इयम वामपंथम अस्ति

दिसंबर 25 और दिसंबर 31 को दुनिया के 250 से अधिक देशों में शराब, शबाब, कबाब, नृत्य जैसी महफिल हर शहर चौराहे नुक्कड़ पर लगना आम बात है।

आपने देखा भी है और महसूस भी किया है ऐसे मौके पर पूरे विश्व में आतिशबाज़ी होती है और आमतौर पर एक दूसरे के साथ गैरकानूनी प्रेम संबंध भी बनाए जाते हैं।

परंतु विश्व के किसी भी लेखक, इतिहासकार, विचारक, चिंतक, कवि या पत्रकार की जीभ और कलम में इतनी ताकत नहीं हुई कि इसके खिलाफ एक शब्द भी बोला जा सके।

ऐसा इसलिए क्योंकि आपके विपक्षी क्रिस्टल क्लियर है वह अपने धर्म पंथ कबीले मजहब के विरुद्ध एक आवाज नहीं सुन सकते।

परम आदरणीय प्रभु यीशु, ईस्टर के अगले दिन ज़िंदा होते हैं इस बात में कोई संशय नहीं है, पर इन्हें आपत्ति है हमारे छठ पूजन पर सूर्य को जल देने से।

धरती चपटी है, उनके प्रभु के धूम्रपान के धुएं से आकाश बना इस बात पर कोई संशय नहीं है, पर इन्हें आपत्ति है सिंदूर, कलावा और जनेऊ से।

गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे दुनिया का सबसे महान ज्ञान प्राप्त हुआ इस बात पर कोई संशय नहीं है, पर उन्हें आपत्ति है ‘जुग सहस्त्र योजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानू’ से।

एक दिन कयामत आएगी और ज़मीन में गड़ी सारी रूहों में जान फूंक देगी इस बात पर कोई संशय नहीं है, पर उन्हें आपत्ति है माता कौशल्या, सुमित्रा और कैकई के खीर खाने से।

मुहर्रम पर अपनी ताकत दिखाना वास्तव में आवश्यक था उनके उत्थान के लिए इस बात पर कोई संशय नही है, पर उन्हें आपत्ति है ‘कांवड़ियों’ के एक कार पलट देने से।

एक साहब थे मुझे उनका नाम नहीं याद आ रहा है, उन्होंने आदरणीय श्री मोहम्मद साहब का कार्टून बनाया था उसके बाद उनका जो हश्र हुआ उसे हम और आप सब वाकिफ है!!! मैं दाद देता हूं हश्र करने वालों की, उन्होंने अपने धर्म का सम्मान करते हुए अपने धर्म के प्रति मज़ाक बनाने वाले को उसकी औकात दिखाई।

हम अपने धर्म और साहित्य का उपहास करने वालों का कभी वह हश्र नहीं कर पाए जो चार्ली हेब्दो का हुआ था, नहीं तो आज किसी दो कौड़ी के टुटपुंजिया लेखक की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वो होली, दीपावली और छठ पूजा जैसे त्योहारों का उपहास बना सकता… कमी हमारी है।

भारत में वामपंथ ऊंचे आकाश में उड़ते हुए उस गिद्ध की तरह है जो चुपचाप शिकार करना जानता है, उसे पता है उसे किसका शिकार करना है।

हमारे धर्म की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हमारे यहां धर्म पुरोधा और धर्म धुरंधर राजनीति का शिकार हुए हैं, भारत का हिंदू राजनीति का शिकार है।

मुझे आज तक भारत में एक भी गैर राजनीतिक हिंदू संगठन नहीं दिखा, कोई भी धार्मिक संगठन तभी तक धार्मिक रहता है जब तक वह अराजनीतिक रहता है।

चिंतन करिए, हमसे कहां भूल हो रही है।

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