लड़कियों की भावनाओं को वामपंथी ओपिनियन मैनिप्यूलेशन का बड़ा शस्त्र मानते हैं। डॉ राजीव मिश्रा ने लिखा था कि अमेरिका में ट्रम्प के चुनाव के समय वहाँ के कॉलेजेस में एक स्लोगन चला था – Support Trump, Get Dumped, याने अगर आप लड़के हो और आप ने ट्रम्प को सपोर्ट किया तो आप की गर्ल फ्रेंड आप को डम्प कर देगी, याने छोड़ देगी।
लड़कों पर प्रेशर आना ही था। वैसे आज खोजने पर वह स्लोगन तो नहीं दिखा लेकिन हार्पर्स बाज़ार का यह लेख तो दिखाई दिया जहां कोई जेनिफर राइट है जो विवाहित जोड़ों के बीच रायता फैला रही है कि अगर आप का पति ट्रम्प सपोर्टर है तो उसे डाइवोर्स दे दो।
लेख छापने वाली पत्रिका तो वामी है ही लेकिन उसे पढ़ना हाई स्टेटस माना जाता है। हार्पर्स बाज़ार हर कोई नहीं पढ़ता/ पढ़ती। गरीब तो बिलकुल नहीं पढ़ते।
अमेरिका में कॉलेज शिक्षा बहुत महंगी है और हार्पर्स सहसा उच्च आय वाले उच्च शिक्षित वर्ग में ही पढ़ी जाती है। याने वामी ओपिनियन बनाया जाता है सो कॉल्ड capitalist क्लास में, जो वास्तव में पूंजीवादी कम, एलीट ही अधिक होता है और एलीट होना और पूंजीवादी होना एक नहीं होता।
मज़े की बात है, गरीब भी पूंजीवादी हो सकता है, और अमीर भी वामपंथी हो सकता है क्योंकि यह मानसिकता का फर्क है, आर्थिक स्थिति का नहीं। पूंजीवादी और पूंजीपति केवल दो अलग शब्द ही नहीं, दो बिलकुल अलग मानसिकताएँ भी हैं। वैसे अक्सर सभी वामी नेता सम्पन्न घरों से ही आए हैं या फिर उन्होंने अपना खर्चा उठाने किसी अमीर को पकड़ा है जैसे मार्क्स ने एंगेल्स को पकड़ा था।
अस्तु, हार्पर्स की बात इसलिए, कि वामपंथ पूरी तरह सोच की मार्केटिंग है और वामी जानते हैं कि जिनके पास पैसा है उन्हें जो चीज़ बेची जाये तो अपने आप जिनके पास पैसे नहीं वे भी अनुकरण करने लगेंगे, या करने की अपनी तरह से कोशिश करेंगे।
जैसे अस्सी की दशक में कुछ सस्ती गाड़ियां, मर्सिडीज़ का ‘लुक’ कॉपी कर रही थीं और यही उनके एड का मुद्दा भी होता था। या फिर अपने सस्ते ब्रांड की सिगरेट रखने के लिए दुकानदार से 555 या डनहिल या मार्लबरो का खाली पैकेट मांग लेना। ये सब अपने से सम्पन्न वर्ग का अनुकरण होता है क्योंकि इंसान जो है उससे ऊपर चढ़ना चाहता है, और कम से कम दिखना तो चाहता ही है क्योंकि अपनी ही इमेज का शिकार है।
अब ज़रा उस मुद्दे पर भी आते हैं जिसके लिए यह लेख लिखा है। Support Trump, Get Dumped वाला नारा। अपने यहाँ भी ऐसा ही कुछ हुआ था जहां लड़कियों ने और महिलाओं ने अपने से प्रभावित होनेवाले पुरुषों पर दबाव डाला था – JUSTICE FOR ASIFA, याद है ?
कितनी लड़कियों ने अपने अपने बॉयफ्रेंड्स पर प्लेकार्ड को वॉल पर लगाने या आसिफा को डीपी बनाने को दबाव डाला था? कितनी महिलाओं ने अपने मित्रों पर दबाव डाला था? क्या वाकई इन लड़कियों और महिलाओं को facts पता थे?
किन्तु बाद में जब ये प्लेकार्ड वाले महज थेथर भांड साबित हुए, क्या किसी महिला ने उन पुरुषों के या लड़कियों ने अपने बॉयफ्रेंड्स को सॉरी कहा?
मुझे नहीं लगता किसी ने कहा होगा, क्योंकि मज़ाक में ही सही लेकिन जब ये मानसिकता बन जाती है कि जब पुरुष की गलती हो तो उसे तुरंत सॉरी बोलना चाहिए और जब स्त्री की गलती हो तो दो घंटे बाद ही सही लेकिन पुरुष को ही सॉरी बोलना चाहिए तो इससे अलग क्या होगा ?
प्रश्न ये है कि किस कारण ये लड़कियां और महिलाएं इनकी बातों में आ जाती हैं? साथ साथ यह भी देख लीजिये – जैसे हार्पर्स के वाचकों में करेक्ट क्या है – केवल पोलिटिकली करेक्ट नहीं, बल्कि हर तरह से करेक्ट क्या है इसके मापदंड अगर हार्पर्स के सेलेब्रिटी लेखक बताएँगे तो यहाँ भी यही होगा।
और ये सेलेब्रिटी बनते भी हैं कैसे? कौन बनाता है इन्हें सेलेब्रिटी? कौन बनाता हैं इन्हें फेमस? क्या इनमें वाकई ऐसे गुण हैं या सेलेब्रिटी बन जाने के बाद इनकी बातें छपने लग जाती हैं तो बेहद फालतू बात भी हो तो भी गंभीरता से ली जाती है?
ये सेलेब्रिटी बोल देते हैं कि जो इनसे मतभेद रखेगा उसे फ्रेंड लिस्ट में नहीं रखेंगे! क्या इनकी आभासी फ्रेंड लिस्ट में रहना इतना ज़रूरी है कि आप अपने असली मित्रों और बॉय फ्रेंड्स पर दबाव बनाएँ? हाँ, आप को अपने जन्मदिन पर इनका मेसेज भी आ जाएगा लेकिन अगर कभी इनसे मुलाक़ात हो पायी तो इन्हें पता नहीं होगा आप कौन हैं।
एक रोचक बात रखता हूँ, मान लीजिये कि इन सभी पीड़ित बॉय फ्रेंड्स और पुरुषों को सलाह दूँ कि ऐसी लड़की से प्यार या ऐसी महिला से दोस्ती क्या काम की, अलविदा ही कर लो, खुश रहोगे – तो आप को पता है कि क्या लानत मलामत होगी।
लेकिन हार्पर्स में महिलाओं को ट्रम्प समर्थक पतियों से डायवोर्स लेने की सलाह देने वाली जेनिफर राइट से कोई कुछ नहीं कहता। जब कि वहाँ विवाह का टिकना काफी मुश्किल चीज़ है आजकल तो ये तो ज़िंदगी को हिलाकर रख देनेवाली सलाह दे रही है। बच्चे हुए होंगे तो उनका क्या यह भी सोच नहीं रही।
लेकिन उसको कोई कुछ नहीं कहेगा। समझे कुछ?