके गुरु जी ने कहा।
अगले दिन बच्चे की बूढ़ी दादी स्कूल आती है और अंगूठा लगाती है। गुरु जी ने दादी की उम्र देखकर कहा,”आँटी घर पर और कोई नही है क्या..? आप क्यों परेशान हुए?”
“बेटा, इसका दादा है, वो अगर आएगा तो दिहाड़ी कौन करेगा, क्या खाएंगे?”- बूढ़ी ने अपनी विपत्ति सुनाई।
“क्यों इसके माता- पिता कहाँ है?”- गुरु जी ने पूछा।
बूढ़ी दादी की आँखे छलक आईं,”बेटा इसके माँ बाप, हमें और इन 2 बच्चों को छोड़कर एक छोटी सी हमारी दुकान को बेचकर गाँव चले गए, बोले हमारा कोई वास्ता नहीं तुमसे।”
गुरु जी को दादी की पीड़ा समझ आई, बोले,”आँटी जी आप मत आना, मैं अपने आप देख लूँगा।”
एक दिन गुरु जी ने देखा बूढ़ी दादी फिर स्कूल आई हुई है, गुरु जी ने पूछा,”आँटी आप किसलिए आए हो?”
“बेटा, शिव कुमार का छोटा भाई है ये शिवा 7साल का है, इसी साल एडमिशन कराया है, इसके सर ने बुलाया है।”
गुरु जी ने छोटे शिवा को देखा और पूछा,”आँटी ये इसकी आंखों को क्या हुआ.?”
“बेटा इसकी एक आंख खराब है, और दूसरी से भी कम दिखता है।”
इस घटना के 15 दिन बाद स्कूल में मेडीकल चैक अप कैम्प लगा। गुरु जी ने छोटे शिवा को डॉ को दिखाया, डॉ ने कहा इसे सेक्टर 16 चंडीगढ़ के सरकारी हॉस्पिटल लेकर आना। गुरु जी सुबह सुबह शिवा को 2 बार हॉस्पिटल लेकर निकले, मगर सरकारी हॉस्पिटल की लम्बी लाइन की वजह से उन्हें अच्छी खासी दिक्कत हुई, स्कूल में भी छुट्टी भरनी पड़ी।
गुरु जी ने मेडीकल चैक अप कैम्प वाली डॉ को कॉल करके अपनी विपदा सुनाई और पूछा इसे सेक्टर 32 हॉस्पिटल में दिखा सकते है क्या..?
“बिल्कुल दिखा सकते है, वो भी सरकारी होस्पिटल है कोई दिक्कत नहीं।” डॉ मैडम ने बताया।
मगर दिक्कतें तो अब शुरू हुई थी।
गुरु जी को रोज रोज छुट्टी भरनी पड़ती उस बच्चे के लिए, अपने गाँव ढाणी फौगाट जिला चरखी दादरी हरियाणा जाने को भी छुट्टियां कम पड़ने लगी। कभी डॉ नहीं मिलते तो कभी नम्बर नहीं आता। मगर गुरु जी ने हार नहीं मानी। गुरु जी के मित्र चैतन्य राजपूत जो उन्हें पुलिस और अर्धसैनिकों के लिए वेलफेयर करते समय मिले थे उन्होंने इस दौरान भरपूर साथ दिया। इसके अलावा बाकी लोग ये तो कहते कि कोई मदद चाहिए तो बताना पर सामने नहीं आते।
डॉ ऑपरेशन की डेट नहीं दे रहा था तो गुरु जी ने बड़ी मिन्नत करके eye डिपार्टमेंट के HOD को प्रॉब्लम समझाई,जैसे तैसे ऑपरेशन की डेट मिली। अब समस्या थी पैसों वाली, सरकारी मदद तो मिलती है पर उसके लिए बैंक में खाता होना ज़रूरी है।
मगर बैंक वालों ने साफ मना कर दिया कि इसके माता पिता के sign औऱ डॉक्यूमेंट के बिना खाता नहीं खुलेगा। काफी दौड़ धूप करने के बाद भी बात नहीं बनी, क्योंकि माता पिता नहीं होते तो डैथ सर्टिफिकेट लगाकर दादा दादी से काम चल जाता और अब इतना समय भी नही था कि 6 महीने से जिस काम के लिए गुरु जी दौड़ धूप कर रहे थे उसके लिए और इंतजार करते। अंततः गुरु जी ने फैसला किया कि वो अपने पैसों से इलाज कराएंगे।
और फिर गुरु जी के अथक प्रयासों का परिणाम सुखद रहा, बच्चे का ऑपरेशन सेक्टर 32 में हुआ। खुद ऑपरेशन थियेटर के बाहर बैठे गुरु जी दौड़ दौड़ कर सब सामान इक्कठा करके लाये, जो फ़ाइल हज़ारों फाइल्स में दबी थी अपनी मेहनत से खोज लाये। बच्चे के दादा के लिए खाने से लेकर बच्चे शिवा के लिए ज्यूस तक उपलब्ध कराते।
बच्चे की आंख की पट्टी खुली गुरु जी ने चैतन्य को और चैतन्य ने गुरु जी को मुस्कुरा कर देखा। दोनों निश्चल व्यक्तियों ने एक दूसरे को गले लगाया। आज जब लोग अपनों के लिए कुछ नहीं करते तब एक अनजान बच्चे के लिए जी जान एक करने वाले गुरु जी संदीप फोगाट और उनके और हमारे मित्र चैतन्य राजपूत ने मानवता की एक अनूठी मिसाल कायम की।
सरकारी हॉस्पिटल होने की वजह से केवल 16 हज़ार में सब कुछ हो गया, दोनों मित्रों ने अपनी जेब से इसकी भरपाई की।
चैतन्य वो व्यक्ति है जो पुलिस के जवानों के लिए घंटों अकेले खड़े रखकर ये मांग करते आये है कि जवानों की ड्यूटी का समय लिमिटेड किया जाए, रैलियों के दौरान पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों को ज्यूस, पानी और बिस्किट देकर उनका सम्मान करते हैं।
सन्दीप गुरु जी को इस सबके दौरान बहुत से साथियों से ताने भी झेलने पड़े, जो लोग उनकी मदद ना करके उनका मज़ाक उड़ा रहे थे, उनके मुंह पर तमाचा है ये कि उन्होंने गुरु होने का दायित्व निभाया।
उम्मीद करता हूँ कि आप शेयर करेंगे, ताकि इस सच्चे गुरु का कम से कम इस मंच पर सम्मान करके हम हौसला बढ़ाये।
– लोकेश कौशिक