हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी क्रिसमस, हैप्पी वैलेंटाइन कहने में जिन्हें समस्या नहीं होती उनको छलनी के नाम से बुखार वाली कंपकंपी चढ़ जाती है। ईद मुबारक का चाँद सुहाना लगता है पर करवा चौथ के चाँद का मुँह टेढ़ा दिखने लगता है।
चंदे में राखी का तिलक भी हड़पने की मंशा रखने वालों, पूरे देश के सारे व्रत त्योहार हमारे साझे हैं। दीवाली के पटाखे पूरे देश में छूटेंगे, समुद्र तटों पर छठ का अर्घ्य पड़ेगा, ओणम के पकवान हर घर में पकेंगे। तुम्हारी कुटिल दृष्टि से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
मैं बिहारी हूँ। और हमारे बिहार में करवा चौथ करने का कोई नियम नहीं। पर मैं करवा चौथ का व्रत करती हूँ! उपवास रखती हूँ ! चाँद को छलनी से देख के पति के हाथ से पानी भी पीती हूँ।
जबकि हमारे यहाँ तो तीज होती है। निर्जला तीज। जिसमें पूरे चौबीस घण्टों के बाद पानी पीते हैं हम। तो भई क्या समस्या है यदि मैं तीज भी सहती हूँ और करवा चौथ भी करती हूँ।
हाँ ये पंजाबियों, मारवाड़ियों का व्रत होता है। तो क्या? क्या कहीं लिखा है कि किसको ये व्रत करना चाहिए और किसको नहीं? मुझे तो नहीं पता! हैप्पी न्यू इयर और मेरी क्रिसमस कहने से तो भारतीय चूकते नहीं। फिर हमारे पर्व त्योहरों पर ये रेसिस्ट वाली फेस्टिवल शेमिंग (Festival Shaming) क्यों? शर्म नहीं आती बेहयाई करते?
मुझे तो फर्क नहीं पड़ता कि चंद्र देवता शाम को भरपेट भोजन कर लेने वाले व्रत से ज्यादा खुश होते हैं या भोलेनाथ चौबीस घण्टे के निर्जल तप से!
अब आप कहेंगे फिल्मों से प्रभावित हो गईं आप! नहीं जी! अब सोलह अठारह की उम्र की नहीं रही मैं!
फिर क्यों? कभी सोचा है कि हमारे यहाँ उत्सवों की श्रृंखला परम्परा क्यों है? उत्सवधर्मिता, आशावादिता लाती है, अवसाद को दूर रखती है।
एक बात तो मानते होंगे कि प्यार, लगाव बस मन में रखने की चीज नहीं। जताना भी जरूरी होता है। लाड़ पाना किसे अच्छा नहीं लगता!
और इसमें पति को ईश्वर बना देने की बात कहाँ से आ गई? तिलक लगाने और आरती करने की परंपरा कोई नई तो नहीं ना!
वो क्या है ना कि हमलोग उस पीढ़ी के भी नहीं हैं जो पति को तुम्हीं मेरी मन्दिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो कहें और अले मेला छोना बाबू वाली पीढ़ी भी नहीं हैं।
तो फिर जिसने कई बार पढ़ने में, नौकरी करने में मेरी मदद की है, जिससे मैं रोज किसी भी बात पर लड़ सकती हूँ, जो मुझे फुरसत देने के लिए घर के कामों में हाथ बंटाता है, मेरी बीमारी में मेरी सेवा करता है, पिता के बाद एक वही शख्स है जो दिन भर मेरे लिये काम करता है, मेरे साथ मेरी सी दुनिया सजाता है, क्या उसे मैं साल के एक दिन तिलक नहीं लगा सकती! आरती नहीं उतार सकती!
आप का आप जानें मेरे लिए प्रेम में विधि गौण है, भावना महत्वपूर्ण।
ये याद दिलाता है कि हमारा सम्बन्ध बाकी के सारे सम्बन्धों, जरूरतों से ऊपर आता है। ऐसे जीवन भर के दोस्त, संगी के लिए एक सेलिब्रेशन तो बनता ही है।
हमारे पास जीवनसाथी बदलने के ऑप्शन, संस्कार तो होता नहीं। इन त्योहारों के बहाने फिर से दुल्हन से बनने सँवरने का मौका अलग मिल जाता है। रोज के एकरस माहौल में ताजगी सी आ जाती है।
आप सब को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं ! प्रेम में चांदनी सी शीतलता बनी रहे! ये संग-साथ, सुहाग-भाग अनन्त काल तक बना रहे।
– कल्याणी मंगला गौरी
करवाचौथ के सोशल #Boycott की अपील करने वाली सुनीता केजरीवाल के नाम खुला पत्र