आज पाकिस्तान के शहर कराची में बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने चीन के दूतावास पर हमला किया और उसमे 4 लोग मारे गए है।
ये हमलावर दूतावास में घुसने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिले समाचारों के अनुसार वे अंदर घुस नही पाये है।
इस हमले की जिम्मेदारी भी बलूच लिबरेशन आर्मी ने ट्वीट के द्वारा स्वीकार कर ली है। इस हमले में 3 बलोच हमलावर भी मारे गए है।
वैसे तो पाकिस्तान में इस तरह के आतंकी हमले होने को, कोई बड़ी बात नहीं समझा जाना चाहिए लेकिन यह घटना दो कारणों से अवश्य बड़ी है।
पहला यह कि यह हमला बलोचियों ने किया है और वह भी पहली बार, अपने बलूच के इलाके से बाहर आकर उन्होंने पाकिस्तान के अंदर घुस कर आक्रमण किया है।
दूसरा उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि अब तक वे सिपेक (CPEC) की परियोजनाओं पर काम कर रहे चीन के नागरिकों को निशाना बनाते थे लेकिन इस बार पाकिस्तान के अंदर घुस कर, चीन के दूतावास को निशाना बनाया है।
बलूचियों का यह आक्रमण जहां पाकिस्तान के लिया चिंता का तो विषय है ही, वहीं पर चीन के लिये और भी बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी का यह आक्रमण उनकी तरफ से एक ‘राजनैतिक व्यक्तव्य’ है जो चीन को चुनौती देना है।
आज चीन के लिए सिपेक परियोजना गले की हड्डी बनती जा रही है और चीन द्वारा पाकिस्तान के आतंकी चरित्र को अब तक अपने स्वार्थ के लिए नजरअंदाज़ करना भारी पड़ने लगा है।
मैं पूरे घटनाक्रम को सिर्फ बलूच-पाकिस्तान-चीन के परिदृश्य में नहीं देख रहा हूँ बल्कि इसके तार अमेरिका, अफगानिस्तान और भारत से जुड़े हैं जिसमें रूस और ईरान भी कहीं न कहीं दिख रहे हैं।
मेरा मानना है कि ईरान द्वारा पाकिस्तान को चेतावनी कि वो पाकिस्तान की सीमा में घुस कर आतंकियों को मारेगा, पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा खालिस्तान मूवमेंट को फिर से बढ़ाने के लिए अमृतसर में कराया हमला, खालिस्तानियों के सहायक बनने के लिए जम्मू कश्मीर में पाक समर्थक सरकार बनाने के नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस का प्रयास व पाकिस्तान द्वारा आईएमएफ से ऋण लेने के लिए सिपेक परियोजना में चीन के साथ किये गये अनुबंधों की शर्तों के खुलासे से इनकार की पहली किश्त यह चीन के दूतावास पर बलूची हमला है।
आगे आगे देखिए होता क्या है, अभी तो चीन की परीक्षा की यह शुरुआत ही है।
अरुणाचल प्रदेश : चीन का दावा और भारत का कूटनीतिक दांव किरेन रिजिजू