ऑपरेशन ब्लैक थंडर के बाद पंजाब में KPS गिल और JF रिबेरो की टीम ने मिलकर आतंकवादियों के खिलाफ जो अभियान चलाया उससे जल्दी ही वहाँ अमन चैन की बहाली हुई।
उधर केन्द्र में राजीव गांधी के प्रधानमन्त्रित्व काल में ना सिर्फ पंजाब की अमन शान्ति के लिये ऑपरेशन ब्लैक थंडर जैसे सख्त कदम उठा कर व उसके बाद बकायदा एक रणनीति के साथ वहाँ आतंकवाद का सफाया किया गया बल्कि लोकतंत्र बहाली के लिये ऐतिहासिक राजीव लोंगोवाल समझौता भी किया गया।
उसी तरह नार्थ ईस्ट में मचे आतंकवाद को रोकने के लिए राजीव लालडेंगा समझौता राजीव गांधी और असम गण परिषद व आंसू के बीच हुआ समझौता जिससे असम में अवैध घुसपैठियों का लेकर चल रहे पुराने खूनी आंदोलन को समाप्त किया फिर श्रीलंका के तमिल संकट जो भारत को भी अपने लपेटे में लेने लगा था के निवारण हेतु भारत श्रीलंका समझौता, मालदीव में भारत की विजय पताका फहराई, जिससे भारत का सिक्का पूरी दुनिया में जमा।
पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर से दोस्तना सम्बन्ध और चीन की किसी भारतीय प्रधानमंत्री की कई सालों बाद ऐतिहासिक महत्वपूर्ण यात्रा, भारत में संचार और कंप्यूटर क्रांति याद रहे MTNL की स्थापना राजीव गांधी के समय ही हुई थी अपने 5 साल के छोटे कार्यकाल व अनुभव हीन होने के बावजूद ये कुछ शानदार कार्य राजीव गांधी ने किए पर छोटी सी जुड़ी बांधे दोस्त पूरन सिंह का मासूम चेहरा और बड़ी बड़ी आँखे मेरी नींदे अभी भी खराब किये हुए थी!
उसके बाद हुई राजीव गांधी की हत्या ने फिर एक बार देश में मायूसी और हताशा की स्थिति उत्पन्न कर दी थी।
अब देश की सत्ता पर पहले कुछ सत्ता के लालची राजनैतिक दलों के गठबंधन का कब्जा हुआ फिर उनकी वोट बैंक की राजनीति ने मंडल की आग लगा कर कई महीनों तक देश को जातिगत भेदभाव की आग में जलाये रखा!
कहते हैं वक्त सबसे बड़ा मरहम होता है दिन गुज़रते चले गए 1990 का साल आ गया। मैं अपने कॉलेज की पढ़ाई के आखिरी दिनों में था मेरा पुराना स्कूल सखा रईस मियाँ जो गुजरात अपने बहन और बहनोई के पास शिफ्ट हो गया था से कभी कभार बात होती रहती थी घर पर लगे MTNL टेलीफोन पर फिर बाद में जब मोबाइल फोन आ गये तो मोबाइल पर!!
हमारे कॉलेज में एक कैंटीन हुआ करती थी जिसको एक गढ़वाली भाई जिसे हम सब “मामा” कहते थे चलाया करता था कैंटीन में काम करने वाले दस बारह लोग थे जो तकरीबन पंद्रह से तीस साल की उम्र के होंगे, थे सारे के सारे गढ़वाली ही ( पहाड़ के लोगो को गढ़वाली कहा जाता था चाहे वो अल्मोड़ा से हो या कही और से ) हम स्पोर्ट्स कोटा वाले सभी स्टूडेंट्स को 10 या 11 रुपये रिफेरश्मेन्ट मिला करती थी उन दिनों और हम सब लड़के लड़कियाँ कॉलेज की उसी कैंटीन में उबले हुए अंडे या आमलेट खाया करते थे और खूब सारा उधार भी कर लेते थे क्योंकि दस रुपये में तो हमारा पेट भरने से रहा एक एक एथलीट छह से दस अंडे जो डकार जाता था।
एक दिन जब हम सुबह की प्रैक्टिस करके कॉलेज की कैंटीन पहुंचे तो वहाँ सिर्फ दो या तीन ही आदमी थे बाकी लोग कहाँ गए पूछने पर “मामा” ने बताया कि… तत्कालीन वी पी सिंह सरकार के मंडल कमीशन ने देश की युवा पीढ़ी को तनाव में डाला दिया था।
सरकारी नौकरी किसको मिलेगी, किसको नहीं, इसको लेकर तमाम बातें हिंदुस्तान की फिज़ा में तैर रही थीं। उस समय अपनी अलग पार्टी स्थापित कर रहे मुलायम सिंह यादव अपने ओबीसी वोट बैंक को लुभाने के लिए ओबीसी रिज़र्वेशन को हर हाल में लागू करने के पक्ष में थे।
पहाड़ों में सबको लग रहा था कि हमारी नौकरियों पर बाहरवाले आकर कब्ज़ा कर लेंगे। गढ़वाली तो फौज और पुलिस में भर्ती होना जानता है। वो भी छिन जाएगा तो बचेगा क्या?
उस समय देश के आर्मी जनरल पहाड़ से थे। फौज से ही आए भुवनचंद्र खंडूरी ने लोगों को इकट्ठा किया, और भी नेता थे जिन्होंने भरोसा दिलवाया कि अलग राज्य के बिना पहाड़वालों का कोई गुज़ारा नहीं। और बिना अलग राज्य के गठन के पहाड़ी लोगों का भूखा मरना तय है, अलग पहाड़ी राज्य के गठन की मांग को लेकर सब एक बहुत ही बड़ा पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन दिल्ली में करना चाहते थे इसके लिए देश के कोने कोने से पहाड़ी लोग छुट्टी ले लेकर पहुंच रहे थे यहाँ तक कि फ़ौज से भी……..
क्रमशः
– इकबाल सिंह पटवारी