हिन्दी वर्णमाला में एक उ से मुल्ला बनता है, दूसरे ऊ से मूरख रचा जाता है। एक दूसरे के बाद आता है।
दोनों में अन्योन्याश्रय संबंध है। मूर्खता उनकी बोली, आचार विचार का अविभाज्य अंग है। जैसे कि उ छोटा भाई हो और ऊ बड़ा।
कल अयोध्या में हिन्दू समाज का उद्वेलन देखकर मुल्लाजी दुःखी हो गए। ऑल इंडिया दरअसल ऑल धरती… मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सवाल एक मस्जिद देने का नहीं बल्कि सवाल तो उसूलों का है! सवाल तो यह है कि हम लोग इस देश में धीरे-धीरे कितनी मस्जिदें कुरबान करेंगे!
या मौला… परवरदिगार तू रहम कर! कितनी ही तो मस्जिदें इस देश की माटी में कुरबान कर दी गईं! भूमि की खुदाई करो तो वो मस्जिद ही मस्जिद उगले! आततायी हिन्दू राजाओं ने हजारों मस्जिदें ढहा दीं और उन पर मंदिर खड़े कर दिए!!
धर्मप्रचारक समाज को दिशा देते हैं। समाज को बतलाते हैं कि इस राह चलो… ऐसे आत्मावलोकन करो… इतिहास की भूलें सुधारो… जिन्होंने तुम्हारे लिए इतनी जगह दी उनका सम्मान करो।
मगर ये तो निरंतर पतनशील हैं। इनमें रत्ती भर परिवर्तन नहीं आया। जैसी बकवास आज से हज़ार साल पहले करते थे, आज भी बिलकुल वैसी ही बकवास करते हैं। कब कौन ग़ज़नी और नादिरशाह की भाषा बोल बैठे, आप जान ही नहीं सकते।
निर्लज्ज और झूठे बेईमान इतने बड़े कि आपका रक्तचाप बढ़ जाए। जिस कौम का धार्मिक अगुआ इफरात भर आनंद, आज़ादी लेते हुए, भारत में सारी मौज मस्ती, अय्याशी करते हुए, निरंतर हिन्दुओं के विरुद्ध षड़यंत्र करते हुए… ये कहे कि हमें कितनी मस्जिदें कुरबान करनी होंगी पता नहीं… उस कौम की अक्खड़ धर्मांधता और कंजूसी की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।
राम की धरती पर उनका ही मंदिर तोड़कर मस्जिद खड़ी करने वाले उस लुटेरे को अपना बाप समझने वाले मुल्लाजी इस देश के तो नहीं हो सकते।
जिस देश के हजारों महान मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदें और दरगाहें खींच दी गईं, जहां आज भी हिन्दू, बौद्ध मंदिरों के अवशेष, शिलालेख, स्तंभ, खंडित मूर्तियां हमें घूरती हैं, उसी देश में इन्होंने बाबरी ढांचा को ढहाने के नाम पर पिछले छब्बीस सालों से छाती पीटी है। नंगई की हद है… और इनका साथ देने वाले राजनीतिक दल तो इनके भी बाप हैं। छटांक भर लाज नहीं आती इन्हें यह सब कहते हुए।
लेकिन कहते हैं ना… राम मिलाए जोड़ी… एक… तो बात यह है कि मूर्खता की दुनाली बंदूक दो अलग अलग दिशाओं में दागी जा रही है। एक तरफ मुल्ला जी बांय बांय बक रहे हैं तो दूसरी और कांग्रेसी भांय भांय भौंक रहे हैं।
एक दिन पहले राजस्थान में कांग्रेसी नेता ने कहा कि मोदी जी आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले आपको जानता कौन था… अब भी आपके पिता का नाम कौन जानता है…!! ऐसा ही मुझे भी एक मूर्ख शिरोमणि वामपंथी पत्रकार ने कहा था कि मोदी को गुजरात के बाहर जानता ही कौन है..! लीजिए जान लिया पूरे विश्व ने…
हाय रे विद्वान! जिसके बाप का नाम ज़माना नहीं जानता उसे चमकने का कोई अधिकार नहीं है! अरे मूर्ख… श्रीनिवास रामानुजन के पिता कपड़ों की दुकान में मुंशी थे तो क्या रामानुजन का जन्म लेना भी व्यर्थ था… आज तो पूरा संसार उनकी प्रज्ञा को प्रणाम करता है। यहां क्या राजपाट चल रहा है कांग्रेसियों का..? आपके बाउजी पिरधानमंत्री थे तो आप भी पिरधानमंत्री बनेंगे…!!!
पिछले चार वर्षो में मोदी जी ने जो कार्य किए सो किए… एक कार्य स्वतः हो गया। और वह यह कि सब के सब फर्ज़ी नंगे हो गए। कोई मोदी की मां को गाली देता है तो कोई बाप को… कोई मस्जिद का रोना रोता है तो कोई फेंकू कहता है। पर समझ में सबको आ रहा है कि अब मामला ज़रा बिगड़ गया है।
ये वाजपेयी जी का जुग नहीं है, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का जुग है, जिनके पिता को तो कोई नहीं जानता था लेकिन आज मोदीजी के नाम भर से विपक्ष की पतलून जरूर गीली हो जाती है। चिन्ता न करो पुत्तर… मंदिर भी बनेगा और मोदी जी के पिता को भी लोग याद करेंगे कि किस पुत्र को पैदा किया था!