6 दिसम्बर, वो तिथि है, जिसको मैं भारत के पुनर्जन्म के रूप में याद करता हूँ।
इस तिथि को दो नाम मिले है, कुछ के लिए यह ‘शौर्य दिवस है तो कुछ के लिए यह ‘शहीद दिवस’ है।
काल ने आज भारत को उस मोड़ पर पहुँच दिया है जहां, ‘शौर्य दिवस’ मनाने वालों को, ‘शहीद दिवस’ मनाने वाले नहीं समझना चाहते है और न ही ‘शौर्य दिवस’ वाले, ‘शहीद दिवस’ मनाने वालों को, अब समझाना चाहते है।
भारत के समाज को, 6 दिसम्बर 1992 ने, सदैव के लिए दो भागों में विभक्त कर दिया है।
वस्तुतः यदि देखा जाय तो शौर्य और शहीद में इतना विरोधाभास हैं कि दोनों का किसी भी स्तर पर संगम होने की कोई गुंजाईश बची ही नहीं है।
‘शौर्य’ के साथ भगवान राम की जन्मस्थली है, जो विश्व भर के हिंदुओं के लिए, उनके खुद के अस्तित्व के होने का प्रमाण है। अब कोई कैसे अपने होने के प्रमाण पत्र को झुठला सकता है?
सदियों से ‘शौर्य दिवस’ मनाने वालों को दासता, सहिष्णुता और भीरुता ने हीनता की बेड़ियों में जकड़ रखा था जिसे उन्होंने 6 दिसम्बर को तोड़ कर, अपने को स्वतंत्र कर दिया था। यह उनका, उनके होने का उदघोष था।
‘शहीद’ के साथ बाबर है, जो उन्हें भारत में उनकी कौम की बादशाहत याद दिलाता है। सदियों से, ‘शहीद दिवस’ मनाने वाले को, सत्ता, प्रश्रय, स्वार्थ और दासत्व के सुख ने श्रेष्ठता के अभिमान में जकड़ा हुआ था, जिसे ‘शौर्य’ ने 6 दिसम्बर को धूल धूसरित कर दिया था। इसी के साथ यह, भारत को फिर से दास बनाये रखने के उनके सपनों का अंत भी था।
श्री राम, जहाँ भारत की आत्मा हैं, वहीं बाबर भारत की आत्मा पर कुठारघात है। श्री राम जहाँ भारत के मस्तक पर मान हैं, वहीं बाबर भारत के मस्तक पर अपमान है। श्री राम जहाँ भारत की कांति हैं, वहीं बाबर भारत का अंधकार है।
काल का पहिया जिस मार्ग पर भारत को ले चल निकला है, वहां ‘शहीद’ को ही अपने अतीत से समझौता करना होगा क्योंकि ‘शौर्य’ ने अपने अतीत का वरण कर, भविष्य की दिशा चुन ली है।
6 दिसम्बर, भारत के पुनर्जन्म की तिथि है।
6 दिसंबर : शौर्य दिवस की शुभकामना के साथ, विजय दिवस की आशा करते हुए