अमेरिकी वामपंथी नारीमुक्ति एक्टिविस्ट केट मिलेट की बहन मैलॉरी मिलेट (Mallory Millett) अपने एक बहुचर्चित लेख में अपनी बहन को कुछ इस तरह याद करती है…
जब मैलॉरी स्कूल की पढ़ाई खत्म करके जा रही थी तो उसकी एक टीचर ने उससे पूछा कि आगे उसका क्या करने का इरादा है? उसने जवाब दिया कि वह यूनिवर्सिटी जा रही है।
उसकी टीचर दुखी हो गई. उसने कहा – इसका मतलब तुम चार साल बाद एक नास्तिक और कम्युनिस्ट बनकर निकलोगी।
तब लड़कियों का झुंड इस बात पर हँस पड़ा और यह सोचते हुए वहाँ से गया कि यह कितनी दकियानूसी औरत है।
पर वह यूनिवर्सिटी गई और चार साल बाद बिल्कुल वही बनकर लौटी – कम्युनिस्ट और नास्तिक. अपनी बड़ी बहन केट की तरह, जो छह साल पहले वहाँ से लौटी थी।
खैर, कई साल बाद वह दक्षिण पूर्व एशिया से लौटी जहाँ वह अपने पहले पति के साथ रह रही थी। अब वह तलाकशुदा थी, एक बच्ची की माँ थी, और दुखी थी।
जब उसकी बहन केट ने उसे अपने साथ रहने का निमंत्रण दिया तो उसने इसे एक सुयोग समझ कर स्वीकार कर लिया क्योंकि इतने वर्षों तक दूर रहकर वह भूल गयी थी कि केट की मानसिक अवस्था क्या थी।
केट उस समय एक छोटे से लॉफ्ट फ्लैट में रह रही थी और अपनी थीसिस और पहली किताब ‘सेक्सुअल पॉलिटिक्स’ लिख रही थी। केट ने मैलॉरी को अपने साथ अपनी एक मित्र के फ्लैट पर एक मीटिंग में निमंत्रित किया। यह उनका ‘जागरूकता समूह’ (Consciousness raising group) था, जो बिल्कुल एक कम्युनिस्ट एक्सरसाइज़ था, माओवादी चीन की तर्ज पर।
मीटिंग की शुरुआत एक चर्च की कार्यविधि की तरह शुरू हुई। पर यह मार्क्सवाद था, वामपंथ का चर्च। केट ने कार्यक्रम की शुरुआत एक प्रार्थना की तरह कुछ इस वार्तालाप के साथ की जिसमें सभी स्कूल के बच्चों की तरह समवेत स्वर में भाग ले रहे थे…
केट ने पूछा- “हम लोग आज यहाँ किसलिए जुटे हैं?”
जवाब में सभी बोले – “क्रांति करने के लिए।”
– कैसी क्रांति?
– सांस्कृतिक क्रांति।
– कैसे करेंगे यह सांस्कृतिक क्रांति?
– अमेरिकी परिवार को नष्ट करके।
– परिवार को कैसे नष्ट करेंगे?
– पितृसत्ता को नष्ट करके।
– पितृसत्ता को कैसे नष्ट करेंगे?
– उसकी शक्ति छीन कर।
– उसकी शक्ति कैसे छीनेंगे?
– मोनोगैमी को खत्म करके।
– मोनोगैमी को कैसे खत्म करेंगे?
जो उत्तर आया उसे सुनकर मैलॉरी पर जैसे वज्रपात हो गया।
– स्वच्छंदता (प्रोमिस्क्यूईटी), अश्लीलता, वेश्यावृति और समलैंगिकता का प्रचार करके…
उसके बाद उन लोगों ने लम्बी चर्चाएं की कि इन उद्देश्यों को कैसे पूरा किया जाए। उन्होंने ‘नेशनल ऑर्गेनाईजेशन ऑफ वीमेन’ बनाने पर चर्चा की और हर अमेरिकी संस्था में घुसपैठ करने की योजनायें बनायीं… शिक्षा संस्थान, हाई स्कूल, शिक्षा बोर्ड, लाइब्रेरी बोर्ड, ज्यूडिशरी, राजनीति…
मैलॉरी को लगा जैसे कि कुछ नशेड़ी कोकेन के नशे में बकवास कर रहे हैं, या जैसे कुछ स्कूल के बच्चे कोई बैंक लूटने की योजना बना रहे हैं। उसने इन सबको हवा हवाई समझ कर उड़ा दिया।
लेकिन उसके बाद उसकी पुस्तक ‘सेक्सुअल पॉलिटिक्स’ छपी, उसे खूब मीडिया कवरेज मिला, टाइम मैगज़ीन के कवर पर उसकी तस्वीर छपी और वह नारी मुक्ति की कार्ल मार्क्स गिनी गई। उसकी थीसिस को पढ़ कर लड़कियाँ फेमिनिस्ट बन रही थीं।
और उसकी थीसिस क्या थी? – ‘परिवार शोषण का तंत्र है, इसमें पुरुष शोषक है, स्त्री और बच्चे शोषित हैं। स्त्री के लिए विवाह एक वेश्यावृति है… एक व्यक्ति के लिए वेश्यावृति। बल्कि वेश्यावृति एक स्त्री के लिए मुक्ति का मार्ग है। यह उन्हें शक्ति देता है, उन्हें उनके शरीर पर अधिकार देता है, स्त्री को पुरुष की दासता से मुक्त करता है। जैसे दूसरे प्रोफेशन हैं, वैसे ही वेश्यावृति है…’
और यह सब गंदगी देखते देखते यूनिवर्सिटी और स्कूलों में भर गई। यूनिवर्सिटी में वीमेन्स स्टडी नाम का कोर्स पढ़ाया जाने लगा, जिसके बारे में माँ-बाप सोच भी नहीं सकते थे कि यह कैसे ज़हर की खेती है।
सीधी सादी, कोमल भावनाओं और सौंदर्य से भरी हुई किशोरी बालिका यूनिवर्सिटी पहुँचती है और यह पाठ पढ़ती है। उसकी आत्मा की हत्या हो जाती है, वह शरीर बन जाती है। प्रेम मर जाता है, सेक्स रह जाता है। नारीवाद के नाम पर नारीत्व की हत्या हो जाती है।
मैलॉरी ऐसी कितनी ही औरतों का ज़िक्र करती है जो जवानी में इस धोखे में पड़ीं, और अभी 60-70 साल की उम्र में तकिए पर रोती हैं। अकेली, दुखी… सोचती हैं कि उनका परिवार कहाँ है? कहाँ हैं वे बच्चे जो उन्होंने नहीं पैदा किये… कहाँ हैं वे नाती-पोते जो नहीं हुए।
कितनी ही औरतें जब मैलॉरी से मिलती हैं और उन्हें पता लगता है कि वह प्रसिद्ध केट मिलेट की बहन है तो वे कहती हैं – “तुम्हारी बहन ने मेरी बहन की जिंदगी खराब कर दी… या, तुम्हारी बहन ने मेरी मित्र का घर तोड़ दिया… उसके बच्चे अनाथ हो गए, उसका हस्बैंड पागल हो गया। उसे समझ में ही नहीं आया कि एकाएक कौन सा ग्रहण लग गया। सबकुछ हँसी-खुशी चल रहा था और एक दिन उसके हाथ में तुम्हारी बहन की लिखी किताब पड़ गयी।”
और औरतों को कौन सी ताकत मिल गयी जो उनके पास नहीं थी। औरतें हमेशा शक्तिशाली थीं, दुनिया को औरतें ही चलाती आयी हैं। आदमी औरत को खुश करने के लिए कुछ भी करता है। भगवान तक की बात काट देता है, पर औरत की नहीं काटता। एडम ने ईव के कहने पर सेव खाया था ना…
उधर अमेरिका कोल्ड वॉर जीत कर खुश हो रहा था, कि बिना एक गोली चलाये उन्होंने कम्युनिज़्म को हरा दिया। रूस को तोड़ दिया, बर्लिन वॉल गिरा दी। और इधर वामपंथ हँस हँस कर दोहरा हो रहा था… बिना एक गोली चलाये उन्होंने पूरे पश्चिमी समाज को मार डाला… उनके परिवार पर, उनकी स्त्रियों पर कब्ज़ा कर लिया… उनके मर्मस्थल को कुचल डाला।
विषैला वामपंथ : अव्यवस्था और अराजकता खड़ी कर, सुधारों का श्रेय लेने का दावा
बहुत बढीया लिख रहे हे राजीव भाई , ऐसे ही लिखते रहिए।