मित्रों, राम नाम की महिमा भारतीय जनमानस में स्वयं प्रतिष्ठित है। आइये राम नाम के दिव्य रूप का दर्शन करें।
व्याकरण की दृष्टि से राम नाम र, आ, म इन तीन अक्षरों की मदद से उच्चारित होता है।
तुलसीदास जी ने बालकाण्ड में सांकेतिक रूप से लिखा है –
बन्दउँ नाम राम रघुबर को ।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को ।।
अर्थात मैं राम नाम की वंदना करता हूं जो कृसानु (अग्नि ) सूर्य (भानु) और हिमकर (चंद्रमा ) का हेतु (बीज ) है।
” र ” अग्नि का बीज है।
अर्थात चौदह भुवन और सम्पूर्ण समष्टि में वैश्वानर नामक जो मूल अग्नि है तथा व्यष्टि में विश्व (जठराग्नि ) नामक अग्नि है वह “र” बीजाक्षर से उत्पन्न होती है। अर्थात “र” बीज अग्नियों की भी अग्नि है जो प्रलयकाल में वैश्वानर और विश्व नामक असत रूपी अग्नि का भी दहन कर स्वयं अव्यक्त “सत” रूप में शेष रहती है।
ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ।।
शिवजी कहते हैं-हे पार्वती! जिन्होंने अग्नि को बनाया, हनुमानजी उन्हीं के दूत हैं। इसी कारण वे अग्नि से नहीं जले । ( लंकादहन )
“अ” सूर्य का बीज मंत्र है ।
असंख्य ब्रम्हांडों को प्रकाशित करने वाले असंख्य सूर्य स्वयं जिससे प्रकाशित होते है वह सूर्य का बीजाक्षर “अ” है।
प्रलय काल में समस्त अविद्या रूपी अज्ञान जिस चिदमय ज्ञान में समाहित होजाता है वह “अ ” बीजाक्षर साक्षात “चिद” रूप है।
“म” चंद्रमा का बीजाक्षर है।
ऋग्वेद कहता है “चंद्रमा मनसो जातश्च” चंद्रमा ईश्वर के मन से उत्पन्न हुआ। चंद्रमा समष्टि मन है जो हमारे व्यष्टि मन का अधिदैव है। मन के आत्म तत्व में समाहित होने पर ही जीव अखण्ड आनन्द में स्थित होता है। बीजाक्षर “म” द्वारा ही अखण्ड आनन्द की अभिव्यक्ति होती है।
अग्नियों की भी अग्नि, सूर्यों के भी सूर्य, मनो के भी मन वह परात्परम सृष्टि निर्माता व् सृष्टि का उपादान (सामग्री ) कारण ही “राम” नाम से अभिव्यक्त है।
इसी प्रकार सत रूप बीजाक्षर “र”, चिद रूप से बीजाक्षर “अ” और आनन्द रूप बीजाक्षर “म” आनन्द रूप है । इन तीनों बीजाक्षरों से विन्यासित “राम” नाम साक्षात सद्च्चिदानन्द स्वरूप शब्द ब्रम्ह है।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे
सहस्त्रनाम तातुल्यं राम नाम वरानने