माओ ने अपने रक्षा मंत्री लिन बियाओ और अपने सीआरजी यानी कल्चरल रेवोल्यूशन ग्रुप को रेड गार्ड्स खड़ा करने का काम सौंप दिया।
उधर कम्युनिस्ट पार्टी के प्लैनम में माओ ने पार्टी के नेताओं को खूब लताड़ लगाई। उन्हें क्रांति के मार्ग से भटकने के लिए डाँटा और पार्टी के टॉप नेताओं को बुर्जुआ का एजेंट घोषित कर दिया।
इनमें प्रधानमंत्री जो एन लाई से नीचे के सारे नेता घसीट लिए गए। देंग सियाओ पिंग, लिउ शाओ ची जैसे नेता जिन्होंने चीन की स्वतंत्रता के युद्ध मे निर्णायक भूमिका निभाई थी, और जू देह जैसे जनरल जिसने चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी की स्थापना की थी, भी शामिल थे। यानी पूरी पीढ़ी जिसने चीन की स्वतंत्रता के लिए जिंदगी दे दी।
उसने चीनी जनता को क्रांति को अपने हाथ में लेने का आह्वान किया। उसी प्लैनम के बीचोंबीच माओ ने अपना एक पोस्टर जारी किया, जिस पर लिखा था – बोम्बार्ड द हेडक्वार्टर… यह माओ के रेडगार्डस के लिए खुला संदेश था कि वे पार्टी के अंदर या बाहर जिस किसी को चाहे अपना निशाना बना सकते हैं।
अगस्त 1966 में रेड गार्ड्स की एक विशाल रैली तिनामेन स्क्वायर में हुई जिसमें लगभग 10 लाख लोगों ने भाग लिया। इसे माओ ने संबोधित किया, और उसमें माओ को रेड गार्ड्स का लाल आर्म बैंड बांधा गया। उसके बाद ऐसी ऐसी कुल आठ रैलियां हुईं और इसमें पूरे देश के कोने कोने से लगभग एक करोड़ रेड गार्ड्स ने भाग लिया।
इन रेड गार्ड्स को देश भर में अपनी समझ से क्रांतिकारी गतिविधि चलाने का आह्वान किया गया और सभी प्रतिक्रियावादी, क्रांतिविरोधी शक्तियों को कुचलने का संदेश दिया गया। इसमें 4 ओल्डस यानि पुरानी परम्परायें, पुरानी संस्कृति, पुरानी आदतें और पुराने विचारों के विरुद्ध लड़ाई छेड़ी गई। जो कोई भी बात जो इन चार “ओल्डस” से जुड़ी थी, वह सभी इस आंदोलन के दायरे में आ गए।
ये रेड गार्ड्स कौन थे? वे मूलतः 15-17 साल के स्टूडेंट्स थे। बाद में इनमें फैक्ट्री वर्कर्स भी शामिल हो गए। वर्षों चीन में सारे स्कूल बन्द रहे और बच्चे क्रांति करते रहे। ये रेड गार्डस पूरे चीन में रेल से कहीं भी आ जा सकते थे। किसी भी दुकान से कुछ भी उठा सकते थे और कहीं किसी के घर में घुसकर खाना खा सकते थे।
मतलब यह एक मज़ेदार पार्टी थी जो चीनी पब्लिक की कॉस्ट पर वर्षों चली। यह दूरदराज के गाँव के बच्चों के लिए बीजिंग घूमने का सुनहरा अवसर भी था।
और इनके आंदोलन और रेवोल्यूशन में कुछ भी वर्जित नहीं था। ये लड़के किसी भी एक व्यक्ति को अपने स्ट्रगल सेशन के लिए चुनते थे जो इनके हिसाब से क्रांति विरोधी था. इनका झुण्ड किसी के भी घर में घुस कर उसके यहाँ तोड़फोड़ करता था। वहाँ मौजूद कोई भी चीज जो बुर्जुआ संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती थी वह तोड़ फोड़ दी जाती या लूटकर ले जाई जाती थी।
किसी के घर की कोई पुरानी पेंटिंग या कलाकृति, कोई भी कीमती सामान इसका शिकार बनता था। यहाँ तक कि पुराने सोने के गहने भी पुरानी संस्कृति का प्रतीक होने की वजह से लूट लिए जाते थे। हज़ारों क्विंटल सोना इस बहाने से लोगों के घर से लूट लिया गया।
ये रेड गार्ड्स अपने शिकार को उसके घर से खींचकर मारते पीटते हुए लाते थे। उसके कपड़े फाड़ देते या उसपर कालिख पोत देते। एक सार्वजनिक स्थल पर या स्टेज पर खड़ा करके उसे बुरी तरह पीटते। उसे अपने क्रांतिविरोधी होने की स्वीकृति करनी होती थी और अपने सहयोगियों और मित्रों का नाम बताना पड़ता था।
कुछ भी करना मना नहीं था। पीटना, आँखें फोड़ देना, नंगा करना, उसके परिवार के सदस्यों को पीटना या बलात्कार करना या हत्या कर देना… सबकुछ जायज़ था, सबकुछ क्रांति का मार्ग था।
जो लोग इन स्ट्रगल सेशन में फँस कर बच जाते थे उनका पूर्ण सामाजिक बहिष्कार हो जाता था। उनसे सहानुभूति या सामाजिक संपर्क रखने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। अगर कोई जीवित बचता भी था तो यह उसकी सामाजिक हत्या होती थी।
बहुत से लोग इस प्रताड़ना से गुजरने के बाद आत्महत्या कर लेते थे। बहुत से लोगों ने इस संकट को आसन्न जानकर पहले ही आत्महत्या कर ली। अनेक लोगों को उनके घर से निकाल कर सुदूर स्थानों में भेज दिया गया और उनके परिवार से अलग कर दिया गया। करोड़ों जीवन और परिवार तबाह हो गए।
कोई भी खतरे से बाहर नहीं था। बच्चों ने अपने स्कूल के टीचर्स की पिटाई और हत्या कर दी। बच्चों ने अपने माँ बाप तक को बुर्जुआ और क्रांतिविरोधी घोषित कर दिया और अपने साथी रेडगार्डस के साथ मिलकर उन्हें भी घसीट कर स्ट्रगल सेशन में ले गए। जिसको जिससे दुश्मनी निकालनी थी, उसने निकाली। किसी के भी साथ कुछ भी हो सकता था।
कुछ भी आउट ऑफ बाउंड नहीं था। चीन की हज़ारों वर्ष पुरानी सभ्यता के प्रतीक नष्ट कर दिए गए। हज़ारों म्यूजियम लूट लिए गए। कन्फ्यूशियस की समाधि और संग्रहालय लूट लिया गया। चीन से कीमती कलाकृतियों और बहुमूल्य शिल्प को लूट कर बाहर स्मगल करने का धन्धा भी खूब फला फूला।
इन स्ट्रगल सेशन में वैसे तो कोई भी सुरक्षित नहीं था, पर माओ के लिए इनका मुख्य निशाना थे उसकी अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के वे लोग जिन्होंने माओ के बताए रास्ते पर नहीं चलने की गुस्ताखी की थी।
इसमें पार्टी प्रेसीडेंट और जनरल सेक्रेटरी के पदों पर बैठे लोग… देंग, लिउ शाओ ची और जू देह जैसे लोग भी थे। लिउ शाओ ची को काफी समय से माओ निशाना बना रहा था।
लिउ की पत्नी एक बेहद सुंदर और स्टाइलिश महिला थी और वह मैडम माओ की ईर्ष्या का केंद्र थी। लिउ दंपति को ऐसे ही स्ट्रगल सेशन में प्रताड़ित किया गया और फिर ट्रेटर घोषित करके जेल में डाल दिया गया।
चीन के स्वतंत्रता संग्राम के हीरो लिउ शाओ ची की जेल में बिना इलाज के तड़प तड़प कर मृत्यु हो गई। देंग सियाओ पिंग को बीजिंग से दूर एक गाँव में निर्वासित कर दिया गया जहाँ वह यह बर्बादी देखता अपनी बारी का इंतज़ार करता रहा।
रेड गार्ड्स ने अनेक जगह स्थापित कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तरों पर कब्जा कर लिया और पार्टी पदाधिकारियों को मार डाला। अनेक स्थानों पर उन लोगों ने सेना के शस्त्रागार लूट लिए और एक उपद्रवी भीड़ पूरी तरह से सशस्त्र गुंडों और अपराधियों की फौज बन गयी।
सेना को खुद इनसे निबटने में तकलीफ होने लगी क्योंकि माओ और रक्षा मंत्री लिन बियाओ ने भी सेना के बजाय विद्रोही रेड गार्ड्स का साथ दिया। सेना को बिना क्रांति को बाधित किये व्यवस्था बनाये रखने का असंभव काम सौंपा गया। जहाँ कहीं सेना ने कड़ाई करनी चाही, सैन्य अधिकारियों को कठोर दंड झेलने पड़े।
पूरा चीन अब एक गृह युद्ध की स्थिति में आ गया था। रेड गार्ड्स के अंदर भी अनेक गुट बन गए थे जो एक दूसरे को बुर्जुआ घोषित करते हुए आपस में सशस्त्र संघर्ष में उलझे हुए थे।
सच्चाई यह थी कि स्थिति पर किसी का नियंत्रण नहीं था। प्रधानमंत्री जो-एन लाई और स्वयं चेयरमैन माओ का भी नहीं। सत्ता और शक्ति एक ऐसी चीज है जो आप अगर किसी के हाथ में पकड़ा दें तो वापस लेना आसान नहीं है।
यह पूर्ण अराजकता की स्थिति अगले तीन वर्षों तक चरम पर रही। फिर जो-एन-लाई किसी तरह माओ को यह समझाने में सफल हुए कि क्रांति अब सही दिशा में नहीं जा रही। लेकिन इसे वापस समेटना आसान नहीं रहा।
जिन रेड गार्ड्स के हाथ में अब हथियार थे उन्हें वे वापस करने को तैयार नहीं थे और अनेक जगह पर आर्मी को रेड गार्ड्स को क्रूरता से कुचलना पड़ा। लाखों रेड गार्ड्स, जिन्हें यह समझ में नहीं आया था कि पार्टी अब खत्म हो गई है, आर्मी के हाथों मारे गए।
यह कल्चरल रेवोल्यूशन कुल दस साल, यानि 1966 से माओ की मृत्यु के साल 1976 तक चला। यह माओ के पहले महान साम्यवादी प्रयोग ‘द ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ की विभीषिका से उत्पन्न आलोचना की प्रतिक्रिया में हुआ माओ का दूसरा महान क्रांतिकारी प्रयोग था।
ग्रेट लीप से उत्पन्न अकाल में तीन से साढ़े तीन करोड़ लोग मारे गए थे। इस कल्चरल रेवोल्यूशन से पैदा हुए पागलपन और गृहयुद्ध में लगभग दो से तीन करोड़ लोग और मारे गए। माओ ने शुद्ध साम्यवादी क्रांति के आग्रह में मासूम युवाओं की एक पूरी पीढ़ी को जानवर बना दिया।
चीन की जो समृद्धि और विकास आपको आज दिखाई देता है वह कम्यूनिज़्म की उपज नहीं है। शुद्ध साम्यवाद के आग्रह का काल था माओ का यह काल… और यह पागलपन, मानवीय त्रासदी और असीम यंत्रणा ही वामपंथ की कुल उपलब्धि है।