भारत पाक सरहद का एक वीडियो आज whatsapp पर वायरल है। पाकिस्तानी सेना के लोग दीपावली पर भारतीय जवानों से हाथ मिला रहे, मिठाइयां दे रहे हैं। बड़ा सौहार्द्रपूर्ण वातावरण है। देखने को किसे अच्छा नहीं लगेगा?
अब ये कोई भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूँ, बस अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि इस वीडियो को लेकर वामीस्लामी और अमन की आशा के नारे लगानेवाले यह कहते फिरेंगे कि देखिये लोगों के दिल में तो सद्भाव है, राजनेता ही लोगों को लड़ाते हैं।
इस बात में एक अर्धसत्य और एक पूरा झूठ, दोनों हैं। इनसे दो चार सवाल पूछते ही कलई खुलने लगती है।
लोगों के दिलों में सद्भाव है? इसका उत्तर यह है कि आम लोग, खास कर आम हिन्दू, हमेशा शांति चाहता आ रहा है। इसीलिए तो वो मस्जिदें गिराने, कत्ल करने और औरतें उठाने या लोगों को गुलाम करके बेचने के लिए ईरान, तुर्क या अरब नहीं गया। यहाँ स्थापित भी जो मस्जिदें खाली ज़मीन पर तामीर की गई हैं, उन्हें गिराकर उनकी जगह पर मंदिर नहीं बनाये।
अब इसके आगे सवाल पूछने की जरूरत नहीं रहती, आप पर आरोप लगाए जाने शुरू होते हैं कि आप सांप्रदायिक भगवा आतंकी हैं जो दिल बड़ा करके इतिहास भूलने को तैयार नहीं हो रहे हैं।
लेकिन इसे भी छोड़कर हम बात आगे बढ़ाते हैं तो यहाँ भी पाते हैं कि आज भी ये लोग इतिहास के आक्रांता और हुक्मरानों की संतान कहलाए जाने से रोमांचित होते हैं और मारने मरने के लिए तैयार हो जाते हैं।
हर दंगे की पहल या कारण देखिये, पता चल जाता है। और दंगे की शुरुआत देखें तो पता चलता है कि यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, पहल करनेवाले पूरी तरह से तैयार, प्रेरित और प्रशिक्षित थे अपने उद्देश्य के लिए।
बाद में जो रोना धोना होता है वो केवल प्रतिक्रिया को लेकर – उनको दर्द इस बात का होता है कि प्रतिक्रिया हुई ही क्यों? कितना अच्छा होता अगर इस ज़मीन में महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, लाछित बोड़फुकन जैसे वीर पैदा ही न होते? काश तभी कॉमरेडजन होते तो इन सब की करियर ही खत्म कर दी जाती, TISS और XLRI से पढे HR वाले किसी को भी उनका साथ नहीं देने देते।
मज़ाक अलग, एक सवाल यह भी उठता है कि इन सब को हम बाबर और तैमूर की औलादें हैं, हुकूमत करने के लिए पैदा हुए हैं, कहकर जो लोग बरगलाते हैं, क्यों बरगला पाते हैं, और वह भी इतनी संख्या में? क्या ये अमन के पैरोकार उनको उसी समय रोक नहीं सकते? कभी तत्काल विरोध करते सुने तो नहीं गए। क्यों हिंसा के बाद ही इनकी राग अमन की महफिलें रंग लाती हैं जिसमें आतंक को भगवा ही कहा जाता है?
अस्तु, ऐसा नहीं कि ये सवालों के उत्तर हमें पता नहीं, बस यही बताना चाहते हैं कि आप इन सवालों के उत्तर देना पसंद नहीं करते यह हमें पता है, और ऐसे सवाल पूछे जाने पर आप का क्या रवैया होता है यह भी हमें पता है।
हिंसा की पहल आप से होती रही, शांति की भी ठोस पहल आप से ही होनी चाहिए, और महज़ बतकही और लफ्फाज़ी नहीं। क्यों नहीं हमारे छीने मंदिर वापस करते? आप को पता ही है, जगह की कोई कमी नहीं थी, फिर भी भी मंदिर तोड़कर ही मस्जिदें तामीर की गयी हैं। करिए वापस!
आप हिंसा करेंगे और शांति के लिए शर्तें भी आप ही रखेंगे, ऐसे हमेशा थोड़े ही चलेगा।