जिस तरह किसी लाश पर चांडाल नाचते हैं बिल्कुल उसी तरह कल बुलंदशहर में हुई हिंसा में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की मौत पर आजतक और एबीपी न्यूज़ सरीखे कुछ न्यूज़चैनलों की टीमें उन्हीं चांडालों की तरह नाच रही हैं।
आज सवेरे से घटनास्थल पर आजतक का रिपोर्टर निशांत चतुर्वेदी लाइव रिपोर्टिंग कर रहा है। लेकिन यह घटना क्यों हुई कैसे हुई? यह बताने के बजाय वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ इस बात पर ज़हर उगलता रहा कि वो राजस्थान और तेलंगाना में ओवैसी और कांग्रेस के खिलाफ भाषण क्यों कर रहे हैं?
अभी तो उसने हद ही कर दी जब उसने घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों को “खून का बदला खून” की तर्ज़ पर हिंसा करने के लिए यह कहकर खुलेआम भड़काना शुरू किया कि क्या “तुम लोगों को गुस्सा नहीं आ रहा…?”, “क्या तुम लोगों का खून नहीं खौल रहा…?” ज़ाहिर है कि उसके इन सवालों की मंशा क्या थी।
अब सच यह भी जानिए कि लगभग एक दर्जन गायों की कटी हुई लाशों को देखकर गांव वाले हिंसा पर उतारू नहीं हुए थे। इसके बजाय वो थाने गए थे रिपोर्ट लिखाने। पुलिस रिपोर्ट नहीं लिख रही थी। इसको लेकर थाने में पुलिस के साथ हो रही बहस की वीडियो फुटेज वायरल है। कई प्रादेशिक न्यूज़ चैनलों पर वह फुटेज दिखाई भी गई थी।
जब रिपोर्ट नहीं लिखी गयी तो फिर ग्रामीणों ने हाइवे जाम किया। जिसे इंस्पेक्टर महोदय ने लाठीचार्ज और गोली चलवाकर हटवाना चाहा तो गांव के नौजवान की गोली लगने से मौत हो गयी।
फिर भड़की हिंसा में इंस्पेक्टर की जान चली गयी। इंस्पेक्टर महोदय की अब मौत हो चुकी है, लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तो मिलना ही चाहिए कि जब दर्जन भर गायों की कटी हुई लाशों की रिपोर्ट लिखाने गांव वाले पहुंचे तो इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी थी?
उल्लेखनीय है कि इंस्पेक्टर की मौत के बाद ही उन गायों की हत्या करने वाले इलियास सुदैफ समेत सात गौहत्यारों के ख़िलाफ़ भी रिपोर्ट दर्ज की गई है। पर वह फरार हो चुके हैं। यही काम पहले कर के उनको गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया था?
बुलंदशहर हिंसा से सम्बंधित सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है।
खैर जांच शुरू हो चुकी है। बहुत जल्दी ही सच सामने आ जाएगा। लेकिन बुलंदशहर हिंसा में हुई मौतों पर चांडालों की तरह नाच रहे आजतक, एबीपी समेत कुछ न्यूज़ चैनलों पर इस घटना का और उन गौहत्यारों का कोई जिक्र नहीं है। जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बजरंग दल, बीजेपी, आरएसएस आदि के खिलाफ जमकर ज़हर उगल रहे हैं।
ऐसी घटनाओं पर इन न्यूज़ चैनलों का दोगला दोहरा बेईमान आचरण/ चेहरा/ चरित्र ज़रा इन उदाहरणों से समझिए।
20 अक्टूबर 2017 को त्रिपुरा के सीमावर्ती क्षेत्र के सोनामुरा थाना क्षेत्र में गौकशी के लिए गायों को ले जा रहे गौतस्करों को जब सीमा सुरक्षा बल (BSF) के कमांडिंग ऑफिसर दिलीप मंडल ने रोकने की कोशिश की तो गौतस्करों ने उन्हें गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था।
14 सितम्बर 2017 को बंग्लादेश की सीमा से सटे बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र उत्तर 24 परगना में गौतस्करों द्वारा एक इंडिका कार में लादकर ले जायी जा रहीं 5 गायों को जब BSF के हेड कांस्टेबिल तुषार कांति दास ने रोकने का प्रयास किया तो गौतस्करों के गिरोह ने उनको मौत के घाट उतार दिया था।
9 जनवरी 2015 को बंगाल के ही उत्तर 24 परगना जनपद में भारत-बंग्लादेश सीमा पर स्वरूपनगर थाना क्षेत्र स्थित खालसी पोस्ट पर लोहे के धारदार हथियार चापड़, गंड़ासे, चाकू तथा लाठी डण्डों से लैस होकर गौतस्करों की भीड़ ने हमला कर के BSF के जवान रसिकुल मण्डल को इसलिए मौत के घाट उतार दिया था क्योंकि BSF का वो जवान गौतस्करों द्वारा गौकशी के लिए बंग्लादेश ले जायी जा रही गायों को बंग्लादेश ले जाये जाने से रोक रहा था।
क्या इन घटनाओं पर न्यूज़ चैनलों को बंगाल की ममता सरकार तथा त्रिपुरा की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ कभी एक शब्द सुना आपने? क्या उन गौहत्यारों, उनके धर्म के विरुद्ध कभी एक शब्द सुना आपने?
20 फरवरी 2015 को गौकशी के लिए ले जायी जा रही गायों से भरे ट्रक ने उत्तरप्रदेश के मथुरा जनपद स्थित जैत पुलिस चौकी के पास लगे बैरियर को तोड़कर भागने की कोशिश करते हुए वहां तैनात पुलिस के 2 जवानों तथा नागरिक सुरक्षा संगठन(होमगार्ड्स) के 2 जवानों को रौंद डाला था। परिणाम स्वरूप 2 जवानों की तत्काल मौत हो गयी थी और 2 जवान जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे।
20 फरवरी 2015 को उत्तरप्रदेश के जौनपुर जनपद के कोतवाली क्षेत्र में गौकशी के लिए ले जायी जा रहीं गायों से भरे ट्रक को उत्तरप्रदेश पुलिस के हेड कांस्टेबिल त्रिलोकी तिवारी ने रोकने की कोशिश की थी। इसके जवाब में गौतस्करों ने गायों से भरी अपनी ट्रक से हेड कांस्टेबिल घनश्याम तिवारी को रौंदकर नृशंसतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था और फरार हो गए थे।
इसी तरह 10 सितम्बर को उत्तरप्रदेश के बरेली जनपद के फरीदपुर गांव में गौतस्करों ने उत्तरप्रदेश पुलिस के सब इंस्पेक्टर मनोज मिश्र को उस समय गोलियों से भून डाला था जब उन्होंने गौकशी के लिए ट्रक में भरकर ले जायी जा रहीं गायों से भरे ट्रक को रोककर गौतस्करों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया था।
लेकिन क्या इन घटनाओं पर न्यूज़ चैनलों को उत्तरप्रदेश की तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ कभी एक शब्द सुना आपने? क्या उन गौहत्यारों, उनके धर्म के विरुद्ध कभी एक शब्द सुना आपने?
गौतस्करों द्वारा की गईं BSF और पुलिस के जवानों की हत्याओं के आधा दर्जन से अधिक उपरोक्त प्रकरण केवल कुछ उदाहरण मात्र हैं। ऐसे आपराधिक घटनाक्रमों की देशव्यापी सूची बहुत लम्बी है।
साढ़े 4 वर्षों के दौरान गौतस्करी के सन्देह में भीड़ द्वारा मौत के घाट उतारे गए 30 में से 28 व्यक्ति मुसलमान थे जबकि 125 के करीब जिन व्यक्तियों को गौतस्करों द्वारा मौत के घाट उतारा गया वह सब हिन्दू थे तथा उन्हें मौत के घाट उतारने वाले सभी गौकश-गौतस्कर मुसलमान थे।
यह वह नग्न एवं घृणित सच है जिसके कारण बुलंदशहर हिंसा में एक पुलिस इंस्पेक्टर की मौत पर हंगामा हाहाकार कर के पूरे देश मे भय और आतंक का वातावरण बना रहे आजतक, एबीपी सरीखे न्यूज़ चैनल गौतस्करों द्वारा पिछले साढ़े 4 वर्षों में की गई 125 के करीब हत्याओं पर मुर्दों की तरह अटूट खामोशी का कफ़न ओढ़कर गहरी नींद में सो रहे हैं।