आधुनिक चीन का निर्माता माना जाता है देंग सियाओपिंग (Deng Xiaoping) को। पर इस निर्माण प्रक्रिया में कम्यूनिज़्म की क्या भूमिका रही?
यह एक रोमांचक कहानी है। प्रगमटिक राजनीति का चरम, ट्यून-इन रहिए… एक से ज्यादा लेख हो सकते हैं।
कल्चरल रेवोलुशन अपने चरम पर था। सिर्फ कम्युनिस्ट होना काफी नहीं था, सच्चे कम्युनिस्ट होने की माँग थी। और सच्चा कम्युनिस्ट हर हाल में, हर बात में, हर हत्या, नरसंहार और पागलपन में अपने नेता और डिक्टेटर का अनुचर होता है। ज़रा सा दिमाग लगाया तो आप सच्चे कम्युनिस्ट नहीं रहे।
और इसी क्रम में देंग सियाओ पिंग सच्चे कम्युनिस्ट की परिभाषा पर चूक गए। हालाँकि उन्होंने माओ का कोई विरोध या विद्रोह नहीं किया था पर माओ के शुद्ध साम्यवादी सिद्धांतों के प्रति वह पूर्ण मतिशून्य प्रतिबद्धता भी नहीं दिखाई थी जिसकी अपेक्षा थी।
देंग ने चीन की आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। नेहरू की तरह कोट में गुलाब खोंस कर नहीं, जंगलों में बंदूक लेकर जापानियों और के एम टी (Kuomintang) से लड़ते हुए। आज़ादी के बाद माओ ने उन्हें पार्टी और सरकार के महत्वपूर्ण काम सौंपे क्योंकि देंग की प्रसिद्धि एक सक्षम कुशल प्रशासक की थी। पर वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने कई ऐसे सुधार करने के प्रयास किये जो माओ के शुद्ध क्रांतिकारी मानकों पर खरे नहीं उतरे।
तो लिउ शाओ ची के साथ साथ देंग भी रेड गार्ड्स के हत्थे चढ़ गए। उन्हें मारा पीटा और अपमानित किया गया। उनके पूरे परिवार को चीन के अलग अलग सुदूर स्थानों पर भेज दिया गया। उनके पांचों बच्चे अलग अलग भेज दिए गए और उनमें से प्रत्येक को इन रेड गार्ड्स के स्ट्रगल सेशन से गुजरना पड़ा। उनके एक बेटे को एक मकान की खिड़की से फेंक दिया गया, जहाँ उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी और वह जीवन भर पैरालिसिस से ग्रस्त रहा।
माओ ने देंग पर पूंजीवादियों से सांठ गांठ के आरोप लगाए और उन्हें सुदूर चीन के एक कोने में निर्वासित कर दिया गया। वहाँ अपने परिवार से दूर वे एक फैक्ट्री में काम करते थे और भावी चीन की योजना पर सोचते थे। पर प्रधानमंत्री जो एन-लाई ने अपनी पुरानी मित्रता का ख्याल रखते हुए इतना प्रबंध किया कि उनकी जान को कोई खतरा ना हो।
उधर कल्चरल रेवोल्यूशन अपनी अराजकता की सीमा को पार कर रहा था। माओ ने अपने वफादार रक्षामंत्री लिन बियाओ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था पर उसके मन में यह शंका भी घर कर रही थी कि लिन बियाओ माओ से विद्रोह करने की योजना बना रहा है।
लिन बियाओ को भी अब अपना अंत दिखाई देने लगा। माओ की हत्या के प्रयास के आरोप की सच्चाई तो स्पष्ट नहीं है पर माओ के दंश से बचने के लिए एयरफोर्स के प्लेन से रूस भागने का प्रयास कर रहे लिन बियाओ और उसकी पत्नी का प्लेन मार गिराया गया।
अब माओ का कोई घोषित उत्तराधिकारी नहीं रहा। प्रधानमंत्री जो एन-लाई को ब्लैडर कैंसर हो गया था और उनके दिन गिनती के थे। उधर माओ का अपना स्वास्थ्य खराब था। स्मोकिंग, शराब, विलासिता और असंयम के जीवन ने उसे बेहद बीमार कर दिया था और वह अपने बेडरूम तक सीमित रह गया था। माओ को भी अपना अंत नज़दीक दिख रहा था और उसकी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि उसके मरने के बाद इतिहास उसे कैसे याद करेगा।
इस बीच माओ ने अप्रत्याशित रूप से निक्सन और किसिंजर से राजनयिक संबंध स्थापित किये और माओ का क्रांतिकारी चीन अचानक कैपिटलिस्ट अमेरिका से सहयोग करने को तैयार हो रहा था।
इस विरोधाभास की अवस्था में चीन को संभालने और चलाने के लिए चीनी नेताओं की अगली पीढ़ी तैयार नहीं थी। अपनी पीढ़ी के दूसरी पंक्ति के सक्षम नेतृत्व को माओ ने खत्म करवा दिया था। और उनकी जगह जिन शुद्ध कम्युनिस्ट सिद्धांतवादी रेडिकल लोगों को खड़ा किया था, उनके बारे में खुद माओ को भी पता था कि वे किसी काम के नहीं हैं। दूसरी ओर मैडम माओ और उनका ‘गैंग ऑफ फोर’ माओ के मरने का इंतज़ार कर रहा था और सत्ता की गंध सूँघ रहा था।
ऐसी हालत में सिर्फ एक व्यक्ति बचा था जो चीन को संभालने की क्षमता रखता था। वह था देंग सियाओ पिंग। मरने से पहले जो एन-लाई देंग को वापस बीजिंग में पुनर्स्थापित करके चैन से मरना चाहते थे। उधर माओ की नज़र में देंग की सैद्धांतिक प्रतिबद्धता संदिग्ध थी। पर उसकी क्षमता और माओ के प्रति व्यक्तिगत वफादारी पर उसे भी शक नहीं था।
ऐसे में जो एन-लाई की मदद से देंग दबे पाँव वापस सत्ता के गलियारों में आये, और माओ ने उन्हें धीरे धीरे सत्ता सौंपनी शुरू की। उधर प्रधानमंत्री जो एन-लाई का प्रभावशाली जीवन और कैरियर अपने अंत की ओर था और वे और अधिक बीमार थे। देंग ने धीरे धीरे अनाधिकारिक रूप से जो का स्थान ले लिया और 1975 में यू एन में चीन का प्रतिनिधित्व भी किया।
पर माओ के आसपास बैठे ‘गैंग ऑफ फोर’ और विशेषतः मैडम माओ में देंग के प्रति विशेष रूप से घृणा का भाव था। वे लगातार देंग पर प्रहार करते रहे। उधर 1976 की शुरुआत में प्रधानमंत्री जो एन-लाई की मृत्यु हो गई और देंग का सुरक्षा कवच खत्म हो गया।
माओ के मन में कम्युनिस्ट सिद्धांतों की शुद्धता के प्रति गज़ब का मोह था। और साथ ही माओ की चिंता थी कि अगर उसकी मृत्यु के बाद शासन में आया व्यक्ति कल्चरल रेवोल्यूशन के प्रति नकारात्मक विचार रखता है तो माओ की बहुत छीछालेदर होगी, जैसी मृत्यु के बाद रूस में स्टालिन की हुई थी।
देंग पर विश्वास और उनकी क्षमता के प्रशंसक होने के बावजूद इस एक पैरामीटर पर देंग ने अपने को सिद्ध नहीं किया था। ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी की आधिकारिक मीटिंग में माओ ने देंग को कल्चरल रेवोल्यूशन की तारीफ करने को बाध्य किया… जिससे कि माओ की मृत्यु के बाद उसकी आलोचना ना हो सके।
देंग ने इस बात पर गोल मोल जवाब दिया कि पूरे कल्चरल रेवोल्यूशन के दौरान वे निष्कासित और निर्वासित थे इसलिए इस बारे में कुछ भी प्रमाणिकता से नहीं कह सकते…
माओ के मन में इतिहास में अपने स्थान को लेकर पर्याप्त चिंता थी। देंग का यह स्टैंड माओ को पसंद नहीं आया और ऊपर से मैडम माओ और ‘गैंग ऑफ फोर’ माओ के कान लगातार भरते रहते थे।
मृत्यु शय्या पर पड़े माओ की पकड़ अब भी सत्ता पर इतनी थी कि देंग को दूसरी बार निर्वासित होना पड़ा। सिर्फ सेना से अपने पुराने संपर्कों और पुराने सैन्य अधिकारियों के बीच उनकी प्रतिष्ठा का नतीजा था कि कम से कम उनका जीवन सुरक्षित रहा।
उधर माओ ने अपना उत्तराधिकारी एक बेहद कमज़ोर, अक्षम व्यक्ति को चुन लिया जिसका माओ से पूर्ण वफादारी का इतिहास था और जो पिछले कई दशकों से माओ के जूते चमकाने वालों की जमात में था। पर चीन का राष्ट्राध्यक्ष बनने के लिए उस दिन यह सबसे बड़ा क्वालिफिकेशन था।
क्रमशः…